पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४०४

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लौहपत्री-लौहरसायन ४०१ भी ४ रत्ती मात्रा उमका सेवन किया जा सकता है। । सहभाएड ( स.पु.) १ सहस्य भाएदमिवातित । ( सन्द्रसारस०११अश्मभाल, खल । २ इनिमित पान पा पाएड लौहपत्री (मस्त्रा०) १ लौचरका, लोहेका चटकना। रोहेका धरतन । २ मारण | ३ लाहपुर, एक प्राचान नगर। सोहभू ( स. स्त्रो०) रोहस्य भूरिस । कटिनो पामर हपटो (स०सी०) औषधविशेष प्रस्तुत प्रणाली- लोहपाल, कदाह । पारा २ तोला, गधक २ तोला एक्ल पचली पाकर रोहभेकोवीज (स० को०) रस नारण योनभेद । उसम २ तोला रोहा मिलाये। पीछे घरलमें उसे अच्छी लोहमय (स० त्रि.) १ रोहमण्डित, लोहेगे मदागा। तह करे। इसके बाद क्सिी लोक परताम घी लगा २ लौहनिर्मित, लोहेका बना हुआ। पर उसमें कन्चलारण घोमी याच पर चढाये। गल नान लौहमल ( स० क्ला०) लोहस्य मलम् । लाहकट्ट पर उसे केलेप पत्ते पर ढाल यथाविधि पटरी बनाये। मण्दूर, लोहेरी मैल। पीछे उस चूण कर ले। १ रतासे ले कर प्रति दिन १ रत्ता लौहमृत्युक्षयरस (स ० क्लो) रोहागेगनिमारक गोपध परके मावा बढाये। एक या दो सशाह तक अथात् जब विशेष प्रस्तुत प्रणाली-पारा, गधक, टोदा, अब । तक यच्छा न हो जाय, तब तक इसका सेवन करा रहे । ताबा, मैनसिल, विपमुष्टि, कौडी, शहतून, शदु रसाना, अनुपान शीतल अल अएका नोरा और धनिया पाढा | जायफल, कुट, साचिनार यवक्षार नयपाल, साठ, बताया गया है । इसके सेवनकाल में निदादी और पीपर, मिर्च, होग और से घर लपण प्रत्येक समान शादि द्रष्य तथा बिता, मैथुन थादि वजनीय है। भाग ले पर सूयावत्त और बिल्वपत्रके रसमे सात सात लौहपपरी सेवन करनेसे ग्रहणी, पूतिका, अतीसार, बार भावना दे। गीछे फिरसे सूयापर्तरसर्म अच्छा फामला, अग्निमान्य और मरम आदि नाना रोग वि तरह मर्दन करे। दो रत्तीकी गोरी रोगाको मेवा होते हैं। (भैषज्यरत्ना० ग्रहयपधि ) करानेसे प्लीहा, यरत् गुल्म, अष्ठोला, मप्रमास, शाथ, लौहपर्पटीरस (स की.) यासरच्छ और पासादि| उदरी, वातरक्त और विद्रधिरोगको शाति होगी। रोगनाशक औषधभेद। प्रस्तुत प्रणाली-पारा और लोहयत्र (स० पु०) रोहेन निमित योग गधक प्रत्येक भाग तथा लोदा १ भाग, इह एक्व | को क्ल । २ रसायनात भाएडविशेष । इसम आपधादि पीस पर धीमो आचमें गलाये ठढा होने पर गोली का पाक करना होता है। बनाये। पीछे ब्रह्मपष्टि, मुण्डीरी वक, त्रिफला, जय ती, लोहरसाया (स. को०) औपप्रविशेष । प्रस्तुत प्रणारी- सम्हालू, त्रिक्टु सदस, घृतकुमारी और अदरक, प्रत्येक श्लथ पोट्टलायड गुग्गुर, तारमूलो विका, पैदा के रसमें सात सात वार मावना दे। सूप जाने पर तारे | लकहो, यह मको डाट, निसोथ, भूादम्य, सम्मान फे यरतनमें रप जब तक गघ न निकरे, तर तक पुट , चितामूर, धृहरका मूल प्रत्येक १० पठ पा EN Tल पार करे। दो रचा भर पानके रस, पोपर सुरस हाथ | ८० सर, शेप २० सेर, पाढको वपमें छान १ मेर अयश अड़ सके पत्तों के रसके साथ सेवन करनेसे भ्याम | चीना और १० पल उन गुग्गुर मिलाना होगा। बातर फास यादि रोग 1ए होते हैं। इमली, तर वैगन, | पिसी तारे बरतनौ पुरा यो ४ सेर और.पा १० पुष्माएह, फेला, मासफा जूस और कपजनक द्रव्य | पर डाल कर उसके साथ वीनो और गुगुर मिप्रित पाय पाना तथा स्त्रासम्भोग परना मना है। इस सोपधौ । जनसे पाक करे । यासन पामें गिनित २ पल, लोहे पदरे तासे पार करने पर तानपर्पटो तैयार इलायचा ४ ताला, दारचोनी ४ तोला रिजन २ प. होती है। तानसपटीखो। मिज, रसाझा, पीपल, लिपा प्रत्येक २ पर ऊपरस लाया (स • पु० जी०) लाइस्प व मिरवधन यत्र । द्वार दे। उदा होन पर उसमें मधु १ सेर मिलाये और हरसर, रेहेको नजीर। पीछे शिला पर पीस कर घाके यरन में एस। इसकी ___Vol, M 103