पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४१४

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यशव शकठिन लम्बन कर काम कर सकते हैं। धासको पत्तिया और गाठ) वैद्याके मतसे यह दाम दो प्रकारका है--सामान्य और को अच्छी तरह काट कर फेंक दे। पीछे उन वासोंके तीन | रमन श । राजनिघण्टुके मतसे इन दोनों प्रकारफे वश चार पुर लगे टुकडे पर एक साथ पाय जलमें डुबो रपे। गुण कराय पुउ तित, शीतल, मूत्ररच्छ, प्रमेह, गश, तालाव या चबच्चे में डुबोते समय उसकी एक पीठ पर पित्तवाद और अनाशकारी तथा अनुकर है रिश काफी नमक छिडा । इस प्रकार ऊपर और नीचे वार | में विशेष गुण यह है कि यह दोपन अजीर्णनाशक मच्य, वार नमक मिड फर घोरे धीरे जल ढालना होता है। पाचन, हृद्य और भारत होता है। जब नर उसमें तमाम फैल नाय तव जर देना बन्दर ____यशाकुर वा कोपल का गुण-कटु तित, अम्ल पाय, दे। इस प्रकार चूण मिश्रित जलम ३।४ मास निमलित शोतल, पित्तरपदाच्छन्न और रुचिकर। रहनेते यह वासा पुलिंदा सड जाता है। पीछे उसे ___भावकाश के मतसे इसका गुण-सारय, शतीर्य, देवावा ऊपरमें फूट पर चर्ण परे । मन तर उस चूर्ण मधुर और पायरस, पस्तिशोधक, छेदा तथा फफ, पो अच्छी तरह साफ कर फिरसे उमको परिष्टत जलमें पित्त, कुष्ठ, व्रण और शोधनाशक, वासका कोपल-टु खुवा देना होता है। फागजके मायतन पा लम्बाइ, चौहार पाय, मधुररस, कटु, विपाक रूक्ष गुरु, सारक, और मोटाईको अनुसार हो परिकार जल मिलानेका विदाही तथा कफ वायु और पित्तपद्धक, घेणुपाल- नियम है । इसके बाद उस जल मिश्रित घशचूणके माड सारक, रूस, कपायरस, कटु, विपाक, वायु और पित्त वर्द्धक, उष्ण वीर्य, मुनरोधक और कफनाशक । को चौकोन उननी आकारके साये में टाल पर यथारीनि नल, शर मादि तृणविशेषको भी वैज्ञानिक मीमासामें कागज बनाया जाता है। कागजके अनुरूप साचेमें वह यश जातिका कहा है। प्राचीन पद्यशास्त्र में भी इस माह समानभायमें फैल कर कागजका आकार धारण को तृणजातिमें शामिल किया है। नल और सार देखो। तो करता है, पर उस समय भी वह गोला रहता है । उस गीले कागजको सुखा लेना आवश्यक है। साचेसे गोले वासरे पत्ते और कच्चे कोपलको सिद्ध कर उसका काढा सबन करानेसे खियाके रजोनिर्गम होता है। कागजको निकाल कर पहले एक गरम दीवारमें उसे भारत और चीनराज्यमें प्रसवके बाद प्रसूतिको यह सुखा लेना होता है। इसी प्रकार घास कोपल फिर काढा पिलाया जाता है । इसमें अच्छी तरह रकमान हो परी मिधित जल में सडा पर वनोनेसे उमदा कागज कर जरायु परिकार होता है। वा मरता है। य शर्याएका हरिद्वण नाश कर नो कागज वशमृपि (स.पु0) ऋपिजिन नाम घश मारणमें बनाया जाता है यह मध्यन और व शचूर्णका बनाया | मापे है। हुमा कागज निट समझा जाता है। एक पका कारीगर | घशक (स. क्ली०) यशकायतीति के का१मगुरु, प्रति मिनिटम इम प्रकारके छ कागज बना सकता है। अगर नामक गधद्रव्य । यश इव प्रतिरति (इवे प्रति ___ अमेरिका और यूरोपरासी कागज ध्यासायियों। कृतौ । पा ३०६ ) इति क्न। २ मत्स्यविशेष, एक वेष्ट इण्डिज द्वोपपुझमे हजारों टावासके रेशे ( Bain | प्रकारको मउली। ३इन भेद एक प्रकारका गाना या boo fibre) ला वर उरए कागज बनाया है। ग्रेजिर | इस । वैद्यकम इसे भीतल, मधुर, स्निग्ध, पुष्टिकारक, यासी चैनानिकगण इसपे वाराष रेशोंको रेलम या पाम सारक, वृष्य और कफनाशक लिया है। इसके रसश में मिलावर कपडे युनते हैं। Mr Routledgeने भारत खाद कुछ प्रारोपन लिये और भारी होता है। ४ क्षत्र, घपा वासके रेशेसे कागज बनानेगे व्यवस्था प्रतिदिन | वश छोरी जातिका पास पौ। रितु बच्चे कोपलको छोड पर दूमरे परिपक | अशक्य (स. सी.) कृष्णगुमाष्ठ फाले अगरकी वासमें उसको उपयोगिता कम और लच अधिक देख रकही। उस प्रस्तार मपूर नहीं दिया गया। घशाठिन (स० पु०) पशा घेणवः पठिना यस्मि देशे स परमें वासक सामान्य भेषन गुण रिरो ना चुक हैं। यशदिन । वाश यन, वासका जगले'।