पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२०४

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२०६ लपक-वादिचूर्ण भ गरेनो भैषज्यतत्त्वम लपहल विशेष Oleum } का है। प्रस्तुत प्रणाली स्वल्पल्पनादि चूर्ण-उचङ्ग, Care sphy lin नामके प्रसिद्ध है। रासायनिक प्रक्रिया अनीम, मोथा, बेलसोंठ, अपचन, मोचरस, जीरा, घर को विशेष परीक्षा द्वारा इसमें Engenol या Engcmc फर,लोध, इन्द्रजी, अतिथला, धनिया, सफेद धूना, and Salier hc acid, Cary ophsilic acid Carnu पटगृङ्गी, पीपल, सौंठ, घगमाता, यवक्षार, सैघर- felltc and और सामान्य मात्रामें tinnic acid पाया लवण और रसाअन इन्हे परावर परावर भाग लेकर गया है। अच्छी तरद पीसे गौर एक साथ मिला दे । इस चूर्णकी प्रति वप १९०६८४१२० लयको जीयार, मादेन मात्रा १० रसोमे २० रतो, मनुपान चायलका पानी, मधु और भारतीय द्वीपोंसे बट्याल, बम्बा और मान्दाजमे । घा परीक्षा दूध पहा है। इस चूर्णका सेवन करनेसे मामदनो तथा यहाते रगलैण्ड और स्काटलैएड होने अग्निमा ध, प्रहणी और अतीसार आदि उदररोग नष्ट ट्रेटसेटर मेएट, पशियास्य तुराक, आदेन मास और होने हैं। हल्लपङ्गादि पूल-एन, गतीस, मोथा, अन्याम्य देशों में ३६७०४६, ०को रहनी होती है। पोपल, मरिच, सैधव, धूपा, धनिया कायफल, पुर, बैद्याके मतसे इसका गुण -शीत, तिक्त कटु जयित्री, जायफर मगरला, सचललपण, नागेश्वर, नेवहितधर, दीपन, पाचन, रुचिकर बफ पित्त मौर चितामूल, विरल्यण तितलौकी, पेलसोंड, दारचीती, अन्नदोषनाक, मृणा छर्दि, माध्मान तथा शूल आशु इलायची, रसाजन, घरफल, मोचरम, मानादि तेजपत्र, यिमाशा, काश, भ्यास, हिका और क्षयनाश । तालोशपत्र, पीपल मुर, वनयमानी, यमाना, परमाता, (भावप्र० राजनि०) जो सोंठ, अनारफे फरका छिलका, यवक्षार, नीमका "विमानसन्तप्ता तापिनी कापि कामिनी। छिलका, सफेद धूना, साचिक्षार, समुद्रफेन, सोहागेका सावधानि समुत्यज्य महये राहय ददौ ॥" (उद्ग) लाया, अतिक्ला, कूटजमूलका छिलका नामुनका छिलका ल्याक (स० को०) रपट म्याथै क्न् । लघड्न लोग। आमका छिलका क्टको, भयरफ, लोहा, गधक भोर एपहरन्दपत्री (स० स्त्री०) लघु सालोशपल, छोरा पारा प्रत्येकका समान चूर्ण । हे अच्छी तरह चूर्ण कर तेजपत्ता। एक साथ मिलाये। अनुपान मधु और चावर का पानी रुयालिका (१० स्त्री० ) स्पा लोंग। है। इसके सेवनसे प्राणी, अतिसार और प्रदर आदि स्वलता (स. स्त्रील)। गगका पेड या उसी नाना। रोग नष्ट होते है। २राधिकाको ९ मनोरा नाम । ३ प्राय ममोसेफे दूसरा तरीका-लयन, जीरा, रेणुक, मै घय, दार माकारको एक यगला मिठा। इसमें ऊपरसे एक लौंग, चीनी, तेजपत्र, इलायची पनयमानी, यमानी मोपा रोसा हुआ होता है और इसके अन्दर फुन्छ मेये और । त्रिकटु, त्रिफला, मोया, मारनादि, चिरायता, गोखरू, मसाले मादि मरे होते हैं। जेली, जायफल, दामहद्रिा, जटामासी, रसच दन, मूरा लपङ्गादि (स.पु०) जो रोगका जशोपच । प्रस्तुत मासो, कचूर, सौफ, मेधा, सोहागेका लाया, मगरेला, प्रणारी-लय सौंठ, मिर्ज और सोहोगा, परायर परा ययक्षार, साविक्षार, भतिवला, येसोंठ, दुर, चितामूल हर भाग ले कर अच्छी तरह चूर्ण करे। पोछे अपामार्ग पीपल मूल विडङ्ग धनिया पारा, अदरक, गधा भार मोर चिनेके रस ७ बार भावना दे। मगि पलावर फे लोहा, समान भाग चूर्णरे पर एक माथ मिलाय। मनुसार उपयुक्त माता स ओपधा सेवन करनेसे, मात्रा एक माशेसे रे कर मामघ तोल तक यढानी मोरोग दूर होता है। भैषज्यस्मायली में रमसीमाना पाहिये। यह चूर्ण अत्पन्त भनिद्विधारक और एक रसीदता है। प्रहपोरोग है। इससे मिया भन्याम्य उदर Pपहारिपूर्ण ( स० ही० ) प्रहणोरोगाधिकारोत चूपों रोगमें भी यह विशेष उपकारी है। (मपन्यरत्ना. अहणी पविशेष पहचूर्ण वन्य मौर हर्के भेदमे दो प्रकार | ऐगाधिक) . Not, x 53