पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४४०

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पति पत्र चट्टोपाध्याय यो ए, का उपाधि उस समय ऐमा अपूर्ण सामग्री समयो । अरजी लेस पर कर सभा चिमुग्ध हो गये थे। यहाँ नाता थो हि यङ्किम पावूको देखने रिये बहुत दूरके ) तक, कि 'नके पतिद्वद्वी हेष्टि साहबने भो मुतपण्उसे लोग पाने थे । बडिम पादू शिक्षित मण्डलीके मुखोजमल स्वीकार दिया था, 'इतने दिनोंके बाद बहार में मुझे एक 'या, प, पङ्किम" कह कर तमाम परिचित हुए थे। उपयुक प्रतिद्वदी मिला है। ___घा, ५, पराशा पास करनेके पुछ समय बाद हा सरकारी नौकरीसे अलग होनेके पर धर्ण पहले छोटा सार हैलिडे सादवने हे हिपटा मनिष्ट्रट बना घडिमरद यङ्गाल-गनमे एटके सरकारी सिक्रेटरी हुए कर भेजा। इस पारण ये माइन पराक्षामें मम्मत थे। जितु नाना कारणीय इदे यद पर परित्याग करना हो सके। पड़ा था। नति AT TT सनराग रहता था। दुर्गेशनन्दिनाफे प्रचारसे घडिमचद्रकी ज्याति चारी दूसरेको वस्तुमे अपने घरको यस्तु अच्छी होती है, इस ओर पल गइ। पीटे १८५७ १०में पापुण्डला और वातका रहोंने सबसे पहले शिक्षित सम्प्रदायके पीव १८०० ३०में मृणारिनो प्रकाशित हुई। १८७२ में प्रचार किया। उ रानकायमें नियुक्त हो कर भी बङ्गदर्शनका प्रचार हुआ । षड्गदर्शन के प्रकाशके रहोंने मातृमापाका सेवाको हा मावनका सपनेष्ठ लक्ष्य। साथ बलदेशमे मानों युगातर उपस्थित हुआ। समम्म रखा था। बगीय रेपकोंशी तिमी परिपर्सिन ए। शिक्षित वारसालसे 3 बदमापाके प्रति अनुराग दिपाइ। बङ्गवासीके निकट बादशनमा रेसा सादर देता था। ये इश्वरगुप्तको कवितामाला बडे यानन्दुके। हुआ था वैसा भादर आज तक किसी सामयिक माप पढ़ा करते थे। १३ वर्षको उमरमें होने मानस पता नहीं हुआ है । बङ्गदर्शनके सम्पादक रूपम यदिम गौर ललित नामक पविता लिखी। इसरगुप्त उनको चदने माज कलफे श्रेष्ठ बहुतसे लेप ही लिखने फपिना सुन कर व प्रमा हाते थे तथा प्रभाकर की रीति मिखला दी धी तथा आपने भा अनेक प्रयध प्रकार उदे उत्साहित करते थे। उस दिनसे बदिम , और उपयास लिए फर साहित्यनगतमें पकाधिपत्य वह इसरगुप्तके निप्य हुए। लाम किया था। जो पहभापाको अपना मातृमापा १८६१ ३०में उनका प्रथम उप-पास दुर्गेशनन्दिनी । स्वीकार करतेम रजा बोध करत थे, अगरेजीमापामें लिया गया और मर चप प्रकाशित हुआ। यद्यपि , लिपित प्रयही निना ममाल घेदम्परूप था, विदेशी म गरेनो आदर्श पर उक्त उपन्यास रखा गया था, फिर के अनुकरणको हा पो पौरनकी एकमाल कृतस्नायता मी इसी प्रयम उद्यमसे उन्होंने यहभाषाके ऊपर असाधा का कारण समझते थे-उन परम उरत प्रासमाना प्य रण माधिपत्य और चरिखवित्रणमे भपूर दसता घनशे घडिन पायून हो उपस्थित पर उनके चरणों में दिला है। उपग्यास लिश कर विसोफे भाग्यमें। अर्घ्यप्रदान परनके रिपे वाध्य क्यिा । तमीसे अगरेजी ऐमा मफ्लता मिली है। इसके पहले रहोंने । शिक्षित युपत्र हा घनमापाके सेयकों ना हो गये हैं। Irdian ficid नामर पत्रिकाम राजमोहनकी मौ'! यदिम थायूसे इस कार्यसे मातृभाषाका तमाम प्रगर Rajmohan sile नाम पर उपन्यास लिखना शुरू हुमा, सा कारण ये 'बगमापाके सम्राट' कहे जाते हैं। पर दिया। रितु उस पशिशफे यद हो जानेमें इनका इन्होंने यदशा निम्नलिखित पुस्त प्रकाशक कौं- अगरेगी उपन्यास मा सम्पूर्ण रद्द गया। । १२७६ सालमें विपक्ष और इन्दिरा १२८० साबन्द पीरिया जा चुका है कि अगरेती मायाम शेनर मोर युगररागुरोप १२८१ मालमें रननी, १२०० ८१ पदिमचन्द्रको असाधारण व्युत्पत्ति यो। स्टेटममैन । मौर ८२ साल्में कमलामाता दफ्तर, १२८५ सालमें पनि जेनरल एसेम्बरीके भूतपूर्व मिमिपल हटि छातापिट, २८ मालमें रामसिंह १२८७ और माइएक साथ जो हेपनो युद् चला था। उममें इनका ८ साग्में मानादमछ, १९८७ माग्में मुचौरामगुहा Vol 11: