पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२६७

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लामा १६ सोद नम दपल। , उगा-फुरेन नामक स्थानमे वास करते हैं। वे लोग जेत् २० यंव-व-तसन पोयेर । सुन-दम्प नामसे परिचित हैं। खलकवासी मङ्गोलियोंका २१ हङ-व तसुन। विश्वास है, कि सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक लामा तारनाथ ये मठाचार्यगण भाज भी 'शाक्य पन छेन' कहलाते उन लोगोंके जेत्सुन दम्पियों के शरीर में वार वार अवतीर्ण है । भूटानके मठाचार्य महालामागण कर ग्यु प सम्प्रदाय हो धर्म विस्तार करते है । मङ्गोलियोंका उर्ग सडा- के दक्षिण-दुक प शाखाके अन्तभुक्त हैं । इन भूटानियों के : राम पहले शाक्य-सम्प्रदायभुक्त था। पीछे यह गे लुप शरी मदोके पहले वङ्गालको उत्तरी सीमा कोचविहार पर साम्प्रदायिक मठाश्रममें परिणत हुमा है। आक्रमण क्यिा। भूटानोदल में कुछ तिष्यतीय सैन्य भी, सम्राट का हि'के शासनकालमें (१६६२ १७२३ ६०) थे। उनके अधिनायक टुपगणि येपतुत नामक एक पीतनदो तोरस्थ कोको-खोतान नगरमें धर्माचार्य जेरसुन् लामा क्रमशः सेनाओं के ऊपर आधिपत्य फैला कर धर्म दम्प रहते थे। उस समय कालमक या स्लिउथ जातिके राजरूपमे गण्य हुए। उनके मरनेके बाद उनकी भात्माने साथ पलकोंका झगड़ा खडा हुमा। हल्कोने परास्त हो लोगोंको धारणाके अनुसार लासानगरीके जिस बालकके कर चीनराजका माश्रय लिया। इस पर कालमार्कोने शरीर में प्रवेश किया था, उसीको भूटान लाया गया। यह चीन-सम्राट के निकट जेत्सुनदम्प भौर उनके भाई राज. लामावतार 'रिनपोछे' और 'धर्मराज' कहलाता है। कुमार तुश्छेतु खांको उन्हें प्रत्यर्पण करनेको प्रार्थना बालक लामाने राजदण्डपरिचालनके लिये जो अभि । की । किन्तु सम्राट के राजी नहीं होने पर उन्होंने दलई- भावक नियुक्त किया ये ही देवराज कहलाये। लामाको मध्यस्थ बनाया। एलई लामा वा उनके प्रति- भूटानके लामाचार्यगण। निधिने विचार करके उक्त दोनों राजकुमारोंको सौंप १ डग वड नमाल दुद मोमोजें। देनेका हुकुम दिया। इससे सम्राट के साथ कालमाक २, झिग मेद तंगस पा। जातिका युद्ध हुआ । इस समय एक दिन सम्राट जेत्सुन ३ ॥ छोस् क्यि ाल मत्सान । दम्पसे मिलने गये। जेत्सुनने उनका अपमान किया। झिग मेद हड पो। राजाने क्रुद्ध हो कर उनका शिर कार डालनेका हुकुम " शाक्य सेङगे। दिया। इस घटनाले खल्क लोग विद्रोही हो उठे भौर , झम यङसाल मतयान | जेत्सुनदम्पने यह घोषणा कर दी, कि वे सम्राट से ७ , छोस पिय द्वड फुग। खुल्लमखुल्ला युद्ध करना चाहते हैं। चीन-सम्राट ने ८ , झिग मे तंगस प (द्वितीयवार अवतीर्ण) विद्रोहकी सूचना देख दलई-लामाको शरण ली। उनके ६ , नोर्यु । विचारसे यहा स्थिर हुभा, कि जेत्सुनदम्पके तोरवती १० , , , छोस र्याल । अवतार तिब्बत में ही होंगे। खल्कवासिगण इसी समयसे इन दशों लामावतारको स्वतन्त्र जीवनी है। प्रथम - स्वदेशप्रेमिक श्रेष्ठ पुरोहित होनेसे पश्चित हुईं। लामा विवाहित और महालामा सोनस ग्यत्योके सम मभी मध्य वा पश्चिम-तिध्वतसे ही साधारणतः सामयिक थे। अवशिष्ट लामागण ब्रह्मचर्यावलम्बी है। जेत्सुनदम्पका भवतार भावित होता है। वर्त्तमान धर्मराज प्रीष्मकालमें तपिछा दुर्गमें रहते हैं। वह जेत्सुनदम्पका लासा-नगरोके बाजारके समीप जन्म प्रासाद पत्थरका वना और सात मंजिला है । यहां प्रायः हुआ था । घे देपुङ्ग सवाराममें गेलुग-प लामा विद्याधी ५ मौ वौद्धयति रहते हैं । नेपालघासी लामाओं पर ये ही रूपमें प्रविष्ट हुए । किन्तु उनके पाचवें वर्ण पदार्पण फर्गत्व करते हैं। गुर्खा-गवर्नमेण्ट उनके विरोधी करते ही खक्क लोग उन्हे उर्गा ले गये। उनके साथ नही हैं। देपुङ्ग लामा उनके शिक्षकरूपमें गये थे। स्वरकप्रदेशवासी मङ्गोलियों के प्रधान धर्माध्यक्ष भवतारकपमें पूज्य पूर्वोक्त धर्माचापोंके भलावा