पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१८

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रोधवक्र —रोपणानन रोधामा (मा० स्त्री० ) रोधने चना । नदा। निकाला और नेत्रोंसे जल छोडना १२ दुख करना रोधस् ( स० ही० ) रुणद्धि वार्यापिकमिति मध (सवधा पछताना : ३ चिढना, घुरा मानना । (पु०) ४ रज, दुख । तुभ्याऽसुन् । उण ११5) इति असुन् । नदीनीर, नदीका (चि०) ५ थोड़ी सी बात पर भी दुःस माननेवाला, पिनारा। | नेिमाला। ६ रोनका सा, मुहरमी । ७ बात बात पर रोधस्वत् ( स० लि०) १ उपयुक्त । (पु०)२ नदी।। युग माननेवाठा, चिचिड़ा। (ऋक १.८११) रोनी धोनी (हि. यि० स्त्री० ) १ रोने धोनेवाली, शोक रोधस्वती ( स . स्त्री ) नदी । ( मागवत ५॥१६१८) या दुखकी चेष्टा बनाये रहनेवाली। (स्रो०) २ रोने रोधिन् ( मलिक) १रोधागोर, रोक्नेवाला । (पु०)। धानेको वृत्ति, नोर या दुवका चेटा, मनहमी। पृथमेद। रोप (म • पु०) सप्यतेऽनेनेति रुप विमोहे, घम् ।। वाण, रोघोषका (स. स्त्री०) रोउसा चक्रा । नदा। तीर । रहणिच घम्। रोपण स्थापित करना। ३ रोघोपती (स. स्त्री० ) रोधोऽयस्या रोधस मतुप, हर स्कायट । ४ मोहन युद्धि पेरा। ५ लिट, टाय । नदी। सूराव। रोधोवा (स.पु.) वेगवान् नद । रोप (हि • पु०) हलका एक र कडी जो हरिस छोर रोध्य (म.लि. ) रोधयोग्य, रोधनाय । । पर जयेके पार 7गी रहती है। रोध ( स० का० ) रुध्यतेऽनेन रुघ वाहुल कात् रन् । १ रोपक ( स० वि०) १ वृक्षरोपणकारी पेड लगानेवाला। अपराध, कसूर । २ पाप । ३रोध, लोध । २ स्थापित करनेवाला, उठानेवाला स्थित करने रोधपुग्प (सपु०) राधस्येव पुष्पमस्य । १ मधूर वृक्ष, याला 18 सोने चादीको एक तोल यो माम जो सुवर्ण मटुएका पेट। (क्ली०)२ रोध्रपुल, लोधका । ७०वा भाग होता है। रूपक देखो। ३चयुक्त सर्पभेद एक प्रकारका साप जिम ऊपर रोपण (स की०) रूप युट । १ जनन, जमाना, लगाना। चसा दाग हो। २ प्रादुर्भाय । ३ विमोहन, मोहित करना। ४ ऊपर रखना रोध्रपुष्पक (म० पु० ) १ का फूल । २ गालिधान्य, या स्थापित करना। ५ स्थापित करना, पहा परना। शारि धान | ३ सर्पजातिभेद, पर प्रकारका माप। ६अ जनविशप । (३०)७पारद, पारा। ८ घुसामन रोधपुरिपणो (स. स्त्री० ) रा स पुप्यतीति पुप जिान । रक्ष । ६ क्षतादिपूरण, घावका सूखना या उस पर पपडी डोप। धातकीवृक्ष धौका पेड। यधना । १० घाव पर किसी प्रकारका लेप गाना। रोधयुग्म (स. की० ) शारय और पट्टिका नामक दो (वि.) ११ रोपक, रगानेवा।।रोपक देसा । प्रकारका रोध। रोपणचूण ( म० लो०) रोपणस्य चूर्ण । नेत्राशन रोधात ( स० पु. ) ध्रपुष्पकार भूपशालि, रोधक । विशेष । प्रस्तुत प्रणाली-अपडे को मिला पर मच्छी पन्फे माकारका जी। (वामटय०६ १०) । तरद पीम पर जलम छोड़ दे। पीछे पेंदीम जमे हुए रोनादिगण (स.पु.) रोध मादि करके गणभेद। चूरको फेंक करनठ ले ले। यह पल सूस कर जय द्वियिधध, पलाश, कृष्णशाल्म ठो, सरलाट, परफ्ल पपडाकी तरह हो जाय, तब उसे चूर कर लिफलाफ पदम्य, अशोक, पलयालु, परिपेलय और मोचा पे सव) रसमें तीन बार भायना दे। अन तर दशया भाग कपूर राधादिगण हैं । इसका गुण-मद, कर और पानिदोष । डालनेरू रोपणचूर्ण प्रस्तुत होता है। इस चूर्णका नेत्र नाशक, पूरीपादिका स्तम्मन, यर्य और विपनाशक । | म अञ्जन देनेमे सभी प्रकारके नेत्ररोग Tट होते है । (वाभर सुत्रस्था० १५०) (मावम० रोगाधि०) रोना (६० कि० ) १ रोदन परना, पाहा, दुक्ष या रोपणका (स. स्त्री० ) पक्षिमेव, मैना । शोषम व्याकुल हो कर मुइस विशेष प्रकारका सर रोपणाञ्जन (सं० वी०) १ पाय योर स्नेहमयुत मजा!