पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२३९

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१४४ लाटाचार्य-लाठी धन एकन करनेके निमित्त किया आता है और इसमें 'लाटी (म० सी०) लाटिका रीति । लोगों को किस्मत आजमानेका मौका मिलता है । इसमें लाटीय ( म०नि०) लाटक, लाटजाति सम्बन्धी । एक निश्चित रकम टिकट बेचे जाते हैं और यह घोषणा लाटेश्वर-पश्चिम भारतमें स्थित ए7 जयतीर्थ। . की जाती है, कि एकत्र धनमसे इतना धन उन लोगों लाट्यायन (संपु०) श्रोतमूत्रके प्रणेता एक ऋषि । मे बांटा जायगा जिनके नामकी चिटें पहले निकलेंगी। लाठ ( हि पु० ) १ नाट देग्यो। ( स्त्री०) २ लाट देखो। टिकट लेनेवालीके नामको चिट किसी संदूक आदिमें डाल लाठी (दि. खो०) वह लंबी और गोल बडी लकड़ी दो जाती हैं और कुछ निर्वाचित विशिष्ट व्यकियोंकी। जिसका व्यवहार चलने में सहारे के लिये अथवा मार उपस्थिनिमें वे चिट निकाली जाती हैं। जिनके नामकी पीट आदिके लिये होता है, उंडा। चिटें सबसे पहले निकलती हैं, उसे पहला पुरस्कार : लाठी-१ बम्बई प्रदेशके काठियावाट विभागके गोहेल. अर्थात् सबसे बडो रकम दी जाती है। इस प्रकार वाड प्रान्तका एक सामन्त राज्य । यह अक्षा०२१ ४१ पहले निकलनेवाले नामवालोंमें निश्चित धन यथाक्रम से २१ ४५ उ० तथा देशा० ७१.२३ से ७१ ३२ पू०के वाट दिया जाता है। इसके लिये सरकारसे अनुमति मध्य अवस्थित है। भूपरिमाण ४२ वर्गमील है। यहां- लेनी पड़ती है। का अधिकांश स्थान पर्वतमालासे पूर्ण है। कहीं कहीं लाटाचार्य-एक प्रसिद्ध ज्योतिषी। | काली मिट्टी दिखाई पड़ती है। इस उार मिट्टी में गई, लाटानुप्रास (सं० पु०) वह शब्दालङ्कार जिसमें शब्दों को इत्र और उरद बहुतायतसे उपजता है । निकटवत्ती भाव पनरुक्ति तो होती है, परन्तु अन्वयमें हेर फेर करनेसे नगर बन्दरमें यहां के पण्यदृश्यको बरोद विको होती है। तात्पर्य भिन्न हो जाता है। ___भावनगर-राजवंशके प्रतिष्ठाताके मझले भाई शाई- लाटायन (म' पु०) लाट्यायन । । जीने यहाँके सरदारवंशकी प्रतिष्ठा की। इस वंशके लाटिका ( स० स्त्री०) गेतिभेद । चैदी, पाञ्चाली, एक ठाकुर सरदारने दामाजी गायकवाडको अपनी कन्या गौडी और लाटिका ये चार प्रकारकी रीति हैं। रचना घ्याह दी। उन्होंने दहेजमें अपनो कन्याको छमारी नाम पद्धतिको ही रीति करते हैं। भूसम्पत्ति दी थी। वैदी और पाञ्चाली रीतिकी मध्यस्थिता जो यह सम्पत्ति आज दामनगर नामसे विख्यात है। रीति है उसे लाटी कहते हैं। तात्पर्य यह, कि केवल घेदभी रोतिके अनुसार वा पाञ्चाली रीतिके अनु- गायकवाड-राज दामाजोने यह सम्पत्ति पाने पर अपने ससुरसे राजकर लेना छोड दिया। तभोसे यहां के सर सार रचना न हो कर इसके मध्य भावमें जो रचना दार उक्त सम्पत्तिका प्रायः निष्कर भोग करते आ रहे हैं। होगी वही लाटोरीति है। वैदमी और पाञ्चाली इन 1 और गायकवाहराजको प्रत्येक वर्ष एक घोडा भेज दिया दोनों ही रीतिके नियमका अनुसरण कर जो रचना होती है वही लाटी रीति है। करते हैं। उनका वार्षिक राजस्व ७३११० रु० है । इसमेंसे ____ इस गतिमें मृदु पदविन्यास होगा नाथच दोघ- वे बड़ोदा गायकवाड़को तथा जूनागढ़के नवावको एक समासबहुल और युक्तवर्ण यधिक न रहेगा तथा उचित साथ २००७ रु० कर देते हैं। उन्हें दत्तक लेनेका अधिकार चिशेषन द्वारा वस्तु विन्यास होनेसे यह रीति होगी। नहीं है। जेठे लड़के ही पितृपदके अधिकारी होते हैं। विशेषणका प्रयोग इस प्रकार करना होगा, कि वर्णनीय यहाँके सरदार वापुभा (१८८४ ई० ) गोहेलवंशीय राज. वस्तुके साथ उसकी सङ्गति रहे। पूत हैं । ये अगरे त राजसरकार में चौथी श्रेणीके सामन्त ___ दूसरा लक्षण-डम्बर-बन्धयुक्त रचना होनेसे गौड़ी गिने जाते हैं। ये अपने राज्य में किसी तरहका पण्यद्रव्य रीति, ललित-पदविन्याम होनेसे वैदभी, मिश्रभावमें | पर महसूल नहीं लगाने। पाञ्चाली तथा मृटु-पदविन्यास करनेसे लाटी-रीति होती २ उक्त सामन्त राज्यका प्रधान नगर । यह अक्षा० २१ है। (साहित्यद.६ परि) । ४३ उ० तथा देशा० ७१.२४ पू० के बीच पड़ता है। भाव