पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२४१

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लाड़खान-लाड़मूर्यवंशी २४६ तथा त्योहारमें ये बड़े समारोहके साथ उत्सव मनाते । करते है। हिन्दूकी सभी देवदेवीकी पूजाम इनकी बड़ी हैं। कोई भी गोमांस नही खाता। काजो इनका विवाह । भक्ति देखी जाती है। ये हिन्दु मा त्योहारोंको मानते और समाधिकार्य सम्पादन करते हैं। इसके अलावा ' और प्रति वर्गको सलौनी पूर्णिमाम सब कोई जनेऊ अन्यान्य सभी विषयोंमें ये हिन्दू-प्रथाकी अनुसरण करते, पहनते है। इनमे बाल्यविवाह और यहुविवाद चरता हैं। ये कुरान या कलमा नही पढ़ते और न मसजिदमें है, किन्तु विधवा-विवाह निपिड है। बालकका हो जाते है। दूसरे दूसरे मुसलमान सम्प्रदायके साथ , अष्टम वर्ष ही उपनयनका उत्तम काला है । १५से २० वर्ष बैठ कर खाने में ये घृणा करते हैं। तक लड़केका विवाह होता है। विवादका मन्त्र नैदिक लाडखान-एक मुसलमान राजा । ये अनसारङ्गके प्रणेता नहीं है । ये देशी भाषा में ही विवाह आदि कराते हैं। कल्याणमल्लके प्रतिपालक थे। । ये शवको जलाते हैं । मिर्फ दश दिन तक अशीच रहना लोडलडा (हिं. पु०) एक प्रकारका सांप जो प्रायः वृक्षों है। उसके बाद शुद्ध हो कर जातिभोज देते हैं। किसी पर रहा करता है। प्रकारका बगेडा खड़ा होने पर पंचायत उसका निवटेरा लाडलडैता (हि० वि० ) जिसका बहुत अधिक लाड़ हो, कर देती है। अपराधीको जुर्माना किया जाता है। प्यारा, दुलारा। कभी कभी दोपो जातिभोज दे कर छुटकारा पाना है। लाडला (हिं० वि० ) जिसका लाड किया जाय, दुलारा | लाइसूर्यवंशो-बम्बई प्रदेशके धारवाड़ जिले में रहनेवाली लाडली (हिं० वि० स्त्री० ) जिसका लाड किया जाय, एक नोच जाति। बकरा आदि काट कर उसका मांस दुलारी।

वेचना ही इनका जातीय व्यवसाय है। ये अशुद्ध हिन्दी

लाड़वानी--बम्बई प्रदेशवासी एक जाति । राजा कुमार.' बोलते हैं। पाल द्वारा दक्षिण गुजरातके लाट देशसे भगाये जाने , इनमे किसी तरहका श्रेणोविभाग नहीं है। पुल उत्पन्न पर ये लोग सम्भवतः यहाँ आ कर बस गये होंगे। घे होने पर नामि काटने के बाद ये जातबालकके मुहमें .-हिन्दू हैं । इनमें अगस्त्य, भरद्वाज, गर्ग, गौतम, जमदग्नि, : रेडी तेलको कई वृ'दे डाल देने है तथा पात्र दिन कौशिक, काश्यप, नैध्रुव और विश्वामित्र गोत्र प्रचलित एक वकरा काट कर गत्मीय स्वजनको मोज देने है। हैं। सगोत्र अथवा एक पदवी होनेसे इनमे विवाह । तेरहवें दिन अशौचके याद सब कोई बालकको गोद नहीं होता। ये हर रोज स्नान और कुलदेवताको पूजा लेते तथा नामकरण करते हैं। उसके बाद विवाह तक किया करते है । इसके अलावा तुलजापुरको भवानीदेवो, और किसी तरहका संस्कार नहीं होता । विवाहके दिन सताराके अन्तर्गत सिंगनापुरके महादेव, पण्ढरपुरके वर और कन्या एक उच्च वेदी पर बैठाई जाती और गाय. विठोवा आदि तीथोंमें ये सचराचर जाते हैं। इनका के पण्डित कन्या सम्प्रदान करते हैं। मन्त्र पढ़ते समय लौकिक आचार व्यवहार और वेशभूषा स्थानीय वे दोनोंके शिर पर हल्दीसे रंगा हुआ चावल छिडकत ब्राह्मणोंसे मिलता जुलता है। ये साफ सुथरे, मेहनतो, : है। विवाहके उपरान्त आत्मीय स्वजनका भोज होता है। आतिथेय और चतुर होते हैं। चावल, कपड़ा और मृत्युके बाद ये शवदेहको स्नान कराते और बिठा तरह तरहका मसाला वेचना हो इनका जातीय व्यवसाय कार कपड़ा पहनात है। इसके बाद उसे फूल है। प्रामवासी बहुतेरे लाड खेती-बारी करते हैं। की माला और अलंकार आदिसे सुशोभित सम्प्रति बहुत लोग फं लिख कर सरकारी नौकरी करने कर दफनाते हैं। तीसरे दिन ये उसी कब्र पर आ कर लगे हैं। स्त्रियाँ पुरुषोंके साथ दूकानमें अन्न वेचती हैं। दूध डालते हैं । यदि कोई अशुभ दिनमें मरता है, तो उस इसके सिवाय वे गृहस्थोका सब काम करते हैं। घरके सव कोई तीन महीने तक इस घरको छोड़ दूसरी घे स्थानीय ब्राह्मणोंसे समाजमें नीच और कुवियों- जगह जा कर रहते हैं। इनका विश्वास है, कि अशुभ से उच्च गिने जाते हैं। देशके ब्राह्मण इनकी पुरोहिताई। समयमें मृत्युके लिये जो दोष होता है, वह इस घरमें