यस्त
-वक
कड़वा अ६. पा11 रक्तचालिका, लाल फली . एनानो काममा जाना : नियो
विपलागली।
या नामावता “दि पात्र
वनङ्ग (सं० त्रि) जिरदे सीग टेढ़े हों ( महिए वो ही होती
मादि)।
वहिक (स० दि०) . राव मन यताब
वक्रान (सं० क्ली० ) व अन यस्य । कयाटवावृक्ष उटिल, के।
वेतुका पेड।
| बनिमन (२०४०) । मनापन ।
वक्रान (सं० लो०) वक्र अङ्ग यस्य । १ स । २सर्पवजी (2030 -नि ।
साँप । ३ कुटिल अवयव, टेढा अङ्ग। (नि.) ४ कुटिल वनीकरण (२० नमी को पन या
अवयव विशिष्ट, जिसका ग रेढा हो।
आग योगाना!
वक्रानि ( स० पु० ) वक्र पाद, टेढ़ा पेर। कोन (cfroiमोनादायिः।
वक्राति संत्रामदेव-काश्मीर राज यार करके पुत ।। पर जो देखा होगा।
राजा यशस्कर जब वहुन बीमार पड़े, नद उन्होंने पहले पन्नोगय (२० ६ ला कापन २ टिगना,
अपने पुत्रको छोड कर अपने चाचा नाती वर्णटो शठना । प्रचारका, भौरेजी।
राज्य दिया था; परन्तु यशस्करके जीने-जी जब वट वत्री ( दि. मासामोरेदा हो गया हो।
मनमाना करने लगा, तब मन्त्रियोंकी सलाहले गाने २वदनायुन, धोकाः । वादचित्त, जटिल ।
वर्णटको अलग करके अपने पुत्र को राज्य दिया। बक्रेतर (संवि० ) जो कानोत् सरल।
राजा यशस्करके परलोक सिधारने पर संग्रामदेवकी बर-बीरभूम जिले वर्तमान प्रधान्द शहर
उमर कम थी इसलिये उनकी पितामही असिमाविका मिउदीस ८ मोल रिबन चरिकन एक अति प्राचीन
हो गई । पर्वागुप्त उन दिनों राज्य लेनेके लिये बहुत तीयस्थान ! दरियर परगनेने तांतिरामा नाम जो प्राद
व्याकुल हो रहा था। उसने एक दिन मौका देख कर है उसले परोस बक्षिा पर मालेको बगल में
राजभवन पर चढ़ाई की और संग्रामदेवको मार डाला उर. नाचीन हतिका सामनार तगा।
तथा उनके गले में पत्थर बंधवा कर उन्हें जिसी नदीमें यक्षानी जानीन नीचियin विलुप्त होने पर गो
फेंकवा दिया। इनके पैर टेढ़े थे इस कारण इनका नाम! 'कारेश्वर' होताना द्धिप आज सी ३०० शिक्ष-
वक्रांनि पड़ गया था। इन्होंने ६ महीने ६ दिन राय मन्दिर और गर्ने बानीमातीने नयन बार
किया था।
मनको मापा जरने। प्राचीन यहोवाक्षेत
चक्रातप (मं० पु०) महाभारतके अनुसार एक जाति। नामानुसार वामनी र स्थान 'म- जर"
इस जातिका दूसरा नाम वक्राति है।
नामले जनसाधारण प्रसिद्ध है।
वक्रि (सं० वि०) मिथ्यावादी, झूठ बोलनेवाला।
गौड्देश मा बरोबर लोगशए प्रधान
वक्रित ( स० त्रि०) वक्र-इवच । १ बक्रताप्राप्त, जो टेवा और प्राचीन नाई। जात्त और वेव प्रभाव
हो गया हो। २ वक, टेढ़ा।
फैलनके साथ साथ या शबीन देव धीरे धीरे बड़-
वक्रिन् ( स० पु. ) वक्रो बक्रतारयास्तीति इनि। वैदिक- वानी निकट अपरिज्ञात होता. स्मे सन्देह नहीं!
धर्मविरुद्धवादित्वादस्य तथालन्। १ बुदेव, जिन्होंने ब्रह्माएट-उपपुराण. सन्तति को घर-माराम्यमे
टेढी युक्तियोंसे वैदिक मतका विरोध किया था। २ वह कोश्वरता पूर्व परिचय और महिमामा रायिस्तर
प्राणो जिसके अंग जन्मसे टेढ़े हों। ३ कात्तिा (नि.)' वर्णन देखने में आता है।
४ वनविशिष्ट, सपने मार्गको छोड कर पीछे लौटनेवाला "गोडो म7 जेब परमवन्। .
फलितज्योतिपमें लिखा है, कि जो ग्रह अपनी राशि नामसानप मुच्यते विमात् ।।" . .
२वन
ढ़ा।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४३१
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