पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४०६

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लौहित्य-स्वाव ४९१ ३ नदविशेष । इसका दूसरा नाम ब्रह्मपुत्र नद है । | जारधि (पश्चिमम ) न मा चार पहाडके मध्यरत्तों पालिकापुराणमें ब्रह्मपुव गैहित्यका उत्पत्ति विवरण इस उपत्यका गभामें स्थापित किया। बहुत दिन बीत नाने प्रकार लिया है-हरिव शा तनुमुनि रहत थे। पर ब्रह्मपुत्र जलराशिरूपम पाच योजन त पर गये। उन्होंने हिरण्यगर्भको मुनिया अमोधाको प्याहा था। मातृहत्याका पापमोचनार्ग जामदग्न्य परशुराम उम ये प्रियतमा पत्नीको ले कर कमा कैलास पर्वत पर, ब्रह्मपुत्र गहाकुण्ड में स्नान करने आये। उ होंने पापसे कभी चद्रभागाके उत्पादन गृइन् लोदित्य सरोवर मुरु होनेके वाद नाताकी भलाइक रिये अपने परशु द्वारा किनारे और भी गचमादन परत पर रहत थे। एक हेमनगिरिको काट डाला और उपयुT पथ बना कर दित तपस्वी शातनु पल पुप तोडीके लिये जगर में | गैदित्यको यस्तारित किया। यह नद कामरूप पीठ गये। अच्छा मौका देख कर रोपितामह ब्रह्मा शा तनु हो र प्रवाहित हुया। लोहित सरोवरसे निक्लनेके की पत्नी अमोधावे सामने उपस्थित हुए। सुरसुन्दरी कारण उसका दूसरा नाम लौहित्य पड़ा था। कामरूप युननो अमोघाका असामा यरूप सोन्दय देख पर थे। को परिष्यक्ति तथा सब तोशे गोपन करते हुए काम पोसित हुए। कामशरसे प्रपीडित दो उदोन | गैहित्य विध्य यमुनाके माथ दक्षिणसागरकी ओर बढे । महासती अमोगा पर बलात्कार करना चाहा। सती मध्यमें ब्रह्मपुत्रको परित्याग र पार योजना रास्ता डाके मारे आसममें घुम गह यार मोतरसे दरवाजा यद । ते करता हुइ यमुना फिरसे उम नौहित्यनदमें मिली। पर दिया। विधातामे रहा न गया और पानममें ही जो व्यक्ति जितेन्द्रिय हो पर चैत्रमासकी शुमाष्टमीको रेतस्खलन हो गया। पोछे वे वहासे चर दिये । शात रोहित्य कलमें स्नान करते हैं ये कैपल्य और ब्रह्मपद जव याश्रमर्म लौटे, तब हसपदचिह्न और ब्रह्मवीर्य देव पाते हैं । ( कालिकापुराण जामदग्न्योपाग्न्यान ८४|४५ म. । पर पड़े विस्मित हुप। पत्नी अमोघा मुझसे ब्रह्म वर्तमान लोहित नदी ब्रह्मपुवको एन शाखालपमें को आगमनवार्चा सुन पर ये ध्यानस्थ हुए। दिश्य आसामके मध्य होती हुइ बहती है। शिवमागर और व नवलमे जगत्को भलाइक लिये तोधात्पादा देवताओं पिमपुर जिले के मध्य हो पर यह दो दक्षिण पश्मि का अमोर मान र उदोन अपनी पत्नी वह ग्रामरीया गतिस प्राय ७० मील वदती हुइ घलेश्वरी सङ्गमके निकट पो जानेका हुकुम दिया। यह रे पर पत्नोमें यात देर ब्रह्मपुतमें मिलती है। उस सङ्गमनिराधन दोनों नदीके तक वादानुवाद चला। आखिर पत्नोक परामर्शानुमार | मध्य द्वीपाकार मो यालुकामय चरभूमि पड गर है, उसे गान्तनु म्बय उस ग्रहामोर्याशे पा गरे। पीछे उस तेन 'मानुलिचर' कहते हैं। सुरणधी नदी इमके दाहिने णमोपाये गा गिरनेसे वह गमवती हुइ। यधाममय | किनारेमें आ पर मिल गई है। उम गर्मसे जलराशि भूमिष्ठ हुइ । उस नलराशिके मध्य लोहित्यायनी ( स० स्त्री० ) लौदित्यको गोलापत्य स्रो। नोलारपरिहित रत्नमाला विभूषित उज्ज्वल निरीट (पा १।४१८) धारी चतुभु न पाविद्याध्यनशतिधारी आरक्त गौर लोहेर ( स० वि०) रोहमय यायुक्त निममें लोहेरी पण भीर शिशुमार मस्तकारुढ एक पुव विद्यमान था। हरीस लगी हो। नातनुने उम जलमय पुवको कैलास ( उत्तरमें ) ल्यारा (हि० पु०) भेडिया। सातादि (पूर्व ), गमादन ( दक्षिण में ) और | ल्याव ( दि. ३०) लुभार देखा।