पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४०७

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व-वन्तु -हिन्दी या सम्झत वर्णमालाका उन्तीसों घ्यञ्जनवर्ण। "कृन्दपुरमा निमा गान् । यह उसारका विकार और अन्तस्य अर्द्ध व्यञ्जन माना गुगनमा याम्यवरामसागमा गम् ।। जाता है। सायकाभीष्टदा सिदासिदा मिला। प्रीमद्भागवतमे लिखा है,- एर ज्याना बार तु मदापाजीत् ।।" ततोऽनरसमाम्नायमसृजत् भगवाननः । तस्थामस्वरम्पर्गरस्यदीवादिनन्याम् ॥" हिन्दीमें इस वर्णका उपारण अधिकतर पदीष्ट- कालो मतसे इसका उच्चारण स्थान दन्त्य है, किन्तु से होता। निर्फ संग्रताभ्यासी लोग हो दन्त्योष्ट या इसर। जगह दन्त्योष्ठ बताया है। रण करने हैं। दीनाभिधानतन्त्र, रुद्रयामलके मन्त्रकोप और बकट (हिं० वि० ) १ टेढा, बात। रिल, जो साया अन्य तन्त्रशास्त्रों में 'ब' वर्णके जो पर्याय लिये है, ' न हो । ३रिन्ट, दुर्गम। चरल प्रकार है- | कनाली (हिं० सी०) साधुरी चोलचाल में सुपुन्ना 'या गगा वारुणी वृक्षमा वरुणो देवसनमः। नामर नाडी जो मध्यने मानी गई है। ताब नान्तश्च वामागः ॥' (वीजवर्णाभिधान ) वर-इन्नु नद। आज कल मायनस (100) नामने "वागे वरण गणः स्वेदः खद्गी-वग जरः॥" प्रसिद्ध है। यह मध्य एशियाकी एक सबसे बड़ी नदी ।। (द्रयामल-मन्त्रकोप) इस नदाका पिता तानार-राज्यमे बहता है। यद वाचागो वारणी तृतमा वरुण देवसनमः। पामीरको सबसे ऊंची जधित्यका सरोकुलस निकल कर खट गीशा ज्यालिनीवक्ष. बसमध्यनिवाचकः ॥ तुर्किस्तानको पूर्व और पश्चिम इन दो भागोंमे विभक्त उत्कारीजस्तु नाता वना स्फिन सागरःशुचिः। करती है। पीछे वोबाराके विस्तीर्ण प्रान्तर योग तातारके विधानुकरः प्टा विशेषा यमसादनम् ॥" सुविस्तृत मरुस्थलको फाडती हुई १३०० मोल जानक (नानातलगा०) वाद अनेक शासायोंमे विभक्त हो भारलसमहमें गिरती यह वर्ण पञ्च प्राणमय, त्रिविन्दु और त्रिशक्ति सम है। पुराविदोंका विश्वास है, कि पहले यह नदी कारपीय- चित, चतुर्वर्गफलदाता और मर्वसिद्धिप्रद है। शिवने मागरमें गिरती थी। पीछे उसकी गति बदल गई है। याबाशक्तिको इसका स्वरूप बतलाया था- ___ बहुतोंकी धारणा है, कि इस अन्न (Orus ) वा बंद? "बगार चञ्चलारानि कराहतीमानमव्ययम् । । नढोके किनारे ही आर्य-जातिका बास था। इसी मु पञ्चप्रागामय वर्ण विशक्तिसहित सदा ॥ प्राचीन नदी हो कर आर्य-सभ्यता सुदर यूरोपपएडमे निविन्दमरित वामान्मादितत्त्वसंयुतम् । फलो है । पाश्चात्य प्राचीन ऐतिहामिक द्रावो, हेरो. पदमार वर्गा पीतपिचलनाद्वय ।। टोतस आदिले विवरणसे जाना जाता है, कि पूर्वकाल में चतुर्वर्गप्रद यी सर्वसिद्धिप्रदायकम् । यहा शकजातिका आधिपत्य था तथा इस नदीने इरान विशनिसहित दधि निविन्दुसहित सदा ।" और कुरान राज्यको विभक्त कर रखा था। तुरानके (कामधेनुतन्त्र) उत्तराशको मत्स्यपुराण और महाभारतमें शाकद्वीप कहा महाशक्तिसन्या इस वर्णको ध्यानप्रणाली भी तन्त- है। भाकद्वीप देखो। मत्स्यपुराण और महाभारतमें शाक शास्त्रमे लिखो है , यथा- होपकी सीमा पर जिस इक्षु नदीका उल्लेख है, वही