लिङ्गायत
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भक्ति या अदा नही है। लिङ्गायन घालण पुत्र माराध्य । यह सोर पर उन्होंने इस विपिको क्लाना की है।
नामसे समाजम परिचित हैं सही, लेकिन शाद श्रेणोके दाक्षिणात्यके स्मूचे महाराष्ट्र गज्यम विशेषत' कर्णा
लिगायत: सता उनका पैसा मम्मान नहीं करते। य विभागमें स सम्पदायका अधिक याम है। ये
माराध्य लिंगायत ही प्रधानतः सस्थत शास्त्रको चर्वा लि गोपासनाके अतिरिक्त दूसरे किसी देवताको पूजा
किया करते हैं। इसके अलाया सामान्य मत और नहीं करते, जितु हिदूषे अपरापर देवर्ति प्रतिष्ठित
विशेष भत नामक इनर्म दो स्वतन्त्र विभाग देखे | मन्दिर, मुसलमानको मसजिद अश्या इसाइ गिर्जाके
जाते हैं।
सामने हो पर जाते समय ये शिरके उद्देशसे उन्हें प्रणाम
सामान्य भाके साथ सामान्य लिगायतका यथेष्ट करते हैं। उन घिभ्यास है, कि समी धर्मगृहर्म स्वय
प्रभेद है। सामान्य लिंगायत सम्प्रदायम सामाजिक
महादेव लि गरूपमं विराजित हैं।
मयादा और जातिमेद सम्पूर्णरूपसे विद्यमा है। विशेष
____ यायें हाथ मथवा गलेमें लिङ्गमूर्तिवा तापीज
मतगण सघतोभायसे इसा पिमोरिटानोंक समान हैं।
वाधना तथा कपालमें भरम लगाना साम्प्रदायिक पुरुष
वे लोग जातिभेद नहीं मानते) घेतावीज में भर कर
और त्रियोंका प्रधान धर्म है। वे साधारणत जाति
गले में जो लिग पहनते हैं, यह गयिगलु कहलाता है।
थेयी और मितथ्ययो, धीरप्रकृति, कर्मठ और सुसभ्य
शिवको मूर्तिको जगमलिग और मन्दिरमें स्थापित
होते हैं। सभी याणिज्य कर पालातिपात करते हैं।
मूर्तिको स्थापरलिग कहते हैं। उनकी धमपद्धतिमें
उनमें जातिगत घेणीविभोग नहीं है, सिफ गदवर
जाति पातिका विचार न रहो पर भी अपरापर हिदु |
दिगमीरे, जीरे, जोरेशल, काले, मितफर, परमाले पुराने,
सम्प्रदायको अपेक्षा उनमें जातीयताका कट्टरपन अधिक |
चार और घोरकर नामक कप उपाधियाँ हैं। भिन्न
देया जाता है। इस कारण चेम्वत नभायसे ध्यरसाय
मिन्न उपाधिगत व्यक्ति के बीच आदान प्रदाा होता है।
पाणिज्यमें लिप्त रह पर गपना अपना धर्म कर्म पालन |
पापा पुरुष और त्रियोंक नाम विशेष कर दर पार्वती रसे ज्ञात
करते हैं। कभी भी विभिन्न साम्प्रदायिकके लोगों के है। सभी घरमें कनाडी और बाहर, मराठी भाषा
माय पेठ कर नहीं पाते।मन्द्राजके देशी सेनाविमाग में बोलते हैं। वेशभूषा मराठिमों जैसा है-सभी निरा
लिगायत सम्प्रदायी
योनिमिया मिपाशी। उनके पुरोहित जम कहलाते हैं। इन
कभी भी दूसरे के साथ हनन्य पशु नहीं थे । यहा ता!
पुरोहितोंको वे बड़ी भक्ति करते हैं।
कि अपने मालिक भाशा देने पर भी उसे बाजारसे परोद
पुत्रवधू गभिणी होने पर पोहर भेज दी जाती है तथा
नहीं राते।
वहीं यह पच्चा जनती है। बालक के जाम होने बाद
ये लोग मतदाता गुरुको पूरी भकि और मान्य
धात्री गामि कार देती और पीछे पुत्रके जाम होनेकी
परने है। गौम् गुरु लिग और जगमफे अलावा उनके
| खबर पिताके घर पहुचाती है। खबर पाते हो जात
धम-धर्मके आचरणीय और कुछ भी नही है। ब्राह्मण
वालक्के पिता अपने आत्मीय, वधु वाधव और प्रति
धर्मको आधरित पुरोहिताहमें उनका विश्वास नही है।
घेशियोंक घर पान और चीनी भेज देते है । पहले,
ग्राह्मण लोग कही गारमें न वस जाय, इस सरसे थे
तीसरे या पांचवें दिन माताके गले में तथा जातबालक
गांरम मा फूओ आदि नही पोदते ।घारप्रभा नदीके
के शिरके नीचे एक लिग रखा जाता है। पांचवें दिन
पास कार दगी मगरके निक्रयत्ती पक गांप्रमें इनका
सध्या समय सूतिकागृळे एक कोनमें एक चतुष्कोण-
निदशन मिएता यहाके रोगगारमें फसाया ताला घर भक्ति कर उसमें चावल, मैदा और बाल स्थापन
खोद-वर घारप्रभाका जल अपने कामम लाते है।
करते और पीछे उस पर कागजका एक टुकड़ा और एक
पलम तथा नाचे छुरी जिससे नामि कारीगडोरख
साम्प्रदायिक स्वातनानिब धन प्र
देने है। उसीको पष्ठोदेवी जान कर प्रसूति प्रणाम
पौचलिक ब्राह्मण याजमा स्पृष्ट अल अक्षणोय नही है। करती है।
Vo xx 82
न ROTES
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३२०
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