पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३५७

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लेपछ अन्तमें वे सबके सब उस निर्मित मूर्तिने सदा | ऐमा नहीं करते, वर पर वे चावलको लोहे के पननमें लिये विदा ले कर अपने अपने घरको चले। उस समय भात गय कर खाने है। सभी लामाओंने मृताकी प्रेतात्माको मङ्गलकामनाले | लेपन ( स० क्लो० ) लिप न्युट् । लेप । एक स्वर में स्तोत्रपाठ करना शुरू किया तथा उनके प्रयान | वैगजस्य सितं पक्षे तृतीयानयमहिना। ने पक मेज़ के पास जा कर कई एक गुप्त क्रियायें को। नत्र म लेनेदान्मलेपनगतिशोभनम् ॥" (नियितत्त्व) लगभग ६ बजे रातमे स्तोत्पाट समाप्त हुआ। उसके गोबर द्वारा देवगृह लेपन करनेमे पालोकमे विविध वाद लामाओंके प्रधानने अपने शासनके पास प्रडे हो मुत्र और परलो स्वर्ग लाम होता है। पुराणादि धर्म- फर एक लम्बी चौड़ी वक्तृता दी । उसका अभिप्राय शालों में लेपनकी बड़ी प्रजमा की है। यही था-'तुम्हारे भवसागर पार करने की सुविधाके २ गातमै लेपमहान, शरीरमे चन्दनादि लेपन ! लिये जितनी किराये थी, सभी पूरी की गई। अब तुम सुचतमे लिपा है, कि स्नान के बाद लेएन उचित है । यद म्वच्छन्द हो कर धर्मराज यमो पास का सस्ती हो।' लेपन अन्द प्रयोग करने से सौभाग्य तथा देहके लावण्य- यही उन लोगोंको वैतरणी पार करने की व्यवस्था फद्दी की वृद्धि होती है। यह देशका श्रम नीर दोगनाशक जाती है। है। जिन सद अवस्थाओंमें स्नान निषिद्ध है, उस अवस्था __प्रधान लामाकी चपत्ता समाप्त होने पर दूसरे दूसरे में लेपनको भी निषिद्ध बनाया है। लामाऑन उड मर्तिको वस्त्रहीन कर दिया। इसके लेपन तीन प्रकारका है, दोष और विपनाशक नया वाद कई मनुष्य गह, शिक्षा, ढाक, करनाल प्रवृत्ति याज्ञा वर्ण्य र ! इसके मो फिर दो भेट है, प्रदेश और मालेप। बजाते उस मूर्तिको ले कर मठके बाहर निकले। एवं इनमेसे मालेग पित्तनाशक और प्रदेश चातश्लेष्मनाक प्रतिमाको अन्धकारमें फेक कर पुनः मन्दिरमे लोट हालेप रानिमालमें निपित है। किन्तु प्रणादिमै रावि- याये। को भी लेप दिया जा सकता है। पहले ही कह चुका हूं किले पछामें किसी तरह भाव कामे लिखा है कि प्रतिदिन प्ररीरमें बांबले- का जातिभेद्र नहीं है। जो नेपाल राज्यमे हिन्दू राजा का लेप कर स्नान करनेसे वलिपलित रोगसे मुक्त दो अधीन वास करते है वे राजनियमके वशीभूत हो कर सौ वर्गको परमायु हो सकती है। टसी तरह अपना अपना धर्म पालन करते हैं । नेपालमें रनानके बाद साफ नुथरा कपड़ा पहन कर सुगन्धि ये लोग गो हत्या नहीं कर सकते। किन्तु दार्जिलिङ्गमे । द्रध्य द्वारा शरीरमे लेपन करे। शीतकालमें चन्दन, ये लोग कर, गो आदि पशुओंके मांस खाते है । वनमें कुंकुम और कृष्णानुरुका लेपन करना चाहिये। यह मरे हुए पशुओंके मांसको खानेमें भी इन लोगों को घृणा | उग्याबायु और कफनाशक ई। प्रोम और शरझाल- नहीं है। मरे हुए हाथीके मांस तथा चवों ये लोग में चन्दन, कपूर और अतिवला मिला कर लेपन करे। अत्यन्त चावले खाते है। इसके अलावे वनमे पैदा होने यह सुगन्धित और शीतल होता है । वर्षाकालमें चन्दन, वाले फल-मूल तथा चावल, मैदेकी रोटी आदि भी इन कुंकुम और कस्तूरी मिला कर लेपन करना हितकर लोगोंके खाद्य पदायां हैं। चावल तथा मैदेके लिये ये है। क्योंकि यह न तो उग्ण है और न शीतल। लोग धान, गेहूं तथा भुट्टे की खेती करते है , चावल, उपयुक्त परिमाणमें लेपनका प्रयोग करनेसे प्यास, भुट्टे तथा महुएकी मदिरा बना कर पाते हैं। ये लोग मूळ, दुर्गन्त्र, पतीना और दाह विनष्ट होता है तथा जब कहीं दूरकी यात्रा करते हैं, तब वासके चाँगे । सीमाग्य, तेज, वर्ण, प्रीति चौर बल की वृद्धि होती है। मदिरा भर कर ले जाते हैं। यात्रापथमें ये लोग स्नानले अयोग्य व्यक्तिको लिये लेपन निषिद्ध है। स्नान घाँसके चोंगमे चावल भिगो कर ग्वाने हैं, किन्तु घर पर किये बिना लेपन नहीं करना चाहिये।