पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२५८

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लामा २१३ वरित लामा या श्रेष्ठ प्रमये पक्षानो हुए। उन्होंगी। है। लेकिन आदि पद्धति अनुस्न तथा भौतिकरिया कृपा तथा उत्साहमे ७३१ ६० तिबारे मम यास समाधित बिटम सम्प्रदायशी गाचारपड ति देखनेसे नगामें प्रथम बौद्धम प्रतिष्ठित हुना। वह मगध महामं जाना जाता है कि पद्मसम्भवने अपनी भोदण्डपुरीक सुप्रसिद्ध योममठके अनुसरण पर बनाया जमभूमि उद्या तथा काश्मीरम प्रचलित घोर ताविक गया था, म्यय पामस्मयने इस मन्दिरनी नोंच डाली और भोगरियाप्रसूत महागान सम्प्रदायका घौद्धमत भो । यसियर नान्तरक्षितने प्रतिष्टाशयम गुरको मासी ही स्थापन किया था । उसमें मवमूरक शैवधर्म और मदद पदुचाह थी। इसा मन्दिर में पहले लामा-मम्प्रदायको भूतोपासपोन् पा धर्म मिला हुआ था। प्रतिष्ठा तथा शानरक्षितने वहाका प्रथम आचाय गुरु पद्ममम्मयके जो पच्चीस शिष्य थे वे सभी या उपाध्याय दो कर तेरह वा तक कठिन परिश्रमसे भौतिक और भोजविद्या पारदशी थे। चे मलबरसे धमकाय चलाया था। वे स प्रति लामा समाज भूतोको घणमें कर तिवत अपने चलापे धर्मम पद्धपरि भाचार्गबोधिसत्यके रूपर्म पूजे जाते हैं । उनको धारणा | पर हुप । ति वतनामी वौद्धगण पद्मसम्भव के असामान्य है कि प्रसिद्ध बौद्धाचार्य नारिपुत्र मानन्द, नागा जुन, तिरोगा और उसके भोजविद्या प्रमान देन पर उनका शुभट्टर धागुप्त और ज्ञानगमा आदिको तरह घे स्वतन द्वितीय घुरूर्म पूजा करते गा रहे हैं । आज भी माप्रदायभुक्त थे। प्राची लामासम्पदायो के मठम उनका बाट प्रकारको तिबतक वाशिन्दे इस नामपर्तित लामा मतको धर्म | मुर्तिमी उपास होती है । नियतवासीका विश्वास है, यो योधन हैं मितुमचमुच उसमें प्रत बौद्ध कि गुर पदासम्मान समय समय पर यह विभिन्न मूर्ति धमका छापामात विद्यमान है। विक वाराबारमें | धारण को पी। घद सभ्यामरसे गिना जाता है। ना देवताकी उपा राजा थि सोड देत्सन् और जाके दो वशधरके सना तथा भौतिक किरा और भोजविद्याने उम प्राचीन | प्रगाढ उत्साहसे तिन्वत लामाधर्म सुप्रतिष्ठित हो कर सूक्ष्मतम धर्म को आश्रय र उसे ये रूप टिन धीरे धीरे फैल गया। वोन पा धर्माश्रित तिम्बतवासी किया है। इसके विश्वासी लोग "-" तथा जो आचरित प्रथाका मामञ्जस्यसाधक इस नवीन मतका इस मतसे बाहर है, चे 'णि दिर ' कहलाते हैं। प्रतिद्व दो नहुमा घर राना भयमे उसको पुष्टि की की उपाध्याय भान्तरक्षितक दाद "पल बट्स गा। उदोन समझ रखा था, यि इस मतमें शक करने साचा भासन प्रण किया , यधाा एय-स्तुग का कारण नहीं, पधि तु इसम नई गतिका सचार जिगस" सर्गप्रथम दाक्षित रामा हुप थे। शिक्षानी हुआ है । इसा कारण शपतात्म नरममें सिम्बत शिष्योर्मसे जामा मगोर घेरोवाहो सर्वापेक्षा मुपण्डित | चासोक अनुरत्त होनेय लामाधर्मको शोध दी पुष्टि और हुए थे। लामा समाजम युदक भ्राता और सहचर वृद्धि हो गइ। मिशियावर से लिवतवासी जितनी आनन्दक अवतार समझे जाते थे। रोचनने तिच्य मातमित उति घरते गये. उतनी ही लामाधर्म तीय भाषा, बहुत से सस्कृत प्रधोका अनुसाद सशरको आवश्यक्ता सूझ पह।। ज्ञानवृद्धि के साथ किया था। साथ धमपद्धतिका भो सस्कार होता गया, इसी कारण गुरु पद्मसम्मपन लामा प्रविष्टा और प्रारप्रसङ्ग निम्ताय धोरमका तीन युग निरूपण वर गप,-म में जो सब मागारानुष्ठान विधि, क्यिा था। उसके मादि युग अर्थात् रामा पि मोड देत्सनक राज्यालम जानना उपाय नहीं है । उनक साम्प्रदायिक पचास सामाधर्मा प्रतिष्ठास दोहोको ताहना तय मध्य शिष्य उनक तिरोधानकी कुछ मदो पाछे उगफ नातिन युग या लामाके सरल तक तया ३य यत्तमान प्ररत धर्ममत और पद्धति जो सपनप सकलन कर गय रामा ध या १७ सदाम धमाचार्य दह लामा हैं, उसमे सगपता उस समय आचार मादिका वणन ! प्राधय और राजत्यविस्तार ता ।