पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२३३

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२३८ लागल्क लागलीशाक १ स्वनामस्यात भूमिकणयन्त्र, खेत जोतनेका हल । लागलापकठिन (स' त्रि०) १ लाट्नर अपकर्षणकारी, पर्याय-हल, गोदारण, सीर, हाल, शीर। २ शिश्न, . हल जोतनेवाला । (पु० ) २ बप, चेली। लिंग। ३ चन्द्रमाका अडॉन्नत न। ४ पुष्पविशेय, / लागलायन (सं० पु० ) लाङ्गलका गोलापत्य । एक प्रकारका फूल । ७ तालवृक्ष, ताड़का पेड। लागठाया (सं० स्त्री०) लागलिया क्षप, फलियारो नामका लालक (स० पु०) सुश्रुतके अनुसार हलके आकारका | पौधा। वह घाव जो भगदर रोगमें सुदामें शस्त्रचिकित्सा करके लागलि (म० पु.) १ फलियारी नामका जहरीला पौधा। किया जाता है । ( मुहूचि० ८ १०) २ जल-पीपल । ३ मसिष्ठा, मजीठ ! ४ पिठयन । ५ काँछ, लाङ्गलको (सं० स्त्रो०) विपलागुलिया, कलियारी नामका | केवांच। ६ चथ्य, चाव। ७ गजपीपल । ८ भूपभक जहरीला पौधा। नामकी अष्टयगोंय ओपधि। . महाराष्ट्री या मराठी लाङ्गलग्रह ( संपु०) लाडलं गृहाति (शक्तिलाशलाइ श नामको लता। यष्टितोमरघटघटीधनुःषु । पा ३२६ ) इत्यस्य वार्तिकोफ्त्या लागलिक (सपु०) लागलयन् आरतिरम्त्यस्येति अच । कृषक, खेतिहर। लागल ठन् । एक प्रकारका स्थावर विष। लालग्रहण (सं० क्लो० ) लाइलधारण, हल लेना या लाइलिका (मं स्त्री० ) लादलमियाकारोऽस्त्यस्या इति पकडना। उन-टाप । लाजि देखो। लागलचक्र ( स० क्लो० ) लामालाकारं च । फलित-लाङ्गलिकी (स० सी०) लागल ठन् टीप । कलियारी । ज्योतिपमें एक प्रकारका चक्र । इस चक्रकी सहायतासे पर्याव-अग्निशिग्वा, अग्निमाला, लालका, लागली, खेतीके सम्बन्ध शुभाशुभ फल जाने जाते हैं। गैरी, दीप्ता, नलिनी, गर्भाधानिनी, अग्निनिहा, इन्द्रपुष्पा, यह चक्र लागलाकार दनाना होता है इसीसे इसको अग्निमुखी, वहिशिखा। इसका गुण कुष्ट और दुटवण लालचक्र कहते हैं । जिस दिन गणना करनी होगी। नाशक माना गया है। (राजनि०) उस दिन सूर्याक्रान्त नक्षत्र मानना होगा। सभी नक्षत्रों को लागलिन् (सं० पु०) लागलमस्त्यस्येति लागल-इनि । यथास्थान विन्यास करके देखना होगा, कि उस दिनका १ वलराम १२ नारिकेल, नारियल। ३सर्प, सांप । नक्षत्र किस स्थानमें है। यदि दण्डमै रहे, तो गोको (ली.)४ पुराणानुसार एक नदीका नाम । (मार्क० हानि, यूपस्थ होनेसे स्वामिका भय, लाडल और योफ्तृमें ५७२६) ५ कलियारी। ६ पिटवन। मअिष्ठा, होनेसे लक्ष्मीलाभ होता है । अतएव लागल और मजीठ । ८ जलपीपल । ६ गजपीपल । १० कौंछ, केवांव। योक्तृस्थित नक्षत्र में खेती करनेसे शुभफल होता है। ११ चथ्य, चाव । १२ महाराष्ट्री नामकी लता। १३ ऋय. लाङ्गलदण्ड (सपु०) लाङ्गलस्य दण्डः। लाङ्गलका भक नामकी अष्टयगोंय ओषधि। (त्रि०) १४ लाङ्गल ईश, हलकी हरिस । पर्याय-ईशा, ईपा। निशिष्ट, हलवाला। लाङ्गलध्वज (संपु०) वलराम | | लागलिनी (सं० स्त्री० ) फलियारी, कलिहारो। लालपद्धति (सं० स्त्रो०) लाडलस्य पद्धतिः । लाङ्गलरेखा, लागली (सं० स्त्री०) लाङ्गलाकारोऽस्त्यस्याः इति लाल- वह रेखा जो जमीन जोतने समय हलको फालके धसनेसे अच् डीप् । लागलाकार पुष्प, जलज शाकविशेष। पर्याय- पड़ती जाती है। पर्याय-शीता, सीता। शारदी, तोयपिप्पली, शकुलादनी, जलाक्षी, जलपिप्पली, लागलफाल (सं० पु० क्ली० ) हलकी अकड़ीके नीचे पित्तला, श्यामादिनी, मत्स्यगन्धा, फलियारी । (राजनि०) लगी हुई वह लोहेकी चौकोर लंबी छह जिसका सिरा) २ शालपर्णी, सरिवन नामका वृक्ष । नुकीला और पैना होता है, कुस । लोगलीश (सं० पु०) एक शिवलिङ्गका नाम । लागलाण्य (स० पु०) कलियारी नामका जहरीला __ (सौरपुराण ६००) पौधा। , लागलीशांक (सं० पु०) जल-पीपल ।