पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लान मालू-मानम्बानी लाल माल (हि.पु.) १ रतालू । २ मह लारकान (हि. पु०) मानकीन दयो। राल इलायचा (हि. स्त्री० ) बढी इलायची। लालकुमारी-दिल्लोफे बादशाह जादान्दार शाहको एक इलायची देखो।। प्रियतमा रखेली। नाचनेवालाफ गर्भसे इसका जग्म रार उदोन-नजीबाबाद के नवायके माह। ये १८५७ ई० हुमा। जमानीर्म भी रालकुमारी वेश्याको तरह मह गदर में शामिल थे। इमलिये १८५८ ३० अप्रैल महीने में फिल मादिमें नाचतो गाती थी। इस सुरीली तान टिश राजके विचाराधीन हुए । और रूपलायण्य पर मग्ध हा पर सादान्दारने इस पर लालक (सं० लि.) १ लालनकारी प्यार करनेवाला।। आत्मजीवन समपण कर दिया। उमीक अनुप्रहसे (९०)२पक हिंदूराजा। इनके पौत्र इथिसिंहको क्न्यास , यह वेश्या राजफुलाङ्गनारूपम गिनी जाने लगी और कलिङ्गाराज पारवेल (भिसुराज )ने विवाह किया। उसका वश राजपुष्पोंस बडा भादर पान लगा। यहा कालगडू-लाल रगको कट्ट जातिकी एक चिडिया। । ता कि बहुत समय लालकुमारीके स्वजन उमरायोका लालकञ्चू (दि. पु०) गण मालू, वा अनादर कर येरोक टोक सब काम करते थे। लाल कलमो (दि.पु.) नांदनी या गुलचाँदनी नामका लाल मां-भारतके एक प्रसिद्ध गये। ये दिल्लीश्वर पौधा या उसका फूल । । अकदर शाह और जहागौर बादशा दरवारम रहते थे। पार कवि-एक भाषा कपि । पे राजा छत्रसाल हाडा १६०६ १० इन्होंने इहलीला सघरण को। कोटेवालेके दरवारम थे। जिस समय दाराशिकोह और ' लालखानी-उत्तर पश्चिम भारतवासी एक मुसलमान भोरङ्गजेब बादशाहीप लिये आपसमें फतुहा में लड रहे सम्प्रदाय । ये पहले राजपूत थे, पीछे इमलामघम प्रहण थे और जिस युद्धमै राजा छत्रसाल माहत हुए थे, उस करने पर अपने सरदार लाल सांके नामानुमार लाल खानी युद्ध पे कवि मौजूद थे। इन्होंने नायिकाभेदका 'णुि । गामसे परिचित हुए । क्लिास' नामक पr मापाका प्राय भी पनाया है। पे अपनेको राजपूतानेक गत राजोडके व २एक कवि । इनका नाम विदारीलाल था।ये गुर्जरयशोय ठाकुर-सामत कुमार तासिका यशधर मातिके ब्राह्मण थे और टिकमापुरमें रहते थे। इनका मानते हैं। कुमार प्रतापसिदन मेशडकी लडाइ दिली छाप नाम 'लाल कवि' था।पे सं० १८८५ में उत्पन्न हुए। श्वर पृथ्वीराजको सहायता की। युद्धर्म जाते समय थे और महाकवि मतिरामफ यशघरेमि सथे। पेहो। उन्होंने रास्तम मोना जातिका विद्रोह दमन करनेक लिये मपने घशके अन्तिम महाकवि कहे जा सकत है। कैला मोर अलीगढ डोर राज्यका साहाय्य क्यिा था, ३ बनारसके रहनेवाले एक माट। ये काशीनरेश इसलिये राना मुशीम रामकन्या उनको ध्याह दो भार राजा चेतसिंहफे दरबारम रहते थ। हान नायिकामद उहे बुलन्द शहरफ आस पासक १५० गार पुरस्कार या 'मानन्दरस' और सत्माकी रीका लालचन्द्रिका दहेजम दिपे। उक्त प्रतापसिंहसे ग्यारह पोढी बाद नामके दो प्रपवना है। गलसिहन जम्म लिया। मुगल सम्राट मार शाइने एक भापा-कवि । सस्त भाषा भी जानते थे। लालसिहकी घोरता मोर राजमति पर प्रसन्न होकर इन्होंने चाणक्यनीतिका भाषान्तर किया। उन्हें खान्की उपाधि दा। उसा समयसे यह राजयश लाल, ५पक हिन्दाफ विद्वान् । इनका पूरा नाम था रज्लू खानो नामस परिचित हुमा। लाल बाँके पील इतिमद लाल जो। पे गुजराता थे पर तु मागरेमें रहते थे। सपत्। राय मुगल सम्रार औरङ्गजेबके समय इसरामधममें १८८२में इसका ज म हुभा था। कहत है कि माधुनिक दाक्षित हुए । इतिमद रायस सात पीढो नीचे नहरालो हिन्यीक पही भाचाय थे। इन्होंने समापिलास, माधय | खो गौर उनक मतोजे दून्दै खान पुलन्दशहरफ मोना विलास, प्रेमसागर याचिक, राजनीति मादि का अन्य दुगर्म रह कर भरेम-सेनासे युद्ध दिया था। उन्होंने बनाये है। पीछे अपना अपना अपिष्टत प्रदेश दुर्गादिसे सुरक्षित पर _rol xx 70