पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२३७

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२४२ लाट उत्कीर्ण करो जो बहुत दिन तक रह जाय।' उसके। इसकी ऊंचाई ४२ फुट ७ इञ्च है। इसके गात्रमें नाना ऊपरी भागके चारों ओर चार और नीचे एक गिलालिपि प्रकारके कारकार्य है। देसी जाती है। पूर्वमुनी फलफके प दश छन्त्र तथा ___७ गाजीपुरस्तम्भ-गाजीपुरमें स्थापित एक वाच. सन्यान्य फलकोंकी लिपि इस दिल्लीस्तम्भका पार्थक्य ) म्तम्म । उसको वर्णमाला पूर्ण संस्कृत नहीं है। इस सूचित करती है । एक दूसरे फलकम चौहानराज विशाल | कारण लोग उसे आसानीसे नहीं समझ सकते। इसके (विग्रह ) देवकी विजयवार्ता उत्तीर्ण है। उसे पढ़नेसे गालमें जो शिलाफलक खोदित है वह इलाहावाद, मालूम होता है, कि उन्होंने हिमाद्रिसे ले घर विन्ध्य दिल्ली आदि स्तम्भोंकी तरह वौइस्तम्भके ऊपर स्थापित गिरि पर्यन्त समस्त भूभाग एकच्छवाधीन कर हुआ है। उसमें गुप्तव गीय समुद्रगुप्तसे युवराज महेंद्र- लिया था। गुप्तका नाम पाया जाता है। चौहान राजवंशकी गौरवनापक यह लिपि दो खण्डोंमें ८ रुपवास शैलस्तम्म-भरतपुर राज्यके रूपवास- विभक्त है। उसका अशि प्राचीन अशोक-लिपिके विभागमे एक बडे पहाड पर स्थापित है। वह अस- ऊपर और पाई उसके नीचे उत्कीर्ण है । दोनों लिपि । म्पूर्ण अवस्थामे पडा है। वडे स्तम्मकी ऊँचाई 3300 खण्डोंमें ही १२२० संवत् लिखा है। निम्न खण्डकी वर्ण- फुट और छोटेकी २२॥० फुट है। माला आधुनिक संस्कृन है। उसमें लिखा है, कि शाक- धौलीस्तम्भ-कटक जिलेके धौली प्राममें अवस्थित म्मरीराज विशालदेवने ११६६ ई०में वह शिलाफला खोदा है। इममें लाटवर्णमाला तथा बोच बीचमे बलभी था। इसी प्रकारका एक दृमरा लाटस्तम्न मीग्टसे | और सिवनी लिपिके यक्षरमाला देखी जाती है । उडासा दिल्ली नगर में लाया गया था। सम्राट अशोकने अपने विभागमें जो सब अगोफस्तम्भ प्रतिष्ठिन हैं वे सभी वालु- सुप्रसिद्ध अनुशासनका राज्यके मध्य प्रचार करनेके लिये पत्थरके बने हैं। जो सब स्तम्म स्थापित किये थे उन्हीमें परबत्ती गजन्य १० जूनरस्तम्भ-समें दो शिलाफलक उत्कीर्ण हैं। और चैदेशिक भ्रमणकारिवर्ग अपनी अपनी चीरकोति नानाघाटके स्तम्भ पर जो लिपि उत्कीर्ण है वह दिल्ली- उत्कीर्ण कर गये है। उनका नया स्तम्म बड़ा करनेम स्तम्भ और गिर्नर पर्वतस्थ जिलाफलक के साथ मिलना किसी प्रकारका कष्ट नहीं होता। सुलती है। गिरनारकी पहाडी-लिपिको जेम्स प्रिन्सेप्सने ४ दिल्लीका लोहस्तम्म-मसजिदके मध्यस्थलमें पाली बताया है। स्थापित है। ऊंचाई २२ फुट और बेरा १६ इञ्च है। लावलिपि। प्रतमत्त्ववित् प्रिन्सेप्सने उसे रीवा ४थी शताब्दीका महामति कर्नल टाउन राजस्थानको प्राचीन कीर्ति पना अनुमान किया है। उसकी गात्रस्थ लिपि कनोजी और स्तम्भखोदित लिपिमालो देख कर मुनकण्ठसे कहा नागरी' तथा अन्यान्य मिश्र वर्णमालामें लिखी है । इममें | था, 'पहले इन्द्रप्रस्थ, प्रयाग, मेवार, जूनागढ़को गैलमाला, हस्तिनापुर-राज्यापहारक राजा घर तथा वाहिकादि विजली और भारावल्ली शिनर पर स्थापित स्तम्मादिका, जातिका उल्लेख रहनेले वह ५वी सढोके पीछेश बना। पर्वत गाववादित लिपिका तथा मारतमें सर्वत्र प्रतिष्ठित मालूम होता है। जैन और बौद्ध-मन्दिरादिमें उत्कीर्ण शिलाफलकोंका प्रकृत ५निगमबोध-यमुनातीरबत्ती एक तीर्थस्थान तत्व मालूम होनेसे हम निश्चय ही भारतवर्ष के प्राचीन यह दिल्ली से कुछ मील दक्षिणमें स्थापित है। चांद कविके इतिहासकी आलोचना कर सकते हैं।" इस प्रकार विवरणमे पता चलता है कि चौहान राजवंशका गौरव. संकल्प कर महामती जेम्स प्रिन्सेप्स गभीर गवेषणाके प्रकाशक एक स्तम्भ यहां विद्यमान था। समी उसका साथै भारतीय प्रत्नतत्त्वका अनुशीलन करने लगे। लाट- नामोनिशान नहीं है। लिपिका उद्धार करने समय उन्हें मालूम हुआ, कि वह वाराणसीय अशोकका प्रशस्तियुक्त स्तम्भ ।। पाली और संस्कृत भाषाके मेलसे बनी है। उसके