पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३५६

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छेप्छा शय्या पर पहुए व्यक्ति पचों बुला पर अपनी | पत्थरका स्तम्भ खडा करके उस पर पताका रागते है । सम्पत्तिका भाग जिस तरह जिसे दनेको कहते है, उनकी रोग लेपछागण मृत्युफे ए मास घाद योझाको चुला मत्युफे पाद पर लोग उनके इच्छानुसार ही कार्य सम्पा कर प्रेतात्माको शान्ति तथा मङ्गलके लिये पफ दिन धाद्ध दन करनेको वाध्य होते हैं। करते है। इस समय एक जङ्गली गाय या छाग मारा ___ पहले हो उल्लेख कर चुका है कि अविवाहिता) जाता है एव सब कोई मद्यपान करके निशामें चूर हो पाए पिता मरनेके याद ज्येष्ठ भाइके द्वारा प्रति | जाते है। ये लोग इसी तरहसे यार्षिक श्राद्ध भी करते पारित की आती हैं। उन ल्याओंके विवाह न होने है। नये अनाज काटनेके समय प्रत्येक गृहकर्ता पितृ तक उनके माइ अथवा विवाहिता पन्या पैत्रिक सम्पत्ति पुरुषों के उद्देशसे नया तण्डुल, महुआ तथा पाना प्रकार का उत्तराधिकारिणी नहीं हो सना । पुत्र न रहने पर के अन्य खाद्यद्रव्य सजित करके उत्सर्ग करत है । उध निवाहिता कन्यापे ही पैत्रिक सम्पतिको अधिकारी हो । श्रेणोके खाम्या लेपछामि शो जलाने की प्रथा। माती है, किन्तु इस सम्पतिके पाने पर उन्हे पिताक | शरीरका जल जाने के बाद जले हुए शरोरकी हडिया चूण घरम ही रहना पडा है, यही उन लोगोंकी जातीय | परके क्सिो नदीम फेर देते हैं । इस सम्प्रदायम राति है । साधारणत उत्तराधिकारत्यक ऐसे नियम ! यस्थानुसार श्राद्धक्रिया भी तारतम्य है। ब्रारिणी निर्दिए होने पर भी कितने दो अवसर पर पच रोगोंक रमणियोंका धावप्रथा भी खतात्र है। अभिप्रायानुसार ही कार्य होता है। सिकिम राज्य में एक ब्रह्म शारिणो रमणीके श्राद्धकी पर्समान समय में अधिकाश र पछाने हो थौद्धधर्म । क्रिया जिस तरह अगलस्थित हुइ थी यह नीचे लिपी या आश्रय लिया है। ये लोग पर्वतात तथा उससे | जाती है- घहनेवाला नदियों को ही रोगोत्पादक समझ पर उनकी श्राद्धफे समय मृतका एक मूर्ति निर्माण परके उसके पूजा पिया परते है। ये लोग परफमय काञ्चनजना | सामने एक मेजके ऊपर नाना प्रकारको पाद्य साममिया, पोदी तूफान, घरफ,यर्या तथा पालाका पक्मान अघि | दूमरी पर उसके व्यवहारवी चीने पव तीसरो मेज पर छाता एव शाक्य घुद्धका शिक्षा गुरु समझ का उसको १०८ पीतल के चलते हुए प्रदीप सुसजित करके रगे गये उपासना करते है । इसके बाद एसेगेहपू पाल्देना । थे। इस समय यह एक लामा लाल वस्त्र पहन तथा ल्होमो, लापेर दिन पोछे गेहपू मालेग, शाङ्ग तथा पगडी यांधे देयमन्दिरमें समस्यरसे रतोलादि पाठ कर रहे यसुद्धा प्रभृत्तिकी उपासना समय पे लोग मास, मद्य थे। इस तरहमे प्रेतात्माफे महलके लिये तीन दिा तक पल, तण्डु पुष तथा धृा प्रभृति गघदयसे पूजा पाठ होता रहा। शेष दिमें मृतोंके वधुवा धमान जो परते हैं। पेलोग चिरयो' या 'रडे7 उम चुप छिमु' | कुछ पस्न, अर्थ तथा स्वाोपोने की चीजे मेजी थी, ये सर महादेव मानते हैं। सम्भय है कि सिविममें बौद्धधर्म । उसो मूसिक मामने सजा पर रष दी गइ । उस समय नके पहले ये लोग इसौ शारमूर्ति तथा उमादेवी | उस मन्दिर प्रधान लामा उक मूर्तिके सामने बैंड की उपासना करते रहे हों। पर उन सब चीजों तथा उपहार मेजनके नाम रोगों ये रोग प्रधानत शो का पोर पर गाड देते | को विदित पर दिया। सध्यान समय उस मृत्तिक है। गाडन के पहले मृत शरको तीन दिन तक घरगें दी। सामने मद्रुपको मदिरा तथा चाय भरे यत्तन सना कर रपाते है और नियमानुसार उस सामो मोज्यादि । रसे गये। पुउ हो क्षणक वाद यहा दहुनसे लागण म्यापन करते हैं। पन मन्दर मृतदेवको गाइने पहले | उपस्थित हुए। उन साने मा भर भर पर चाय तथा उसके चारों और पत्थरसे घेरते हैं। उस घेरे में मृतदेह मदिरापान पिया। इसके बाद मृत फेममा आमाय को रख कर ऊपरसे एक बस पत्थर साठकर का जन यहा उपस्थित हुए। उन सा उस प्रतिमाशे को यन्द र देते हैं एय उमके 30 पर गोलार | माया दण्डात् पिया तथा मूनिक यनाचो मा। . vol 11, 91