पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४०८

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चगानी-वंश भान कल अझ नदी कहलाती है। पुराणके मतसे घक्ष | मन्तति, गोल, जनन, कुल, अभिजन अवय, सन्तान नदी जम्बूद्वीपमें यहती है। पुराणका अनुवची होनेमे निधन, जाति। (जटाधर) मालूम पडेगा, कि शाक्वोपकी सीमा पर जो अश/ विधा और जाम हारा परलक्षणाकान्त कुरुपरम्परा बहता है, यह इष और जम्बूद्वीपमें नोमा गिरा, गत स तान हो वश कहलाते हैं,-'कुलश्च विद्यया मना घह या नाममे प्रसिद्ध है। या प्राणिनामेलक्षण मतानो घश।" (जयादित्य) इस नदीके किनारे "यक्ष" या "वयम्' जातिका दास मुभूतिने कहा है, 'धनेन विधया या एयातस्यापत्यधारा रहनके कारण इसका पक्ष नाम पड़ा होगा। यहा। घश" अर्थात् धन और विद्यागौरवसे प्रसिद्ध भापत्य सूर्य योर धम्नि उपासक शकोंके अभ्युदयके वाद घौद्ध धाराका नाम हो यश है। प्रभाव फैला था। वीं सदीमें चीनपरियाज इस नदी भारतवर्ष के प्राचीन इतिहासको पालोचना करनेसे जाना" के किनारे अनेक योद्धकी िऔर मगो रतूपके निदशम आता है कि पूर्णकालसे यहा अनेक प्रतिष्ठित और वीर्य देख गये थे। उहोंने भी इस नदीका पोत्सु वा वधु शाली राजवशका आधिपत्य पैला था। ये सब विमिन नामसे उल्लेख किया है। उनके वणनमे अनरतप्त | वशीय राजस तति-परम्परा मिन मिन समयमें भिन्न (पर्चमान सरीफूल) हदके पूर्वा शसे गड्डा, दक्षिणसे भिन्न स्थानका अप्रतिहत प्रभायमे राज्यशासन फर गइ सिधु पश्चिमसे यक्ष तथा उत्तराशसे सीता नदी निकती हैं। पुराणादिमें पृथुनश भरतवश आदि अनेक सुप्राचीन है। चीनपरिवाजक इस स्थानो देश पर जो वणन वॉका हाल लिखा है। उनमेसे सूर्यवश और च द्रवश पर गये हैं, उसके साथ विष्णु और मत्स्यपुराण वर्णन | माप्रधान हैं। सूर्यवश, महाराज मान्धाता दिलीप, कापकदम मेल है। चीनपरिबाजक्ने जिसे 'अनसतप्त' रघु और दशरथात्मन श्रीराम ने जमप्रहण किया था। कर कहा है वही पुराणमें घि दुसर' नामसे परिचित रामचन्द्र द्वारा रावण विजय सूर्यायशकी प्रसिद्धिका कारण है। विन्दुसर देखो। है। च यशमें सैकडौं राजा उत्पन हुए थे। उनमें से पगाला (हि. स्त्री०) भैरय रागको रागिणे । यह मोदय भारतीय महायुद्धके नायक युधिष्ठिरादि पञ्चपाण्डरसे ही जातिको है और इसमें ऋपम तथा धैरतम्बर नहीं वशको ख्याति फैली है। सूर्य और चन्द्रवेश देखा। ल्गत । कलिनायके गतसे यह मम्पूर्ण जातिको है और ___ इन चद्वशको दूमरो शाखा यदुधशमे भगपदवतार इसमें दो बार मध्यम आता है। श्रीकृष्णने न मगहण किया था । इसा शमे दाक्षिणात्य घदनवार (हि. स्त्री० ) वह माला जो सजायटके लिये के प्रसिद्ध यादव राजवश उत्पन हुए हैं। घरों के द्वार पर या मढपके चारों ओर उत्साये समय यादव रानवश देतो।। वाघो जाती है। इस मालामें फूल पत्तिया गुठी रहती ___ तुसुके वशमे उज्जयिनीपति महाराज विमादित्य यज्ञादिमें मामके पल्लय गूथे जात है। माविर्भूत हुए थे। वन्दनमाना देवो । । शक्जातिक अभ्युदयसे भारतघामे शश्शन घणीय व (स० पु० ) वमनि उहिरतिपुरपान वयते इति था। वैदेशिक राजवशका अधिष्ठान हुआ। उस शफे राजे टुवम उद्गिरणे इति धानोर्यद्वा वन गम् इति धातो वाहुल का हिन्दू धर्मको अारम्बन फर राजपूत कात् श ! यद्वा, यष्टि उध्यते इति या वश कान्ती मर पहलाने लगे। तमोमे राजपूत समाजमे ८ शाखाओं में धन था। ततो नुम् । १ पुत्र पौत्रादि । पर्याय- विस्तृत अग्निकुलकी उत्पत्ति हुई। परमार, परिहार, चौलुपय मौर चाहमान पे चार अग्निकुल हैं । इतिहासमें इन चार वशीकी प्रतिपत्तिका यथेष्ट परिचय है। • Wood'sJourney to the Soures of the Oxus J इसा जमसे पहले जैन धीर बौद्ध शिवशके अलावा । शिशुनागवश, नन्दवश, मीयवश, ययनराजवामिन, Vol xx 10 PP III