पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४२७

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बकासुर-वक्तशाली वकासुर (सं० पु०)१ दैत्य । यह पूतनाका भाई और , वकुली (सं० स्त्री०) १ काकोली नामको ओपधि । क्सका अनुचर था। उसकी आमा पा कर यह कणवा २ वकुल, मौलसिगे। वध करनेके लिये गण और उन्हें निगल गया! पीछे वकुम (रा. पु०) वह त्यागी यति या साधु जिसे अपने कृष्णने होंठ फाड वर इसको यमपुर मेज दिया। (भादि प्रन्थों, शरीर और मत्तो या शिष्योंकी कुछ कुछ चिन्ता पुराया और भागश्त ) २एक राक्षस। भीमसेनने इस रहती हो। राक्षमको उस समय मारा था जव पाचो पांडव लाक्षा- वश ( अ० पु०) घटिन होना, प्रकट होना । गृहसे निकल कर वनमे जा कर रहते थे। बकृफ (१० पु० ) १ जान, जानकारी। २ बुद्धि, ममम । वकी (मा.स्त्री०) एक राक्षसाका नाम। बरका (रा० सी०) बलाका, वगली । वकील (अ० पु०) दूसरेके कामको उसकी मोरसे करनेका बकेम ( ० पु.) वकप्रतिष्टित शिवलिमेट । भार लेनेवाला। २ राजदूत, एलची। ३ दूसरे- | चमोट (० पु०) वक, वगला। का सन्देशा ले जा कर उस पर जोर देनेवाला, दृत । वकालिन (रां• पु०)पक ऋपिका नाम । ४ दूसरे का पक्ष मउन करनेवाला, दूसरेकी ओरसे उसके. वास ( रा. पु०) मयविशेष, एक प्रकारको शराय । अनुकूल वात करनेवाला। ५प्रतिनिधि । ६ कानूनके इसका गुण-- "कपःप्रसाहिताटोपन मानिलमोन्हत् । अनुसार वह आदमो जिसने वकालतकी परीक्षा पान वकमा हतसारत्वात् विष्टम्भो वानमंपनः। पी हो और जिसे हाईकोर्ट की औरसे अधिकार मिला हो, कि वह अदालतोंमें मुद्दई या मुद्दालेकी ओरसे वहम टोपनवनिया मुत्रो विशदोऽल्पमदो गुरुः ॥" (मुस त ) करें। वकृल-बौद्धभेद। वकुल ( स० पु.) १ स्वनामप्रसिद्ध पुग्पवृक्ष, अगस्त वक्त (अ० पु०) १ समय, काल । २ किसी बात के होनेका सम्य, अवसर,मांका। इतना समय कि कोई काम का पेड़ या फूल । इसके छिलके और फूलका गुण- शीतल, हृद्य, विपदोपहर, मधुर, कपाय, मदाढ्य, रुरूप, किया जा सके, अकाश, फुरसत । ४ मृत्युकाल, मरने- का नियत समय। हर्पद, स्निग्ध, मलसंग्राहो, क्षीराढ्य और सुरभि । इसकी छालके चूरसे दात धोनेसे दांतकी जड मजबूत होती है। वक्तन् फौवतन् (अ० क्रि० वि०) १ यदाकदा. कभी कभी। २ यथासमय। _ विस्तृत विवरण पवर्गके बकुल शब्द देखा। वक्तपुर-बम्बई प्रेसिडेन्सीके रेवाकान्था पाण्डुसेवासके बकुलपुष्प (सं० क्ली) वकुलका फूल । अन्तर्गत एक सामन्तराज्य । यह सम्पत्ति राचल उपाधि- चकुला ( स० सी०) वकुल-टाप्। १ कुटकी नामक | धारी तीन सामन्तोंके अधीन हैं। ये लोग बड़ोदाके ओषधि । (पु०) २ पर्णमृग। गायकवाड़को कर देते हैं। नगरभाग डेढ वर्गमील है। वकुलाद्य तेल-तैलीपधभेद । प्रस्तुत-प्रणाली-काथके | वक्तव्य ( स० वि० ) व्र वच वा तथ्य । १ कुत्सित, हीन । लिये वकुल फल, लोध, हाउञ्च, नीली झटी, अमलतास, | २वचनीय, वाच्य, कहने योग्य । ३ कुछ कहने सुनने वाबलाकी छाल, शाल वृक्षको छाल, खैरकी लकड़ी, कुल लायक । चच भावे तव्य । (क्लो०) ४ वचन, कथन । मिला कर १२६० सेर , तिलका तेल ४ सैर, पाकार्थ ५ वाच्य, यह बात जो किसी विपयमें कहनी हो । जल ६४ सेर, शेप १६ सर , कल्कार्थ क्वाथद्रव्य सव | ६ निन्दा, शिकायत । मिला कर १ सेर। इस तेलको मुखमें घी या नरयकी वक्तव्यता ( स० क्ली० ) कथनयोग्यता, वह वात जो कहने- तरह सूचनेसे हिलता हुआ दात मजबूत होता है। के लायक हो। (भैपन्यरत्ना० मुखरोगायिका० ) वक्तव्यत्व (स० क्लो० ) वक्तव्यता देखो। वलित (सं०नि०) बकुलपुष्पपरिशोभित । वक्तशाली ( स. पु० ) खनामख्यात मध्यदेशमे होने-