पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४१८

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व शलोचना-यशपाटी ४२३ पढनेसे नि मन्देह तमाशीरकी बात याद आ जाती है। कितने कोडे लाकर साधे के अन्य बहुतसे पेड़ों पर मालमासियस आदि तर्क द्वारा उसे इसको राछोड दिये। इसम भी उसको वशल्य मिल गया मानते हैं, कितु इम्बोट उमको मीमांसा पर कहते हैं, या । बार बार ऐसी चेष्टा कर यह सिद्धमनोरथ हुया था। कि अरवी या पारसी तवागोर शब्दसे शर्वरा नहीं, उससे मुझे भी काफी लाये मिल गये।" फिर कोई कोई समझो जाती वह सम्मत त्यक्षीरा ( Bark mill ) कहते हैं कि वासकी गाठके भीतर जो सामायिक रस का अपन नमात है। मचारहेतु सिलिका मिश्रित एम और प्रकारका पदार्थ हिन्दू भायुदर्म और मुममानोंके हामा शास्त्रमें। (Silicious Concretion of an opnline unture) ताशीका यहत प्रयोग देखा जाता है। यह शीतल, उत्पन होता है यहा तपास्नीर कहलाता है। किंतु बलवर, कामोहापक और श्यानासनिवारा अन्यान्य यथायमें किस क्सि धातु रामायनिक सयोगमे उस यौपने साथ हुदोगमं प्रयक होता है। अजाण, आमाशय का उत्पत्ति हुई है परीक्षा नियेविना उप्तका पता नहीं तथा उदराधमान आदि रोगोंम यह शीघ्र ही पायदा पह। लग सक्ता। चाना है। यह पिसानिधारक और कफनिःसारक है। ग्लासगो गिरक रसायनकै सपक रो, रमसनको विषम ज्वरमें पिपासा अत्यात यलपती होने पर वश विश्लेषण द्वारा मालूम हुआ है कि इस एप सी भाग रोचनका एक चूणक प्रस्तुत पर प्रयोग करनेसे भारी ! में ६०५० अश सिलिका ११० पटाश, ०६९, पेर उपकार होता है। ८ भाग शररोजन, १६ भाग पीवल, पप्ताड गार आयान ०४० आलुमिनिया ४८७ जल ४ भाग इलायची और १ भाग दारचीना पात्र चूण कर! तथा नाश-२२३ अग है । व शलोचनक मलामा घा अथवा मधुके साथ अवलेह तैयार कर सेवन कराव।। वासमा अपरापर आश मा दबाके कामम आता है। चूर्णकी मात्रा से ले कर २ कपल तक है। फफ पासक कोपल अथवा अग्रभागके आचरकके भीतर रेशे नि सारणके लिये ५से से परप्रेन तक व शलोचन । की तरह जो धारोक पदार्थ रहता है वह विषेला होता प्रयोग किया जा सकता है। है। यह रेशा पाचादिमें मिला कर सेपन पराया ना ___यासमें यह महटुपकारी पदार्थ कैसे उत्पन होता सकता है । सेवन के बाद मनुष्यके शरीरम चिप अपना है. यह माज मोठोक निवारित नहीं हमारा प्रभाव दिखलाता है। कुछ महानके बाद वह व्यक्ति लोगोंके देशर्म कहते हैं, कि दासमें खाता नक्षत्रका जला कलकालका शिकार बन जाता है। पडनेसे वशलोचन उत्पन्न होता है। उद्भिविदशी ) यशवदन (स० वि०) यश व शमान वद्ध हति वश धारणा है, निवासका समाजातरस अथात् गाठ या वृध व्युट । १ ५ शाभिमानरक्षाकारी, व शका गोप पोरके धीच जलाकार तरल पदाय (Natural sap) | बढानेगला । (पु०) २ सबाहिरणित ए राजाका नाम। विस्त हो कर यह महामूल्य पदार्थ उत्पादन करता है। (सह्या० ३६५) वासको करची और कोपलमै यधिक रस रहता है। उसमें व चिन (स० वि०)श घयतीति व ध्र पर प्रकारका माठी गध पाई जाती है। यह रस परिषक णिनि। १ यशको मयादा रखनेवाला। (स्रो०) हो पर प्रमशः तवासीरमें परिणत हो जाता है। अफाम २वलोचना पसलोचन । विभागीय अहरेन राजामधारी Wr Peppe का कहाशवाटी-गली निला नर्गन पप्रचीन नगर। यह है-मैन एक देशी पणिवको तवानोर उत्पन परले अया० २२ ५७ उ० तथा देशा० ८८ २६ पू०के मध्य देता है। विशेष परीक्षामे उसको मालूम हो गया था कि भागीरथीक किनारे स्थित है। शासप्या ८०००स वासमें छेद करनेवाला पर प्रकारका कीडा रहोसे घास ] ऊपर हैं। का गाठका रस मिकीन हो कर रासायनिक सयोगस मुगल सम्राट शाहजहाने जमानेमें वासनाडिया राज मिन माधारका हो जाता है। उसने एक गाउसे ऐमे | वश पूर्व पुष्प रायप रायने इस नगरको यमाया। वास