लोहोत्तम-लौगाक्षि
लोहोत्तम (सं० लो०) लोहेषु सर्वतैजसेपु उत्तमम् । स्वर्ण, | लोया (हिं. पु० ) कद्द, धोया।
सोना।
लीका (हि पु०) कह।
लौंग (हिं० पु०) १ एक नाडको फ्लो जो सिलनेले पहले लौकाक्ष (सं० पु० ) धर्मशाग्याभेद । पाणिनिने ६138
हो तोड कर सुखा ली जाती है। विशेप विवरण लवश शब्द- सूत्रके कार्यकोजपादिगणमें 'फौथुम लोकाक्षाः" मन्दमे
में देखा। २ लौंगके आकारका एक आभूषण। इसे शारया विशेषका उल्लेख किया है।
खियां नाक या दानमें पहनती है।
| लोयतिक ( स० पु०) लोकायतमधीने वेद वा लोका
लौंगचिडा (हि० पु०) १ एक प्रकारका कवाव । यह वेमन यत (मतस्यादिसूतान्तात् ठक् । पा ४१२६०) १ ताकि
मिला कर बनाया जाता है। २ फुलका रोटी। भेद । २ चार्वाक्शारत्र जाननेवाले । नाफारनिक देवा।
ौंगमुशक ( हिं० ० ) एक प्रकार फलका नाम। लोकिक ( स० त्रि.) ? लोकासम्बन्धीग सामारिः।
लौंगरा (हिं. पु०) एक प्रकारको घास। इसकी पत्तियां २ व्यवहारिक । (पु०) ३ सात मात्राओं के छनोहा
गोल और नुकीलो होती हैं। यह घास चर्यामृतुमें उत्पन्न नाम । ऐसे छन्द काम प्रकार के होते हैं। ४ कामोर
होती है । इसमें लौंगके आकारती कलियां लगती हैं। का ठान्दभेद । ५ न्यायभेद ।
फल पीले रंगके होते हैं। उनके पक जाने पर नाचेके | लौकिरमान (स ० सी०) शाखादिमान ।
उठल कुछ मोटे हो जाते हैं। बंगाल में लोग इसकी लौकिरता ( स०सी० ) लौफिकम्त्र भारः, लोकिक-नट
पत्तियोंका साग बनाते हैं।
राप । १ लोकव्यवदारसिद्धत्व । २ शिष्टाचार । ३ आपस
लॉगिया मिचे ( हि स्त्री० ) पर प्रकारको बहुत बडयो। किसी कार्यविशेष वस्त्र मिटानादि उन्ही का मादान.
मिर्च। इसका पेड बहुत बड़ा और फल छोटे छोटे | प्रदान ।
होते हैं। इसका दूसरा नाम मिरची भी है। लोमिकत्व (सं० लो०) लौािता, लोकमित्य ।
गैंडा (हिं० पु.) १ छोकरा, वालक । २ खूबसूरत | लौकिकन्याय (म' पु०) लोकमै पाला जानवाला नियम,
और नमकीन लडका ( वि० ) ३ अवोध । ४ छिछोरा । साधारण नियम।
लौंडापन (हि पु०) १ लौंट होनेका भाव । २ लडक | लौतिकविषयविचार ( स० पु०) प्रचलिन साधारण
पन। ३ छिछोरापन।
विषयकी मीमामा वा बादानुवाद ।
लौडी (हि' स्त्री०) दासी, मजदूरनी।
लौकिकाग्नि (सपु०) लोकिकोऽग्नः । असन्त
लौंडेबाज (हि० वि०) जो सुन्दर बालकोंसे प्रेम रखता | अनि ।
हो और उनके साथ प्रकृतिविरुद्ध आचरण करता हो। लौकिकाचार (स, लो०) १लाचार । २ कुलाचार ।
लौंडेवाजी (हि स्त्री० ) लौंडेवाजका काम, लौ डोंसे प्रेम लौशिकी (सं० स्त्री०) १ शासप्रसिद्धा। २ प्ररशता,
रखना।
विरयाति ।
लौ द (हिं० पु०) अधिमास, मलमास ।
लौकिकीयात्रा ( स० स्त्री०) । लोकपबदार । चिया-
दरा ( हि • पु० ) वह पानी प्रोग्म ऋतुमे वर्षा आरम्भ | हादि सांसारिक कार्य ।
होनेसे पहले वरसता है, दौंगारा।
लोको ( हि ० स्त्री०) १ कडू . घो। २ काठमी वह नली
लौंदी (हिं. स्त्री०) वह करछी जिससे संडसारमें पाक जिसे भवकेमे लगा कर मद्य चुनाते हैं।
चलाया जाता है।
लोक्य ( स० वि०) लोकभव इति पञ्। १ लोकसम्व-
लौंन ( हि ० पु०) १ लवन देखो। २ लौ'द देखे। धीय । २ पार्थिव । ३ साधारण। (पु०) ४ पिभेद ।
लौ ( हि स्त्री० ) १ आगकी लपट, ज्वाला। २ दीपक- लौगाक्षि ( स० पु०) लोगोक्षक गोलापत्य । २ वैदिक
की टेम, दीपशिखा । ३ लाग, चाह । ४ चित्तको वृत्त । आचार्य भेद । ये धर्म सूतके प्रणेता कहलाते हैं।
५आशा, कामना।
कात्यायन श्रौतसूत्र (१।६।२४)में लोगाक्षिका उल्लेख
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/३९३
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