पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२६०

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लामा २६५ मतारा प्रधान शिष्य सोम टोन सस्कृत दिम सम्म । एक सदुधर्मप्रतिष्ठाक उद्देशसे प्रसिद्ध शाक्यके श्रेष्ठ दापफे प्रधान महन्त हुए थे। यह सम्प्रदाय साढे तीन लामा (शाक्य पण्डित नामसे परिचय ) अपती रान सौ वर्षके बाद तिम्वतके सुप्रसिद्ध गे-लुगप सम्प्रदाय समाम बुलाया और बौद्धधर्म प्रहण किया। तभीसे पद पपसित हो उसा नामसे प्रतिष्ठित हुभा। अताशक एक नइ शक्ति पा र राजधरूपमें तमाम फैल गया। प्रवत्तिव यादम पमम्प्रदायरे मनुकरण पर मई मस्कृत विशाखाँने अपने धर्मोपदेया शाफ्यपण्डितको पर ग्यु पनपा शापय प सम्प्रयकी उत्पत्ति हुए थी। लामाधर्ममण्डलके गुरुपद पर अभिपित किया तथा १९या सदीफे शेष भागमें लामाधर्म की जद मजबूत ! उस चीनराज्यपौरोहित्यके पुरस्कार स्वरूप तिव्यतराज्यका होने पर मी शाक्य प्रभृति स्थानों में उसके प्रनियोगो शासनमानाया। इसके बाद १२.१ ३०में उन्होके सम्प्रदायकी उत्पत्ति हुइ। वे सब सम्प्रदाय स्पन व भाष यनमे उत्त पण्डितके भतीजे मतिध्वज फागसप से पारमाधि- मएडर स्थापन पर अपनी पौराहित्य | उपाधिय साध श्रेष्ठ धर्माचायके पद पर प्रतिष्ठित हुए। शान्तिका विस्तार करन लगे। घम याजकोंका शक्ति द्धिके राजाको पाले हे गेम पॉपकी तरह अधिकार साप साथ स्थानीय सरदारोंको शाति हास होने लगा। मिला था। इमी मौकचीन और मोडल-जातिो तिम्वतके नाना सम्राट मुविला जनि लामाधमकी उमतिके लिये श्याम भाकरमपनी गोरी जमा। । बहू परिश्रम और अव्ययसे मोहलियाफे नामा १२०६ १०में बानमोगलफे पशधर जेनधिज स्थानों में तथा पेकिन नगर में एक बहुत पडा सघाराम (लेडिस) पनि तिव्वत पर अधिकार पिया। उनके घश | बोला था। उन्होके उत्साहम शाक्यपण्डित मतिध्वजने घर प्रसिद्ध वानसनार सुपिला (कुरलाइ) खो वर्वरने) पण्डितोसे समाप्त हो लामाधमक प्रसिद्ध कर ग्युश मशिक्षित और असभ्य प्रधान चीन और मोगलीयराज्यमं | अन्य मोगलीय भाषा अनुवाद किया। परबत्ती मुगल बादशाहोंके अधान शापय पुरोहितोंको १०३६ में मामा 'नग तमाफ साय जब प नारिखारमुम राजकीय प्रधानता धीरे धीरे बढती गइ तथा उन्होंने पथसे लिम्वत्र भाये, उस समय इनको अवस्था ६० षषको या। प्रतिद्वन्दी लामासम्प्रदायके विरुद्धाचारी हो उन पर उौन यहा मा पर कामाधर्मका सस्कार करना चाहा। १०५२ अत्याचार करना शुरू कर दिया। १३२०३०मैं उन लोगोंने में सामा-नगरके निकटवर्ती समठाइ सहारामम उनका दिपुङ्गा सुप्रसिद्ध स्यु पसघाराम जला डाला था। दहान्त हुमा क्षामामतके सस्कारकादमें जित हो उहौने १३६८ १०में मिनराजवश चौनसाम्राज्यफे सिंहासा स्वमतप्रतिपादक कुछ प्राय लिखे। उन प्रयों के नाम य हैं - पर बैठे। उक्त वशीय सम्राटीन शाक्य पण्डितोंकी क्षमता बोधिपथप्रदीप, चयासंग्रहप्रदीप, सत्ययावतार, मध्यमोपदेश खविरनक उद्देशसे कर ग्युप दिन और कदम संप्रगर्भ, दयनिश्चत, पोधिसत्वम यापना, बोधिसत्त्वकर्मादि । तपर सघारामफे तीनों भाचार्या को तदनुरूप श्रेष्ठ पौरो मार्गावतार शरणागतोपदय, महापापथसाधनवणसाद महा , हित्य शक्ति प्रदान की थी। य नपथसाधनसंपर, सूत्राधसमुघयापदेश, दशकुशलकर्मोपदेश, । १५वीं सदीके प्रारम्मम लामा तसोडसपने कर्मविमा माघिसम्भरपरिव, साकोत्तरसप्तकषिधि गुरक्रिया : सतीश प्ररित सस्त-लामाधमा पुन: सस्कार कर क्रम, चित्तोमादसम्बरविधिकम, शिक्षासमुचय भमिछमय ( मुवर्ण गेलुग-प नामसे उसका प्रचार किया। इस सम्प्रदायने दीपाधिपति राजा घमपातने दापकर मौर कमको जा धर्ममिला। धारधीरे श्रीवृदिलाभ कर तिम्पनी प्रचलित भयाग्य दी थी यही उसका सारमम' है ) और विमारकालाक । तिव्यत सम्प्रदायको कमजोर कर दिया । पाच पीढोफ भीतर इस पात्राकानमें दोपहर भतीशने मन्तिम तय मगधराज नयपाक्षको मम्प्रदायक प्रधान धर्मयाजक तितके पुरोहितराज पद दिग्व मेजा या तिप्दवमें ये बोधिसत ममा मयतार कर कर विधात हुए। उन साम्प्रदायिक प्रधान धर्माचार्य पर पूजित है। माज भी उसा सम्मानसे भूपिन है। Yol, , 67