पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२४९

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लामो २५४ ___ ऋग छओन होने पर भी वह शिक्षाकाल अनिक्रम, वर्य लगातार पास नहीं होता, वह मटसे बाहर कर नहीं सकता। इस समयले उसे कठिन परिश्रमके | दिया जाता है। सिर्फ धनधान्दा लडका हो वहुत रुपये साध धर्मशास्त्रादि अध्ययन करना होता है। शास्त्र चर्च करने पर मठमे रद्द कर विद्याभ्यास कर मरता है। देखनेके सिवा वह शिष्य हर तरहकी शिल्प या चित्र निर्धनका लड़का अगा वह फिर पढ़ना चाहे, तो वह विद्या सीख सकता है। पाठ याद नहीं करनेसे यह साधुना गृी हो कर दिन विताता है, लेकिन उसे संघा वेतको मार खाता है। उस समय जो आचार्य गेत्पुरको राम धिमी किसी मठको दाम्यवृत्त करनी पड़ती है। वौद्धधर्मका गूढ़ रहस्य बता देते हैं, वे 'सं वै लामा | अगर यह पीछे पारदशों हो, तो वह किसो गांवके मठका नामसे इस वालक द्वारा चिरदिन पूजित होते हैं। इस | लामाचार्य वना दिया जाता है। किन्तु उस समय वह समय अकसर उसकी परीक्षा की जोता है। लामाकी तरह प्रतिष्ठित होने पर भी उस पदका यथार्थ ____एक संघारामके अंदर प्रत्येक मठमें ही एक एक धर्मा- अधिकारी नहीं होता। चार्य रहते हैं। वे श्रेष्ठ लामा पहलाते हैं। सूत्र, विनय उपरोक्त परीक्षासे छात्रसंघका परस्पर विचार दहा दो और अभिधान नामक धर्म शास्त्रक किमी एक विषयमे अच्छा है। उससे छात्र को कैमी शिक्षा दी गई है, यह पारदी न हो सक्नेसे कोई भी ल.मा पट नही पाता। अच्छी तरह जाना जाता है। तिब्बतके सुप्रसिद्ध दे पुङ्ग, लामायों में से जो जितना धर्मशास्त्र पढ़ते हैं. वे उतने ही तपिलहनपो, सेर और गाल्दन् संघागममें समय समय पूज्य समझे जाते है। इस कारण गेत्पुरगण भी अपने पर ऐसी विचारसभा बुटाई जाती है। वहां करीव चारसे अपने उपाध्यायको अध्यापनासे एक एक विषयमे पार ले कर बाट हजार तक दौद्धयति इक है। इसको तिचती दी होते हैं। प्रतिदिन पढ़ने समय वटा वजता है। भापामें 'म्त्यान-भिद्' कहते है । इस मभामें यह भी इसी घंटेको सुन वे पाठगृइमे जा कर पाठास करते। विचार होता है, किनियोंने धर्मशास्त्र और धर्मतत्वका हैं और अपने आचार्गसे नया पाठ लेने है। इस प्रकार सारमगं समझा है वा नहो ! जहां यह सभा वैठती है आवश्यकीय पाठ समाप्त होने पर उनका इन्तदान लिया वह स्थान शालपेटकी डाली और पत्यरसे घिरा रहता ताता है। पहले एक वर्ष के बाद और पीछे एक या दो है। बौद्धयतिके अलावा और कोई भी उस समा प्रवेश वर्णकं बाद इम्तहान होता है। दोनों परीक्षामे जब तक | नही कर सकता । उस मभाके याच सबसे ऊचे पत्थर- पास नहीं होते, तब तक उन्हें चाय वनानी और संघके के आसन पर स्पपदस-मगोन्, उसके नीचे छोटे भासन वृदयतिओंकी आज्ञा माननी पडती है। पर मन्नान-पो और उससे नीचे गये बैठते हैं। उसके परोक्षाके समय प्रत्येक संघारामके सर्वश्रेष्ठ आचार्य चारों ओर दर्शकों के बैठने का स्थान सात भागोंमें वंश और यनिगण एक घरमें जमा होते हैं। वे सभो चुपचाप रहता है। प्रश्न करनेवाले हल्दो रंगका साफा बांध कर बैठते हैं तथा उनके वीच गेत्युल खड़ा हो कर अपना | दर्शकमण्डलीके समक्ष हाथ जोड अपना प्रश्न उठाते हैं। पाठ सुनाता है । अगर पढ़ते समय वह कहीं भूल जाता एकत्रित छात्रमण्डलोमें से जो उस प्रश्नका उचित उत्तर है, तो एक दुसरा वालक समोपमें खड़ा हो कर वतला दे सकता है, वही छाल लामाके आदेशसे उच्चश्रेणीमें देता है। पहली परीक्षामें सभी पढ़नेकी पुस्तकें इस चढ़ता है। भांति मुनानेमें करीब तीन दिन लगते हैं और हर दिन वर्ष भरमें सिर्फ चार बार प्रीष्म, शरत् । शीत और वह बालक नौ दफे विश्राम करने पाता है। इस मौके पर वसन्तकालमे यह विचार-सभा बैठती है। इस प्रकार वह पुनः आगेका किनाव देख्न सकता है। वारह वर्ष तक पढ़ कर सुपण्डित हो सक्ने पर बीससे जो वाला इस परीक्षामे उत्तीर्ण नहीं हो सकता, उस. चौबीस वर्षके वाद गेत्पुल अपने अध्ययसायक वल गे. को बड़ी लान्छनाके साथ घरसे बाहर ला कर 'छोस | लोट-पद पाता है। गेत्पुल होने के समय जिस प्रथाका समस्पा' उत्तम मध्यम प्रहार किया जाता है। जो तीन! अनुसरण कर उपाध्याय और श्रेष्ठ लामाका अभिमत