पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४२५

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वककच्छ-वकराक्षस तक कारमोरका राज्य किया था। एक दिन गन्ध्याले । कोप हो कर, का वाहाणाधम ! देखो, हमागे गायें मरो समय भट्टा नामकी पर योगिनो गुन्दर वेश धारण फरये पडी है, चाहो इन्हीरो ले जायो।' दम पर वादालय गजा वकले पास पहुंची और इन्हें अपने वचनोंसे बड़े विगडे और T-'म मृर्ग राजाको देगी तो मोहित करनेके लिये उसने यागोत्सव देखनेका निमन्त्रण मही, मुझे गाली देना। अच्छा अब मैं का गड्य दिया। राजा अपने पुत्र पोलोंको साथ ले कर मरे दिन | नष्ट किये देता । प्रातःकाल उस योगिनीके याश्रम में गये। योगिनोंने उन चकदारभ्य उन्ही मरी गायोकोले गये चार उन्हींका समीका बलिदान किया। राजतर झिणी) माम काट काट कर हवन करने लगे। यथा समय या बकच्छ (मं० ली० ) एक प्राचीन जनपद । यह नर्मदाके भयङ्कर या समाप्त हुआ। उधर धृतगद्रका राज्य नष्ट किनारे अवस्थित है। कथासरित्सागर लिया है, कि हाने लगा। तब राजा धनराद्र मुनि मरणापन्न । उत्जयिनीके राजा मातवाहन मर्चवर्माने क्लाय व्याकरण मुनिने क्षमा पार दिया । ( महाभारत ) का अध्ययन करके अपने गुरुको यह राज्य गुरु-दक्षिणा- 1 | वकढीप-वि'णुपुरसे चार कोस दक्षिण मल्लभृमिक अन्तर्गत में दिया था। एक प्राचीन ग्राम । यहां कृष्णगयको प्रसिद्ध मूर्ति मौजूद चककरप ( स० पु०) युगान्तरीय कल्पसेट । है। देशावली पढनेसे मालूम होता है, कि यहां मिला- वक्कुण्ड-बम्बईप्रदेशके बेलगाम जिलान्तर्गत एक गण्ड- ती यवस्थित है । अभी यह स्थान वगढ़ी पर लाता है। ग्राम और प्राचीन तीर्थस्थान। यह सम्पगांवसे बारह / वधूप ( सं० पु० ) गन्धद्रव्यविशेष, धूप । मील दक्षिण पूरव पड़ता है। यहां यखनाचार्यका एक सुन्दर वानम्व (सं० पु.) विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम । पत्थरका मन्दिर द। इसके अलावा यहा और भी कई | वनिसदन (सं० पु०) वफस्य निसूदनः । भीमसेन । प्राचीन मन्दिरोंका नडहर पड़ा है। | चक्रपञ्चक ( सं० लो०) कार्तिक शुक्लपक्षको एकादशोले वरुचर ( स ० पु० ) वाम्येय चर-अच । १ वस्नतिन्, / ले कर पूर्णिमा तककी पाच तिथियाँ। बपञ्चक देखो। वकके समान बतो वा आचारधारी। (क्लो०) २ वगलेके | वकपुष्प (सं० पु० ) १ अगस्तका पेड । (क्लो०) २ वक विचरनेका स्थान। वकचिञ्चिका ( स० स्त्री० ) मत्स्यविशेष, एक प्रकारको वकयन्त्र (सं० क्लो०) आसव आदि भवसे उतारने के छोटी मछली। लिये एक यन्त्र यो वरतन। इसके मुंह पर वगलेको वकजिन् (म पु०) १ भीमसेन । २ श्रीकृष्ण । गरदनकी तरह टेढो नली लगी रहती है। अगरेजीमे इसे बकत्व (स.त्रि०) वकका भाव Retort कहते है। वस्टाल्ल्य-एक महातपा मुनि। इन्होंने जिस स्थान पर वकया-चम्पारणके अन्तर्गत पत्र नदी। तपस्या की था वह स्थान बड़ा ही पवित्र तथा शान्तिप्रद (भविष्य वाख० ४२११४१) है। वहां जानेले अन्य जातिके भी लोग ब्राह्मण हो जाते वकराक्षस-एकचक्रानगरवासी राक्षसभेद। कुन्तीदेवी < । उनका आश्रम धृतराष्ट्र के राज्यमें था। पञ्चपाण्डपके साथ एकचक्राले एक ब्राह्मणके घर रहती एक दिन सुनियोंने राजा विश्वजितके लिये दारह वर्ष- थो । एक दिन अकस्मात् ब्राह्मणके घरमे आर्तनाद सुनाई में समाप्त होनेवाला यज किया था। उस यज्ञमें पाञ्चाल दिया। अन्त.पुर जानेसे कुन्तीदेवीको मालूम हुआ, कि देशके मुनि वफदाल्भ्य भी गये हुए थे। मुनिको उस इस नगरमे वक नामक एक राक्षस रहता है। नगरवासी यज्ञ में बड़े बलिष्ठ २१ बैल दक्षिणामें मिले। कदात्म्यने । प्रति दिन वारी वारी उसे अपने अपने परिवारसं एक अन्य मुनियोंसे रहा,-'तुम लोग इन बैलोंको ले लो। मैं एक मनुष्य और दो दो महिप देने को बाध्य हैं। आज जा र गाजा धृतराष्ट्रसे दूसरे वैल ले लूगा।' मुनि राजा ब्राह्मणको दारी है, इसीलिये वे रोने हैं। यदि आज चक- धृतराष्ट्रके पास पहुंचे और उनसे वैल मार्ग। राजाने , राक्षसके पास किसीको नहीं भेजा जायगा, तो वह आ