पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३३८

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लुधियाना । ३४३, दृष्टिगोर नहीं होता, तथापि इसको समृद्धिका परिचय रणजित्सिहने राजकुमार तथा उनकी दोनों विधवा महामारदमें दिया गया है। माताओंक मरण पोषणके लिये सिफ ो ग्राम दान मुसलमानोंके अधिकारमें, राजकोट के राजपून | दिये थे। रायव शोय घडे प्रतापो थे , कितु पांछे थे इस्लाम ___ सन् १८०६ इ०में रणनित्सिहके तनीय आक्रमणके धर्मको मान कर मुमलमान राजा अनुप्रह पाव! बाद अगरेजों के साथ पावके राजाकी जो सधि हुई बन गये। सन् १४४५ इ०में इस राजव शने दिल्लीफे। थी उससे रणजित्सिंह शतद पार फरके भीर अधिर शैयदन्य शीय राजासे यह प्रदेश नागारस्वरूपमें प्राप्त राज्य हस्तगत नहीं कर सके । उक्त सधिके बाद अगरेजी किया था । १४८० इ०में दिल्लोके लोदी घशाय राजाओं के ने आग्ने अधिकृत राज्यको रक्षाके निमित्त शुधियानार्म उद्योगसे लुधियाना नगर बसाया गया। पूर्वोक्त शुनेत एक सेना निवास स्थापित किया । उस समय मिन्द- नगरको इट इत्यादि ले कर मुसलमानोंने इस नगरसे राज्यमें सेनायाम स्थापित होने कारण अगरेज लोग वमाया था 1 माज भी कहा अट्टालिकामों में अंगुल चिद्ध | मिन्दराज्यको पर देनेके लिये वाधित हुए । १८३५ १०में युक्त शुनेत नगरीको प्राचीन इ2 दिखाई पड़ती है। । मिन्दराज्यके योग्य उत्तराधिकारीके अमावसे लुधियाना __सम्राट वाधरने इस नगरको लोदी-यशीय राजाके के चतुष्पार्श्ववत्ती पितने स्थान अप्रेजोंके अधिकारमें दायसे छोन कर मुगल राज्यों मिला लिया। तभीसे आ गये थे जिससे वर्तमान लुधियाना जिलेकी उत्पत्ति ले पर १७६० इ० तक यह नगर मुगलाके गधोन रहा। हु । इसके बाद राजकोटके राजन शने फिरसे इस नगरको १८४६ इ० में प्रथम सिप युद्ध के बाद लाहोर राज्यका अपने अधिकार कर लिया। बहुलाश इस जिले में मिल लिया गया। तबसे इस नगर मुगल अधिकारमें यह स्थान दिलोके सवा सरदिन्द | फो उत्तरोत्तर वृद्धि होती आ रही है। इसके बाद सिप मरकारफे अधीन था | राकोटके रायवश इस समय | रोगोंके शातिभाव धारण करने पर अगरेजोंने इस इस जिले के पश्चिम भागमें इजारादार थे। मुगलरायके स्थानसे सेनावास हरा दिया। १८५७ १०के सिपाही मध पतन समय मुगल-राजाओं को गतिहीन देख कर चिद्रोहके समय इस स्थानकेटो कमिश्नरने थोडी राय राजा म्यागोन हो गरे। उौने इस जिले के अधि सो सेना ले कर दिलीका ओर बढनेवाल, जाल स्थ 'हत भाग तथा फिरोजपुरका कुछ अशले पर एक विद्रोही सेनाको गति रोक्नेको चेप्टा की, किन्तु घे विद्रोही म्वाधीन राज्य स्थापित किया। सेनासे पूरी तरह पराजित रिये गये। १८७२६० में दुका १७६३ ई में सिक्खोंने सरहिन्दको जीत रिया। सम्प्रदायके क्तिने घर्मा मत्त व्यक्ति राजद्रोही धन २५ उम समय इस जिलेका पश्चिम भाग छोटे छोटे यहा भारी अत्याचार करने लगे। अनजाने उन रिद्रोहियों राजाओ के अधिकारमें चला गया था । १८वों को यथोपयुक्त दण्ड ६ । उनक दलपति रामसिहको मताब्दीके शेप मागम राजकोटके सिहासन पर वार | यजाधिस्त ग्रह्मराक में पैर कर लिया। सिर, पखाव राजाको देख पर सिख सरदारोंने राजकोट-राज्य दिली (लपथ थोर सरहिन्दसालके विरतारकेसाघमाथ पर आमगण किया। इस समय दूसरा कोई उपाय इस स्थान शान्ति और समृद्धि उत्तरोत्तर वद गई है। न इन राजकोट के रामाने सौभाग्यान्वेषी मार १८३६ ४२ १०में प्रथम अफगान युद्धके वाद झाबुर तीय सामन्तरान जाज टामसस सहायता मांगो। राज्यले निकाले हुए सुलतान हसुजाक घाघर इस यो। १८०६ ई में महाराज रणजिसिंहने सिन्धुनद | नारमें वास करने हैं। को पार करसे इस विभागके सिख सरदाराको पराजित लुधियाना, जगरारन, र कोट । च्छय ., सामा किया। इस समय राजकोट- राके अधियत राज्य । और वहरपुर धादि नगरोन साधारण इस म्यान को मी रणमिति हने अपने हाथों पर लिया था। का वाणिज्य परिचरित होता है।