पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२२६

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माता २३१ पडनेसे लाक्षाकीर मर जाने हैं। इसके सिवा पिपी । भूसा कुछ भी नहीं रहता, सब स्त्रिया उसे उठा कर सूप उिकामात ही इनके अपकारक है। ये सब वृक्ष पर में फटकती हैं। सूपमें परिष्कार करते समय ये अपरि चदर लामाकोटके मादा कोटर (Temale cell )में | कार लाक्षाचूर्ण अलग रख कर परिवार लाक्षाके दानों घुम जाती और उस पर रखे हुए मीठा मोमके जैसा | को लाह पत्तर दनानेक लिये उठा रखती हैं। अपरि सफेद छिलका खाने लगती हैं। इसस फोटरके कीडे कार लाक्षाचूर्ण चूडिहारोंके यहा वेव लिया जाता है। परिपुष्ट होने नहीं पाते। यायु मोर उत्तापकी प्रखरतासे | ये उसे गला कर भारतीय नियोंके हाथा अलङ्कार नष्ट हो जाते हैं। जिस वृक्षमें चिउटी लगती हैं उसकी बनाते हैं। लाह पुप हो नहीं सकती। फिर Gallerin और Tinen इसके बाद उन परिष्टत दानोंको पफ ल्ये लम भर श्रेणीके और भी दो प्रकारफे कीट इनके शत है। | जलम छोड़ देते हैं। नलके भीतर जल रहनेसे लहका क्यरत स्त्री-साक्षाकाटफे रगका 11 और छोटे छोटे | रग धीरे धीरे जर में मिल पर राल हो जाता है। ये मत्र कीडाको झाते हैं। दाने जलमें हिलासे गल कर छोटे छोटे दानोंम परिणत ___ रासायनिक परीक्षा द्वारा लाक्षामें विमिन पदार्थ हो जाते हैं तथा वर्ण पदार्ज ( Colouring matter) होना सावित हुआ है । डासा पदापोंमें विशेष विशष क्षासे एकदम अलग हो जाता है। मन तर उस रगीन गुण रहो तथा उसके सतत स्वतन्त्र कार्यमें थरहन जलको थिरानेक लिये एक बडे चहषच्चे, २४ घटे तक होनके कारण वाजारमें उसको विशेष माग है । अध्या रख देते हैं। नी की तरह चबच्चेको पे दीमे जव रंग पक हाचेरने विश्लेषण द्वारा देखा है, कि पल्लरमाएडत जम जाता है, तब पडी सारधानी ऊपरका जल राक्षामें ( Stick thc) ६८ भाग रजन १० भाग रग, ६ चहवच्चेसे निकाल दिया जाता है। पीछे उस सञ्चित भाग मोम, || भाग दूधके जैसा पदार्था, ६॥ भाग रगीन पदार्थको अच्छी तरह छान पर पावरतनमें रखते माड मोर भाग धृल भारि है। लाक्षाचूणमें ( eed | है। वहां सुनने पर जब यह गाढा हो जाता, तब उसे 12c) ८८५ रजन, १२॥ रग, ४॥ मोम गौर २ भाग। वरफीके आकारमें खण्ड खएड करके धूपमें फिर सुखा दूध तथा Shell lac में भाग रजा, १० भाग रग ४ | देते है। इसोका नाम 'लाक्डाय' है। माग मोम और २८ भाग नाइट्रोजन सम्यघीय पदाथ उपरोक्त जलधौत लाक्षाणको 'Seed lac' पहते हैं। रहता हैं। उनमारडोरवनका कहना है, कि Shell lac | उसे मामृतपादमें वापोत्तापसे तरह करके पात्र में लगे का रजन नामक पदार्ग भरकोहल और चरसे गल जाता हुप उत्तम नालीपथ द्वारा रजन मिराइ जाती है। इससे है। फिर उस धूने असे पदार्थका कुछ अश अलकोहलमें मीतवी राक्षा और भा तरल हो जाती है, बरतनमें गरता है, पर परमं नहीं गलता। यह दाना देता है। लगने नही पाती। उसर्प लाक्षाफीटको चयी (Unsaponified fat) तथा पूर्वकथित परतनके चारों ओर दस्तके कुछ नल सजे मोरिक और मासारिक पसिद्ध है। कुछ मोम और रहते हैं। उनका ऊपरी भाग १५ कोणमें झुका होता है। trecine भी पाया जाता है। मोतर पोल और हमेशा गरम अरसे भरा रहता है। झानाका पत्तर यनानेका तरीका-पहले पलपमण्डित जल बहुत थोडा गरम होता है, क्योंकि अधिक गरम होने लाक्षादो जति पास पर चूर्ण काना होता है। उसमें से लाहढी होने नदी पाती इस कारण पदभम भी से घास भसा चन कर फेकना होता है। पीछे उन नहीं मक्ती। फिर यदि ला दिलफल ठटीहोजाय तो लाया पाएडोंको प्रमशः फल पीजकी तरह छोरा करनेके | घहुत जल्द पडी हो जानेको सम्भावना है। ऐसी सिपे तीन या चार प्रकारक पातों में लगातार पीस और अवस्थामै उसमें सरल लाइ लगा कर बचनेमे घद उन चूर्ण पर धननोस छान लेते हैं। इस प्रकार छानत छानत दस्त के खमोम भटक जायगी। मतपप नियमित उत्तम जब पेपल साहका चूर्ण मेज पर गिरने लगता है मास ] जलसे उन दस्तेके चोगे भरे रहने पर एक थाइमोफे