पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४२९

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चपवाधिवास-बनात ला वारा ( स० पु०) नागराल, नारंगीका पेड़। ८ यागनिविष्टिप्रद । जिम रिसीमाका गाधित क्यों वालवालु ( पु०) बाराहीकन्द । न हो, उस प्रासं ग्र्याविष्टित राशि नीस अंशय. दर धपतासय (सं० पु. ) चक्दर र सासवः। लाला, शृक । ' ही सूर्य रहेंगे। मगति देगा। धावी (संस्त्री० ) रा वक्ता। ____महाभारत अनुनार करप्रदेशीय एक राजा। पपत्य ( स० वि०) वक्तव्य, कहने योग्य । । ( भारन २।१४१५१) १० यानन्युत सौर वोमन वयात ( R० पु० ) १ वह भूमि या सम्पत्ति जो धमाय: अम्यिादविशेष । ११ रामायण के अनुसार एक राक्षसका दान कर दी गई हो, किसी धर्मके पागमे लगी दुई। नाम । (गण्या १२१३) १२ जातिविशेष। जायदाद । २ किसी के लिद कोई चीज या धन सम्पत्ति ! (लि.) नीति। कि पौटिल्ये रन । पृपोरग- आदि छोड देना। ३ किसी धर्म काममे धन शादि दित्वात् न लोपः। यहा चिरक । १३ अन्च, टेढा, देना, धार्थि दान । यांका । पयाय-पराल, जिन , जिहा, अनिमत्, कुञ्चिल, कफनामा (फा० पु०) चह पव जिसके अनुसार किमी. नत, आरिख, टिल, मुग्न, वैहित, बदकर, बेटा, नाम कोर्ट चाज बफ की जाय, दानात। विनत, उन्दुर, अवनत, भागत, नगर। ___" माय एक प्रनिगमका' च्छा (अ0पु0) अवकाश, मोहलत ।२काम करनेसे विराम (भारत ३।२३२१२) वधमन् (सलो०) मार्ग, मार्गभूत । कविकल्पलगके नीचे लिये बहुत से विदों के नाम दिये जाते है,- वक्मराजसत्य (स० लि.) स्तोत्र करनेवालोंका विश्वस्त ।। (ऋक ६ ११११० ) 'मराजसत्याः यमवचन स्तोत्र । तस्य अलक, माल, बेनर्मात्रा मुग, कुचिका, भग्न- राजान देशाना वक्मराजानः स्तानारः तं सत्या अस्तिथा ! पण, बालेन्दु, दान, हल, चन्द्रक, काश्य, पलाशपुग्य, (सारण) विद्य त् , कटान, नु, फणा, बीच, कर, हस्तिदन्त, पाप ( सं त्रि.) : प्रसाई, वडाई करने के योग्य। शरद I, सिदनपादि। (विपनता) १४ भुकता २ रतुतियां। शुभा, तिरछ।। १५ कर, कुटिल। २६ शट । "प्रत विश्मि वान्या एका मस्ता मरिमासया अस्ति ।" बनाएट ( स०४०) या एटा, करटका यस्य । १ वदर. (ऋक् ६/०६७६) / वृक्ष, वेरका पेड। २ उब्लिकण्टक। . 'य: म रतुत्ये, सत्येऽवाध्गाऽमानोऽरित तम्। वकण्टक (स: पु० ) वका. पाटकाः अस्य । सदिर- (सारया) | वृक्ष, चरका पंट। चक (म० ० । बढ़ते प्रति वकि कौटिल्ये रन् । पृपो. वक्रवड ग ( स० पु० ) वम पड गः। परवाल, नाचून दाहित्यात् न लोपः यहा बञ्चतीति वञ्च गनी ( स्फायि । और तलवार । तविकञ्चीनि । उगा २१६३ ) इति रक । न्यडफ्यादित्वात् । वक्रग (० पु०) चक्र याति गच्छनीति गम ड । सर्प, साँप । कुन्धम् । १ नदीबद्ध, नटीका मोड। पर्याय-पुटमेद, वक्रगति ( स० स्त्री० ) वका गतिस्याः । ११ जिसकी बद । २ तारपादुका । चक्रपाणि शिरोगाधिकारोक गति टेढो हो । २ महल या नदी आदि । श्वेताद्वा तैलमेटसको व्यवहारोपयोगिता लिपिनद्ध कर खगोलस्थित ग्रहगण एक स्थानसे चल कर निर्दि गये है। समयमे पुनः उसी स्थान पर आ जाते हैं। ग्रहों के इस (पु०) बञ्चनीति पञ्चगता (स्फायितञ्चिवचीति । उण चिरन्तन प्रसिद्ध गमनका नाम गति है। गगनका कारण २१३) इति रम् । न्यटकादित्वात् कुत्वम् । ३ गनैश्चर । रहने ही ग्रहगण स गनिशक्ति द्वारा चालित होते हैं। ४ मद्गलमर । ५ रुद्र त्रिपुरासुर । ७ पट | वे एक प्रकारको गनिसे नहीं चलने। आपमके आकर्षण