पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०० लम्बिकाकोकिला-लय लम्यिकाकोकिला (सं० स्त्री०) देवताभेद । । प्रकारका लय जैसे-जमदमादि अठासी योगानुष्ठान द्वारा लम्बित (सं० त्रि०) लम्बक क्त । १ लंवा । (पु०)२/ निर्विकल्पक समाधिों परमानन्दस्वरूप ब्रह्ममें चिस- वृत्तिको लीनतारूप जो अवस्था है उसको लय कहते हैं। मांस। लम्बिन (सं० त्रि०) लम्वयुक्त, लवा। अत्यन्त तपे लोहेमें जलविन्दु फेंकनेकी तरह अर्थात् तपे लम्विया--पञ्जाव प्रदेशके वुसाहर राज्यान्तर्गत एक गिरि लोहेके वरतनमें जल फेंकते ही वह जिस प्रकार सून जाता पथ । यह अक्षा० ३१ १६ उ० तथा देशा० ७८ २० पू० है उसी प्रकार योगाङ्गादिक अनुष्ठान द्वारा निर्विकल्प के बीच पडता है। कुनावरसे क्रमशः उत्तर हिमालयको समाधिलाभ होनेसे चित्तवृत्तिके धर्म दुःखादि नहीं हो पार कर गया है। यह स्थान समुद्रको तहसे १७ हजार सकते । जल जिस प्रकार तपे लोहेमें सूब जाता है, उसी फुट ऊँचा है। प्रकार चित्तवृति भी परमानन्द ब्रह्ममें लीन हो जाती है। लम्बुक ( सं० पु० ) १ एक नागका नाम । २ ज्योनिपमें अतएव जब चित्तवृत्ति लीन हो गई, तय,वित्तकी वृत्ति जो एक प्रकारके योग जिनकी संरया पन्द्रह है, लम्वक । विक्षेपादि है वे फिर उपस्थित नहीं होती। मूछावस्थाको लम्बुपा (सं० स्त्री०) एक प्रकारका हार जो सात नलका तरह बालस्यादिसे चित्तवृत्तिके वाद्य शब्दादि विषय होता है। ग्रहण न कर सकनेसे प्रत्येक आत्मस्वरूपमें अनवमा लम्बोदर (स० पु०) लम्बमुदरं यस्य ! १ गणेग । २ पुराणा सनके कारण चित्तत्तिका जो शुद्धीभाव होता है वही नुसार एक राजाका नाम । ( भागवत १२।१२२ ) (त्रि०) द्वितीय लय है। नामसिक जिस किसी विचार द्वारा ३ औदरिक, पेछु। चित्तवृति जव शद वा जड हो जाती है, तभी यह लय लम्बोष्ठ (सं० पु०) लम्ब ओष्ठो यस्य, ओत्योष्ठयोः समासे | होता है। इति अकारलोपेन साधुः। १ उन, ऊंट।२एक प्रकारके ____४ संगीतमें नृत्य, गीत और वाद्यको समता, नाव, क्षेत्रपाल देवता । (ति०) ३ लम्बमान ओष्ठयुक्त, जिसका | गाने और बाजेका मेल। सद्गोत-दामोदरमें लिन्ना है कि होउ लम्बा हो। हृदय, वण्ठ और कपाल इन तीन स्थानों में लयको स्थिति लम्वीप्ट (सं० पु० ) १ उष्ट्र, ऊँट । (त्रि )२ दीर्घ गोष्ट | है। रिसोनिमी पण्डितका कहना है,कि लय ४० प्रकारका विशिष्ट जिसका होऊ लांबा हो । है। भगवान् पकमान लयमे वशीभूत है तथा जनाईन लम्भ (स० पु०)लाम, फायदा । इसमें लीन हैं। लम्भक (सं० त्रि०) प्रापक, लाम करनेवाला। ____४० प्रकार. लय ये सब हैं-हिपदी, बलतिका, लम्मन (सं० क्ली०) लमि लम धातु ल्युट । १ प्रतिलम्म, झल्लिका, छिन्नग्वण्डिका, बामभ्र व, छिन्ना, खण्डधावा, फायदा उठाना । २ध्यनि।३ लाञ्छना, कलंक । फड़क्कक, जम्भटिका, कलतिक, म्हएडक, खरिक, चतुरस्त्र, लम्मा ( स० स्त्री० ) लमि लम-अच् टाप । वाटशृङ्खला। अर्द्ध चतुरस्त्र, नर्तक,जान्न, पष्ठी, उन्दालना, अवकृष्टा, लम्भाडी-दाक्षिणात्य आक्ट विभागवाली एक घूमने नन्दधटी, क्दम्ब, चर्चरी, घट्टा, मिश्र, अद्ध वनिता, अति वाली जाति। चित्र, समय, वलित, अर्द्ध दल, आविद्ध, स्टूवक, चित्र, लाम्भूक (सं० त्रि०) नित्यनाही, प्रतिदिन लेनेवाला। विचित्रिक, आन्त्री, विकृतधावा. मुकुल, विलोलक, रम- लय (सं० पु० ) लो-अच । १ विनाश, लोप। २ संश्लेप, णीय और करकण्टक । (सङ्गीतदामो०) मिल जाना।३ प्रलय, प्रकृतिका विरूप परिणाम । वेदान्त- यह समता नाचनेवालेके हाथ, पैर, गले और मुं इस सारमें लिखा है, कि अखण्ड वस्तुका अवलम्बन कर प्रकट होती है। सद्गीतदामोदरमें हृदय, कण्ठ और चित्तवृत्तिकी जो निद्रा होती है उसको लय कहते हैं। कपाल लयके स्थान माने गये हैं। "अखण्डवस्त्ववन्नम्बनेन चित्तवृत्त निद्रा" (वेदान्तमा०) ५प्रवेश, एक पदार्थका दूसरे में मिलना या घुसना । सुबोधिनी-टीकाके मतसे यह लय दो प्रकारका है, प्रथम । ६ एक पदार्थका दूसरे पदार्थ में इस प्रकार मिलाना ,