पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२०३

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२०८ लवन मानी जाती है। पहले इसको पनीरीमें एक एक फुटके ) हार होता है। जमनराज्यमें कालिक एसिडके साथ फासले पर वो देते हैं। इसका विशेषतः ताजा वीज ही यह मिलाया जाता है। ४ मास लवडाका तेल एक वोया जाता है। चार पांच सप्ताहमें वीज उग आते हैं। गेलन स्पिरिटमें मिलानेले लवनसार (essence of पौधे जव चार फुट ऊने हो जाते हैं, तब उनको पनीरीसे glores ) धनता है। उखाड कर चीस फुटकी दूरी पर वागमें लगाते हैं। जहां वेनफुलेन, पिना, आम्बयना और जंजीवारका लवर यह लगाया जाय, वहां की भूमि पोली और दोमट होनी सवने उमदा होता है। औषध जो सव लवड व्यवहत चाहिये। मटियार, वाल या दलदलमें उसकी खेती नहीं होते हैं उनकी गध वडी कटी होती है। नाविनसे दवाने होती। यदि वाली मिट्टीमे वालू मिला हो और उसके। पर उनमेंसे तेल निकल आता है। भारतवर्ष के बाजारों में नीचे पीली मिट्टी तथा कङ्कड़ पड जाय, तो लवङ्गका पेड, जो सब लबद्द पाये जाते हैं वे पुराने पेड़के हैं। इस वहुत शीघ्र वढता है। बहुत घनी छाया पौधेको हानो कारण किसी विशेष कार्यमें उनका व्यवहार नहीं होता। पहुंचाती है । पनीरी बैठानेके समय प्रायः वर्षाका | आकृति, वर्ण और आभ्यन्तरिक तेलकी परीक्षा करनेसे आरम्भ है। बैठाये हुये पौधेको दो तीन वर्ष तक धूपसे ही लवङ्गका प्रभेद सहजमें जाना जा सकता है। बचानेके लिये प्रायः छायाकी जरूरत पडती है। आंधीसे लबग उसेजक, वायुनाशफ और उत्कृष्ट गधयुक बचानेके लिये इसके बागको धनी झाड़ीसे रुधाई करनेकी होता है। दीर्घकालस्थायी उदरामयमें, पाकस्थलीकी आवश्यकता होती है। कभी कभी इसमें आवश्यकतानु- वेदनामे तथा गर्भावस्थामें जो लगातार यमन होता रहता सार पानी भी दिया जाता है। तीसरे वर्ष इसके ऊपरसे है, उसमें यह विशेष उपकारक है । डा० ऐन्सलिने छाजन हटा ली जाती है। छठे वपसे फूल आने लगता शारीरिक अवसन्नता और अजीर्ण रोगमे दिनको दो या हर बारह वर्ष पौधा खच खिलता है और वीस तीन बार लवणका काढ़ा सेवन करनेकी व्यवस्था दी पचीस वर्ष तक फूलता रहता है। इसके बाद फूल कम | है। उनके मतसे आध पाईट गरम जलमें १ दाम लवन- आने लगते हैं। कलिया पहले हरी रहती हैं, फिर पोली चूर्णको सिद्ध कर १ वा २ औंस प्रतिवार सेवन करना और अन्तको गुलाबी रंगकी हो जाती है। वही उनके चाहिये। स्नायविक दुर्बलता और अग्निमान्धमें चिरा. तोड़नेका समय है, ये फलियां या तो बंधी हुई चुन लो | यता और लवणका काध विशेष उपकारप्रद है। इससे जाती है अथवा लकड़ियोंसे पीट कर नीचे गिरा दी प्यास, वमन, उदराधमान और पेटकी वेदना निवृत्त होती जातो हैं और फिर उनको इकट्ठा करके सुरवा लिया जाता है। गेठियानात, शिरःपीड़ा और दन्तशूलमें लवङ्गतैल है। यही लवन है जो दाजारों में विकता है। कुछ कलियां लगानेसे बहुत लाभ पहुंचता है। हकीमी मतसे इसका जो पेडोंमें रह जाती हैं, बढ़ कर फूल जाती हैं। फूल | गुण उत्तेजक और श्लेषमानाशक, विपनाशक तथा जव झड जाते हैं, तब नीचेका भाग फूल कर छोटी सो मस्तिष्क स्निग्धकारक माना गया है । यह चक्षरोगमें धुंडीके आकारका हो जाता है जिसमें एक या दो दाने | हितकर, हृदयका यातना-निवारक. वलकर और पुष्टि- होते हैं । यही घुडी वानेके काममें भाती है। लवङ्गकी | वर्द्धक है। कलम भी उसकी डालीको मिट्टी में दवानेसे तैयार को ताके वरतनमे अथवा पत्थर पर पद्ममधुके साथ जाता है । डेढ़ दो महीनेमें उसमें जडे. निकल आती है। लवङ्ग घिस कर आखके पलक पर लगानेसे पानीका इस प्रकारकी कलम जल्दी फूलने लगती है। गिरना और योजन्मत्वगोप (Conjunctivitis) चंद लवङ्गके भवकेसे एक प्रकारका सुगंधित तेल निकलता हो जाता है। लवङ्गको दीयेकी बत्तीमे जला कर खानेसे है। यह तेल वर्णहीन तथा कभी कभी हल्दी रंग-सा खुसखुसी खांसी दूर होती है। व्यञ्जनादिमें गरम मसाले- देखा जाता है। सुगन्धित द्रष्य ( Perfumery ) तथा के साथ और पानमें लबड्न सिद्ध कर खानेकी व्यवस्था चवीं, सावन और शरावकी गंध बढ़ानेमें इसका व्यव. वङ्गालमें अधिक प्रचलित है।