पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३४२

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से छिपी नधों है। सुमाई पातमाना अप्रेनीको आसामके युद्धमे पूरी तरह हो गया था। दर्तापत माने जाते हैं। ये राल सार मामा तसे लूट १८७१७२ ईमें लुसाइ आमाणसे अनेजा सेनाटलमें ) कर जितना धा समह कर सकते हैं उनके दल में उतनी जिस तरह खरवली मर गइ थी, यह इतिहास पाउ | ही अनुचरको सप्या पदती है। सर्दारगण अस्पानु सार क्रोतदास रखते हैं। लोगोंको युद्ध में विपक्षा इस परत आदि निवामा हो प्रधानत लुगाइ । -पक्षस वदो पर लाते हैं। क्रीतदासक अलावा ग्रामम् । जातिके नामले परिचित हैं । परतको तराइमें वास | प्रजाए अपन अपने परिशके लय धनमें से सरदारको परनेके कारण उनकी मिमिन जातिया वन गइ है ।। भाग दिया करती हैं। ये नाम उनके प्रधान सरदारों के 7TH पर ही रखे गये हैं। ल साइगण अगल काट कर झम प्रथानुसार असाइ पर्वतये सर्वोत्तर भाग; अथात् मणिपुर तथा धान्यादिकी खेती करते हैं । युद्धविना तथा वन्य नागापहाड मध्यमागमें कोइरेयि जातिका वास है। पशुका शिकार ही उन लोगों को अन्यतम उपजीविका है। उसके दक्षिण मागमें युपुइ जातिके रोग रहते हैं जा वे लोग 'गया' नामको गाय पार्नातीय छाग, शार माणपुर राज्यको प्रजामें गिने जाते थे। अरेनोंके तथा अन्याय गृहपारित पशु पालन करते हैं। वे इन मणिपुर इम्तगत करने वाद घे थप्रेमी राज्यके अधीन । गपालेको देवपूजाम उत्तम किया करते है। हो गये हैं। छाडके दक्षिणम्ध पहाडी भागमें असल पुरुष लोग हो गृहस्थोका काम करते है। ये पदिर ल सायास है। ये रमाइगण तीन प्रधान प्रधान) गोद हस्तिदात जगली सइ तथा मोम ले कर पळत सरदारों अधीत तथा तोन स्वताल नामसे पुकारे नाते | प्रातस्थित भ गरेजाधिरत नगरा पानारमें जा कर है। चप्रामके सीमा तम माइ नातिकी जितनी घेरते हे पव उत्सव पदले चावल लपण, तम्बाक तथा शाखाये हैं, उनम हॉलौंग, माइट तथा गङ्गलोनागण हो । पीतल के वतन सूती कपडे ए चादी खरीद लाते हैं। प्रधान है। रोग सर्वदा भ्रमण करत रहत हैं, कभी वे पूरी' नामक पर प्रकारको मोटा कपडा तैयार करके ए जगह वास नहीं करते। नलुओक माममणसे बचने | अपन पहननेक कामम राते हैं तथा वाजारमें जा कर सयरा भूमिको उधरतादिके सम्बधर्म समुविधा जान | घेचते हैं । खिया अलकार पहनना बहुत पसन्द करती घर पे अपनी पासभूमि परित्याग करके स्वच्छदतापूर्वक / हैं। कर्णालड्वार पहनने के लिये रमणिया कालके निम्नस्प अन्य स्थानमें घसा करते है। लु साइ सीमातमें इस मासखण्डमें छिद्र करके उसमें हस्तिदत या काद तरह किम्बदती है, वि ब्रह्मराज्य पूर्वपधित पाय खण्ड हाले रहते हैं। यह छिद भी कमा इसमा पद प्रदेशवासी सोनि जातिके आगमण नया उपद्रसे प्रपी | जाता है, कि उससे मुखारति विलफुल महो मालूम पड़ने दित हो पर ल साइगण पर्वतका पूराश परित्याग र रगती है। पुरुपगण दृढवाय तथा मासल होते है

  • दक्षिण तरफ अ गरेनोंक अधीन सामा त प्रदेशमै वितु उनको मुखारति सर्वदा ही विरक्तिसर तथा

आ पर बस गये है। उप्रभार व्यजा होती है। __आसाम सीमा तवाम अन्यान्य पाळत्य जातियोंक पहुत दिनोंसे ल साइजाति अगरेनोंक अघिटन राज साथ ल साइयोंका भने विषय पापिय दिखाइ पहता में मा पर दम्पत्तिकी पराकाष्ठा प्रदर्शन करते भा रही है। उन लोगों के बीच एक एक सर्दार रहते हैं। ये सदार है। लूटक समय वे मसख्य नरहत्या करते हैं और उर यहाँ पुरुषानुफमसे अपौ राजपदधे अधिकार है। प्रत्ये क शिर कार ले जाते हैं। अत्येष्टिवियाय समय नर माइ प्राममें एक ए ल रइन है । वे ही दलक। मुएट दान करनेसे प्रेतात्माको सदगति प्राप्त होगी, इस नेता बन कर विपक्षीक साथ युद्ध करते हैं । लाल सदार । म्रान्त विश्वासके वशवत्ती हो पर इस तरह के अमा गण साधारणत पिसीगनाशके दो होते हैं। मना नुपिक अत्याचार करते है। अड, धोइट्ट, विपुरा, ज्यापार सनकी भाशा पाती हैं एा ये ही प्रामक 'चमाम, पार्वत्य तिपुरा तथा मणिपुर अधीनस्थ सामत