पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२५९

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लामा ८२२ ई० में उत्कीर्ण लासा नगरो गिलाफलकको। पड़ी। वे कालेसे रंगे घोड़े पर सवार हो नदी नैर कर पढ़नसे पता चलता है, कि तिब्बत और चीनवासिगण, भाग गये। जलमें घोडे का बनावटी रंग धुल गया, तीन परम पुरुष तथा पवित्रचेता माधुगण सूर्वा, चन्द्र, अमली रंग दिग्पाई देने लगा। उन्होंने अपना छन्मवेग फैक ग्रह और ताराओंकी उपासना करते थे, वही यथार्शमें । कर नया सफेट वन्न पहन लिया। इस प्रकार वे तुगीसे वहांका आदिलामायुगका निदर्शन गिना जाता है। नदी पार कर गये । कुसंस्कागच्छन्न तिब्बतबासीने उन्हें ७८६१० में थि-सोड देवमनकी मृत्युके. याद उसके ' दुसरा व्यक्ति समझ कर अश्या देवाक्ति सम्पन जान कर लडके मुथिन् मान-पो राजा हुए। अधिक दिन पीछा करना छोड दिया। नीरके थाघानने राजा पञ्चत्व- इन्होंने राज्य करने भी न पाया था, कि विप मिला कर ; को प्रान हुए। मरने समय उन्होंने कहा था, "चौद्धधर्म इनकी जान ले ली गई। पीछे इनके भाई सदन लोगस , उसादनरूप पापपड में लिप्त होनेने (२२) पहले क्यों सिंहासन पर बैठे। ये बौद्धधर्मका प्रचार करने के लिये , न मुझे मार डाला गया।' गजा लट्-दमें के मृत्युका. कमलालको निम्बतमें लाये थे। उनके लडके रालप- लोन इस चाफ्यस बौद्धधर्म में उनका विश्वास देम्ब उनके छन ८१६ ई० मे (दूसरे मनसे वी सदी मेष भाग) . बालक पुत्रको लामाओंके प्रति विन्दाचरण करनेका मिहासन पर अधिमद हुए । उनके शासनकालमें साहस न हया। इस प्रकार लामागण अपनो कोई हुई नामार्जुन, वसुबाधु और अ यंदेवकी प्रसिद्ध टीका और शक्तिवा पुनमदार र अपनी प्रतिपत्ति फैलाते समर्थ धर्मग्र योका भोटभाषामे अनुवाद हुआ। इसके लिया हुए थे। उन्होंने भारतवासी कुछ बौद्ध यतियोंको धर्मग्रन्योंका यी सदी के प्रारम्भमें भारत के नाना स्यानो लाम अनुवाद करने नियुक्त किया था । उन यतियोम स्थविर कर कामोरसे कुछ दौडयति नियत आये। उनसे मतिके शिय जिनमित्र, शीलेन्द्रबोधि. सुरेन्द्रवोत्रि,, स्मृति, धर्म पाल, सिद्धपाल, गुणपाल, प्रष्टापाठ तथा प्रजावर्मन, दानशील और बोधिमित्रके नाम लल्लेख प्रज्ञापारमिनाके अनुवादक सुभूति, श्रोशान्ति आदि नीय हैं। यतियों के नाम उल्लेखनीय । पीछे १०३८ २०में लामा- राजा रामपच्छनके बौद्धधर्मानुरागसे ईषा-परतन्त्र हो धर्मसंस्कारक सुप्रसिद्ध बौद्धचार्य, अनीगने तिम्वनमे उनके छोटमा दर्म बौद्धधर्ग पो हो गये। उन्होंने पदार्पण किया। वेलामाओं के निकट 'जो-यो-जै दपाठ- ८६० ई० में अपने भाई कोतमपुर भेज सिंहासन अपनाया। लटन अतोन' नाम से परिचित सौर देवनाको तरह सिंहासन पर बैठ वेलामा पर यथेच्छ अत्याचार सम्मानित हुए। करने लगे। यहां तक कि उन्होंनर और मटगे ध्वंस कर लामा-प्रत्यासियोंको जीवसाकारी कसाई का कार्य करने के लिये बाध्य किया था। इसके मिया इनके * भारत में वे दीपहर श्रीशान नामसे प्रसिद्ध थे। उनके हुकुमते कितने वोडनन्य जला दिये गये थे। . पिनाग नाम कल्याणश्री तथा माताका प्रभावती था। भोट- बौद्धधर्म के प्रति जो उनका घोर विद्धप था, वह इतिहासले मतने बगानके गौड़-गन्यो अन्तर्गत विन्मपुरले धहुकाल स्थायी न रहा । उनके राज्यकालका तीसरा वर्ष राजमे १८०० उनका जन्म हुआ। वे गोदपटपुरि- बीतने भी न पाया था, कि लालुड्यासी लामा पाल दोर्जे विहारमं आ कर बौद्ध-यतिधर्ममे दीक्षित हुए थे। मुवर्णदीप पा मुखोम आदिने भयावह वेगभूषा पहन कर उन्हें मार! मुधर्मनगरले वादाचा मुपरिचित चन्द्रकीर्ति, महाबोधिविहारले डाला। लामा पालढोर्जे वाउल जैसा सद्भत उपाध्याय मतिवितर तथा महासिद्धि नारो निकट उन्होंने पहनाफा पहन कर राजमहलके सामने नाचने लगा। महायानमत और महासिद्धिका बम्याउ किया था। तिब्बत. राजाओं ही उसे देखने आये, त्योंही लामाने उन्हें वाण-! यात्रारानमें वे मग विक्रमशिला सद्वारानके अध्यापक पद पर - से विद्ध कर डाला। राजसेना उसे पड़ने के लिये दौड नियुक्त थे । राजा महीपालके पुत्र नयपान उनके समसामयिक थे।