पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/१९६

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लपन-झलन २१ यह तदप हो जाय और उसी सत्ता पृथक न रह जाय। को जब मृत्यु हो गई, तव उनके भतीनेको मामिक वृत्ति ७ चित्तको पृतियोंका सव ओरसे हट कर एक ओर देकर यह सम्पत्ति धार भोर दयाम राज्यमें मिला कर प्रवृत्त होना, ध्यानमें पूषना। ८गृढ अनुराग, लगन। ली गइ। । कार्यका अपने कारण समाविष्ट होना या फिर कारण लज (दि. पु० ) सितारफे एक तारका नाम । यह छ फे रूपमें परिणत हो जाना। १० स्थिरता, विश्राम। तारों में पाया और पीतल्या होता है। ११ मूछौं, ये होगी। १२ यह समय जो किसी स्वरको ललक ( हिनी ) प्रथल मभिलापा, गहरी चाद। निकालने लगता है। यह तीस प्रकारका माना गयो हलना (हि.मि.) १ किसी स्तुको पानेको गहरी है-द्रुत, मध्य और विलवित। १३ एक प्रकारका इच्छा करना, ल्लयना । २ अमिलापासे पूर्ण होता, चाह पारा जिससे चैदिवालम खेत जोत र उसको मिट्टी की उमगसे भरना। को सम या वरावर करते थे। इसका उल्लेख शुरु | ललकार (हिं ० स्रो०) १ युद्धके रिपे उच्च स्वरसे हगाहान, यशुदा वाजसनेयसहिता है। (स्त्री० ) १४ गाने प्रचारण हाक । २ किसीको पिसी पर माकमण करने स्वर, गाने स्वर निकालनेका ढग। १५ गीत गानेका । के लिये पुकार कर उत्साहित करना, रडनेका वढाया। ढग या तजे, धुन । १६ सनातर्म सम। १७ ला | ललकारना (हिं० क्रि०) १ युद्धपे लिये उच्च स्वरसे मजक, लामन नामक तृण । (नि०) १८ आवरणा आहा वरना,हक लगाना। २ पिसी पर आक्रमण त्मकदानेवाग। परनेके लिये किसीको पुकार कर उत्साहित करना, लयन (सी०) १ विश्राम, शान्ति । २ आश्रय, विश्राम रडनेके लिये उकसाना या बढाना देना। स्थान | ३ माधयमहण, पनाह लेना। हरचना (हि. क्रि०) १ लालच करा, पानेकी प्रपल त्यपुत्री (स. स्त्री०) लयस्य पुत्रीय, नर्सको । रच्छा करना । २किसी वातकी प्रबल आकरना, लययोग ( स० पु०) तनोत साधनयोगभेद । लालसा करना। ३ मोहित होना, लुग्ध होना। (प्राणतो. २४० ११) ललचाना (हि. कि०) १क्सिीफे मनम लालच उत्पन्न लयला मज-पारस्योपाप्यानोक नायक नायिकामेद। करना, लालसा उत्पा करना । २ मोहित करना, तुमाना। इनसे प्रेम चितफे आधार पर यगला भाषामें एक प्राय ३ कोई अच्छो या लुभानेवाली वस्तु सामने रख कर लिखा गया है। फिसीके मनमें लालच उत्पन्न करना, फोह वस्तु दिसा स्पा-छोरा मागपुर विभागातर्गत एक शैलश्रेणी।। र उसके पानेके रिपे अघोर करना । या सिंहभूम जिले ठफ पूर्व पश्चिममें फैली दुइ। लचौहाँ (हिवि०) लालचसे भरा, रलवाया हुआ। लपारम्भ (स० पु०) रुपस्य भारम्मो पस्मात् । नट। | ललजिह (स० पु०) लल ती निहा यस्य । १ उद्र, ऊर । लयात्म्य (स० पु०) वापमालम्यत इति लाम्म अण । नट। २ ५ कुत्ता। (त्रि०) ३जीम एपलपाता हुमा। लरबराना (हि.क्रि.) सदस्खडाना देखा। | ४ भयकर, खूमार। लरजना (हि.मि.) फापना, दिलाना। २ भयमीत / ललदम्बु (स.पु०) एलत् चल दम्बु यन। लिम्पाक, होना, ददल जाना। पर प्रकारका नोवू । लरजा (पा० पु.) १ कप, घरपराहट । २५ प्रकारको रलदेवा (हि.पु.) एक प्रकारमा धान जिसकी फमल स्यर पिसमें रोग शरार ज्यर आते दा कांपने लगता | भगहनमें तैयार होती है। १जूदी। ३ पम्प, भूचाल । रन (सं० को०) लल ल्युट । १ पलि, कोहा॥२ चाला लरायर-मध्यमारतकी भोपार पनेन्सीफे घार और देयाम गनेकी प्रिया। (३०) रल्यते ईप्स्यते इति लल राज्य अम्तगत पर विभाग भू-परिमाण ३० वर्गमोल धर्मणि स्य । ३ प्यारा पालक, दुलालका। हैं।१८८१ याक पागीरदार रामचन्द्र राव पोयार ! ४ लटका, बार। ५नायपके लिये पारागार Fol, 151