पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१९

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रोपणी-रोपकायन २ तिक्त द्रव्य द्वारा, अजन। (चाटन अवनावि०) रोपिन (स नि०) धापनकारी, स्थापित करनेवाला। रोपणी (सं० स्त्री० ) नेवाअनविशेष। प्रस्तुत प्रणाली- लगानेवाला, जमाने वाला। रसाजन, धूना, जातीपुष्प, मैनसिल, समुद्रफेन, मैन्धव, रोपुषी ( म० वी० ) लोपयित्री। छेदी, सूगगा करने- गेरूमिट्टो तथा मिर्च इनका समान भाग ले कर मधुके वाटा, छेदनेवाला। साथ पीसे । क्लिन्नव रोगीके नेत्र में इसका अंजन | रोप्य ( स० वि०) रोपणपाग्य, रोपने लायक । देनेले नेतवात, क्लेद और कण्ड नष्ट होता है तथा गिरे रोयानिरोग्य ( रा पु०) धान्यावशेष, एक प्रकारका हुए नेतरोम फिरसे खडे हो जाते हैं। पुनर्नवानो। धान । दूध पीस कर उसका अंजन देनेसे कण्डु, मधुमें पीस गेव (अ० पु० ) वडापनकी धाक, दयदवा । कर देनेसे नेत्रत्राव, घृत में पीस कर पुश्पतेल द्वारा देनेसे रोबदार (अ० वि०) जिसको चेपासे तेज और प्रताप तिमिर तथा कांजीके साथ देनेसे रतौंधी टोप दूर होता प्रकट हो, रोवदाववाला, प्रभावशाली। है। इन्ही सब प्रक्रियालाका रोपणी पहने हैं। रोम ( संजी० ) १ जल, पानी ।२नेजपत्र, नेजपत्ता । ( भावपू० नेगेगाधि०)! 3 लोम, देहके वाल, रोयौ। ४ छिद्र, मूगय। ५जन- रोपणीवटी ( स० स्त्री० ) नेवाञ्जनविशेष, आँसम लगाने । पदविशेष । रोम साम्राज्य देना। का एक अजन। इसके बनानेका तरीश-रसांजन, : रोमक (सं० को०) रोमे कायतीति के क । १ पाशु एवण, हरिद्रा, दारुहरिद्रा, मालती तथा निमका पत्ता, इन सबों , शाभरी नमक । २ अयस्कान्तभेद, चुम्बका रोमर वोगावरके रस में पीस फर डेढ मटर परिमाणको गोली। स्वार्धे फन् । (पु०) ३ रोमनगर । ४ म देशका मनुष्य । बनाये। इससे जो जन तैयार होता है उसके लगाने. ५पसावके पश्चिम प्रान्तका एक प्राचीन नगर । से रतौंधी दूर होती है। (भाष० नेत्ररोगाधि० ) (भारत २०१५) रोपणीवर्त्ति (म० स्त्री०) कुसुमाभिध नेत्राचन नयवर्ति "बीयीकानन्नवामाश्च रोमरान पुरुषादकान् ।" भेद । (भारत २०१५) रोपणीय ( स० वि० ) रूप-अनीयर, वा सह-णिच् अनी गरुडपुराणमें (८२०) तथा कुमारिकापण्ड, यर् । रोपणयोग्य, लगानके काबिल । (११५।२।२) इस देशके उत्पन्न रत्न का उल्लेख है। ५ महा. रोपना (हि क्रि० ) १ जमाना, लगाना । २ अडाना, निम्ब । (वैद्यनि०) ६ एक ज्योतिपमिद्धान्त । ठहराना। ३ कोई वस्तु लेनेके लिये हथेली या कोई रोमकन्द ( स० पु० ) रोमयुक्तः इन्दो मुलमस्य । बरतन सामने करना। ४ पौधे को एक स्थानसे उखाड पिण्डालु। फर दूसरे स्थान पर जमाना, पौधा जमीनमे गाडना । रोमकपत्तन (स० स्त्री० ) रोमकं पत्तनमिति कर्मधा० । ५ वीज रखना, बेना। एक नगरका नाम । कोई इसे अलेकसन्द्रिया और कोई रोपनी (हिं० स्त्री०) रोपनेका काम, धान आदिके पौधों- कनस्तान्तिनोपल मानते हैं। को गाइनेका काम। रोमकर्णक (सं० पु०) शशक, खरगोश । (वेद्यकनि०) रोपयित । स दि०) रुह णिच-तृच् वा रूप-णि रोमकसिद्धान्त (संपु० ) रोमकाचार्यका लिखा हुआ तृच । रोएणकारी, लगानेवाला। एक ज्योतिप ग्रन्ध। रोपि ( स० स्त्री० ) दारुण वेदना, बहुत दर्द। रोमकाचार्य ( स० पु० ) एक विस्थात ज्योतिविद् । (अथर्व ५।३०।१६)/ शाकल्यसंहिता और वराहमिहिरकत हायणरत्नमे इनका रोपित् ( स० लि. ) १ लगाया हुआ । २ उठाया हुआ, उल्लेख है। खड़ा किया हुआ । ३ मोहित, म्रान्त । ४ स्थापित, रोमकायन (स० पु०) एक प्रन्धकारका नाम । ' रखा हुआ (हार्म पु० ३३१०)