पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३७२

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लोबिखेग-लोनार ३८७ भायाफे कोइ पार्थक्य नहीं है। सगाई मतमे विवाहिता | इसकी कडी जल्दी फर नाती है, पर मजबूत होती विध स्वजातीय न होनेसे उसे स्वामो प्रहण कर नहीं है। जहचरसे अवीर बनाते हैं जिसे हिन्दमात ही सक्ते । बहुर पगह दृर सम्पीय होने पर भी विधाप । होली पर्व में उडाते हैं। अमीर देखा। देवरसे ध्याहो जाता है। दोनों विवाहिता पत्ना और २एक नातिका नाम । सगाइ पत्नीके म तानोंका पितृसम्पत्ति पर समान अघि रोध्र (दि. पु० ) जापाना ताया लोधरा । कार रहता है। लोध्राक्ष (म.पु०) लोध्र पर लेधा स एरवशा। लोधिनेरा-मध्यमारनके छिन्दवाडा जिलेको मांसर लोध । तहसील के मतगत एक नगर । यह अक्षा० २० ३.० 'लोध्रतिलक (स पु०) एक प्रकारका मलकार जो उपमा नया देशा०६८ ५४ पू० पर अवस्थित है। म्युतिसि का एक भेद माना जाता है । पलिटा रहने के कारण नगरमें रानीय ममृद्धिका अभाव लोध्रपुष्प ( स ० पु० ) मधूकरक्ष, महुएका पेड । नहीं है । यदा उत्रुट पीतलका दरतन और तायकी हडी लोनपुर (म.पु०) शालिधाय विशेष। धनती है । इसके अतिरिक्त यहा एक प्रकारका मोटा मूता लोध्रपुषिणी (स०सी०) हम्यघातका छोरा घरका कपडामा तैयार होता है। आस पासवे पाशिदे उसे फूल। पहनने के काम राते हैं। लोध्यक्ष ( स ० पु०) मधूमक्ष महुएका पेट। रोध (सपु०) रणनीति रध राहुल कात् रन पर 'लोना (हि.यि०) १ नमकीन मोना। २ सुन्दर । रस्तम् । लोधक्ष। तिमि देशर्म यह रिभि मिसे , (१०) ३ एक प्रकारका रोग जो हर पत्थर और मिट्टीकी प्रसिद्ध है येसे तेलग-तेललाद्गचेह, गज, रोदर, | दीवारों में लगता है। इससे दोगार झड़ने लगती और लोग , महाराष्ट्र-दुरा। सस्त पयाय-गालव, कमजोर पड जाती है। कुछ ही दिनोंमें उसमें गड्ढे नायर, तिरोट, तिल्व, माजेन । रतलाधरा पाय पड़ जाते हैं और यह कट कर गिर पड़ता है। यह रोग लोध, भिल्लतर, तिल्पक, कान्तकोलक हेमपुष्पक, मिली नोंवके पासके भागने शुरू होता है और अपरको मोर शानरक। इसका गुण-कपाय, शीतल, यात कप वढता है। ४ नमकोन मिट्टा जिससे शोरा बनाया जाता और अधनाशक, चक्ष का हितकर, विपनाशक। है। ५वह धूल या मिट्टो जो लोना लगने पर दीवारसे (राजनिघण्टु) । झड कर गिरती है। यह खेतमें डाली जाती है और यह वृक्ष नेपाल ओर युमायू के पहाडी प्रदेशमें केट बादका काम देती है। ६ घोंघेकी नातिका एक पीडा। के जङ्गलमें बङ्गालके समतरक्षेत्रम पास कर मेदिनीपुर। यह प्राय नायके पे देमें चपका हुआ मिलता है। वह और वर्तमान निलेमें तथा वन्य प्रदेशके घाट पयतमाला क्षार जो उनकी पत्तियों पर इकट्ठा होता है और जिसक के गडी पाया जाता है। इसका छिलका रगने । कारण उसको पत्तिया चाटने में बट्टो जान पड़ती हैं। चमडा सिझाने और प्रीपधियों में काम माती है। छिलके ८एक कल्पित स्त्री जो जातिकी चमार और जादू टोनमें का उपा पलमें भिगो देनेस पीरा रग निकाला जाता बहुत प्रवीण कही जाती है। (नि०) ६ फसल कारना। है। छिलकेशो सत्रोमिट्टोके साथ पानी में उबालनेम लोाइ (हि० कि० ) लावण्य, सुन्दरता । राल रग निकलता है जिससे डीट छापते हैं। यह पेड लोहार (हि० पु०) यह स्थान जहा नमक बनता हो अथवा १०ते १० पुर ऊचा होता है। इसका छिलका पेचिश | नहास नमक माता हो। मादि पेटफे कह रोगोंमे हा दिया जाता है। इसका गुण लोनार--मध्यभारतके रेया विभागके बुलदाना जिलातर्गत छ ढा है। इसके काढका भी प्रयोग किया जाता है। एक नगर। यह पक्षा० १६ ५६ उ० तथा देशा० ७८ औधका रफडी कार्ड से कुल्ला करनेसे मसूद से रत | ३३ पू० पर यस्थित है। यहाको जनसम्या ३०८६ है का निकट ना बन्द होना और यह दूढ हो जाता है। जिनमें ब्राह्मणों का ही सध्या अधिक है। Vol, xx 95