पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लोपामुद्रापति-लोभ ३८२ विषण्ण और भयभीत हो र अविको प्रचुर धन दे विदा/ यह गोंद रक्षकी छालक साथ लगा रहता है । अरबसे किया। लोयान ययइ आता है। यहा छाट छार पर उसफ भेद किये इसके बाद अगरत्य ऋषि धन ले कर लोपामुद्राके नाते हैं। जो पाले रगको दोके रूप साफ दाने होते समाप उपस्थित हुए । लोपामुद्रान कहा, 'भगरन् । आप हैं, ये कौडिया कहलाते हैं। उनको छार कर यूरोप भेज ५५ अति पविल और बल्यान् पुत्र उत्पादन कीजिये।। देते है तथा मिला जुगगीर चूरा भारत और चानके पिन तथास्तु यह पर रोपामुद्राके साथ समोग | लिये रप रेत है। एक और प्रकारका लोयान लावा किया। रोपामुद्रा गर्भवती हुइ और पि धनको चले सुमाला नादि गोम आता है जिसे नायी लोगन गपे। वप गभधारण कर लोपामदाने एक पत्र प्रसव कहते हैं। यूरोप में इससे एक प्रकारका क्षार बनाया गया दिया। वह पुत्र साडोपान वेदशान-सम्मान तथा अति । है। इम क्षारको वै जोइस एसिड कहते हैं। लोयान प्राय शय रूपमा निक्ला! ऋपियोंने उसका नाम इध्माद | लाने काममें लाया नाता है जिससे सुगन्धित धूया रना । यह इधावाह भा तप प्रभावसे पिताप हा पैस | निकलता है। वैद्यकर्म वुहुर लोबानमा प्रयोग समावमें पराकमा दुए थे। (भारत वनपय ६५ E540) और जावा रोयानका प्रयोग सामीम हाता है। यह रोपामुद्रापति ( स० पु.) लोपामुद्राया पति । अगस्त्य । | अधिक्तर मदमक काममें लाया जाता है। रोपायर ( स० पु० )गाल, गोदड। विश (दि० पु०) एक प्रकाका बोटा। यह सफेद लोपाश ( पु.) गाल, गादद। रगा और बहुत बड़ा होता है। इस पर हाथ लोपासक (१० पु०) लोप आकुलीभाव चक्तिमश्नाति तक लये और पान सगुठ ता चौई तथा बहुत कामठ यशू ण्युल । गाल गीदछ । होते हैं और पका कर घाये जाते है । धीजोंसे दाल और लोपाशिफा (R० स्ना०) लोपाशा स्त्रिया राप् अत इत्य । दालमोठ धनाते है। इसका पीर भी जातिया है पर शृगारा, सियारिन । लाविया सवस उत्ता मा नाता है। इसकी पत्तिया रोपिन (१०वि०) क्षतिकारस दानि पहुंचानवाला। . उदफे समान होती, पर उनसे बढा और निवना होता लोप्त (स० वि०) १ नियम भग परनयाला २ क्षतिकारक | हैं। पौधा शामा और भाजाय रिपे दागोंम योया जाता हानि पहुचानेराला। है और बहुमन्य होता है। लोप्न (०० वो०) उप दिन् । स्तयधन चारोश माल। रोविया कजर (दि० पु०) पर ग जो गदरा रा त तस्यावसय लाप्य दस्यव दुरुसत्तम । होता है। निधाय च भयालीशास्तत्रयानागते वल ॥" रोम (स० पु ) म यम् । १ आकाक्षा दुसरके पदार्थको (भारत २१०७५)| लेको शमना राल। पयाय-तृष्णा लिप्सा यश लोप्ता ( म० खा० ) लोप्स पित्यास टाप । रोप्त बोरा | स्पृहा, काया शसा, गाध्य पाछा इच्छा, तुप, मध, कामाला काम अभिराप। गोप्य ( स० सि० ) रोष योग्य, नाश करन लाया। दूसरेकी दोन शादि दम्ब कर उस लेन लिये जो लोवान ( म० पु.) ए रक्षा मुगन्धित गोंद । यह पृप ममिलाप होता है, उमे रोम वदत ह । यद राम प्रसाद मनिकाय पूर्या किनारे पर सुमाली में और पाप ! अघरसे न हुआ था। दक्षिणा समुद्र तट पर होता है और यहीम लोवान अन गाहाम लिषा किस तान द्वार -याम कमि मारतयामें आता है। दुरजर पहर, उनस मोघ और लाम। इसरिये मम तरहसे जाम खोदना दुरएगा सुदुरपशपा बादि इसीय भेद है। इनमस/ उचित है। पादपाय मम मान है। इनम रावामाशा, जिस पारमें पामार रामस समा यनिष्ट हाता है गभ घूपमा कहत है, भारतमाम रोवान नामसे विस्ताई।। हो पापी प्रवृति है रेमस ही प्रोप, पाम, माह पौर ___Vol xx 96