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वन-बदेश
विशुद्ध वनको दूसरी हंडीमें गला कर उसोछे परि- वङ्ग (सं० पु० ) चन्द्रवंशीय वलि राजाके पुत्र । (गादपुगण.
माणमें अपामार्गभस्मचूर्ण उसमें मिला कर बलमें १४४ १०) महाभारतमे लिया है, कि राजा बलि को कोरे
अच्छी तरह घोंटना होगा। पीछे राख फेज कर शराय सन्तति न ई । तब उन्होंने बधे दीर्घतमा ऋषि द्वारा
पुटमें तेज आंच देने पर बङ्गमस्म होता है।
अपनी रानीके गर्मग्ने पात्र पुत्र उत्पन्न कराये। इन
बामस्मका गुण-तिक्त, नम्, रुन, वातनईक, मेद, पुत्रों के नाम हुए-अन्न, वगः कलिङ्ग, पुण्द और गुम ।
ग्लेम, कृमि और मेहरोगनाशक ।
इन्हीं के नाम पर देशोंके नाम पडे ।
अविशुद्ध घट्नका गुण-तिक्त, मधुर, मेटन, पाण्डु,
"ततः प्रसादयामास पुनस्तनूपिमत्तमम् ।
कृमि और वातनाशक, थोडा पित्तकर और लेखनोप-
वलि नुरेण्या भार्या या तस्मै नां प्राहियोत् पुनः।
योगी।
तास दीर्घतमान पुस्पृष्ट्या देरीमथानचीत् ।
२ सीसक, सीसा। सीमक और वन प्रायः पक ही
भविष्यन्ति कुमारान्ने जमादित्यर्चमः ॥
समान होता है । यथास्थान इसका वैज्ञानिक संयोग और
गुणावली लिखी गई है। प्रपु, रङ्ग धौर मीसक देखो।।
बलो वरः कग्निशन पुण्डः नुन ते मुनाः ।
तेषां देशाः समारबाता. पनाममथिता भुषि।
कार्पास, जपान । ४ वार्ताकु, बैंगन ।
अल्यानो भवेद्दशो बनो यनस्य च नः ।
वन (सं० पु०) मगध या विहार के पूर्व पड़नेवाला प्रदेश,
अग्निद्गतिपयन्चैव कन्निनस्य च म समृतः ।।
बंगाल। ऋग्वेदमें सबसे पूर्व पढनेवाले जिस प्रदेशका
उल्लेख है, वह 'कीकर' (मगध) है। अपर्व संहितामे
पुण्डस्य पुपदा प्रख्याना सुझा मुद्रास्य च स्मृताः ।
'न्पङ्ग देशका भी नाम मिलता है। संहिताओं में 'बग'
एन वालेः पुग यगः प्रयातो वे मर्पितः ॥"
नाम नहीं मिलता। ऐतरेय आरण्यकमे ही सबसे पहले
(भारत १।१०४ । ४७-५१) वादे रब्दमें पुरान देखो।
वङ्ग देशकी चर्चा पाई है और वहां निवासियोंकी व पगज (२०१०) बङ्गात् धातुविशेषात् जायते इति जन-
लता और दुराहार थादिका उत्लेख पाया जाता है। वात। डा
। । १ सिन्दूर । २ पित्तल, पीतल। (नि.) ३ वन-
यह है, कि संहिताकालमें कीट और बट देशमे अनायो.. देश जान । ४ बङ्गदेशवासी कायस्थ, वेद्य गदि ज्ञाति-
फा ही निवास था। आर्यलोग वहां न न पहुंचे थे।
का एक श्रेणीविभाग । ये दक्षिण-राढीय श्रेणीकी
गैधायन धर्मसूत्रमे लिया है, कि वन, कलिग, पुण्ड आदि अन्यतम शासा कह कर परिचित हैं । यह शाखा बङ्गदेश-
देगोंमे जानेवालेको लौटने पर पुनस्तोम या फरता के पूर्वाञ्चलमें था फर बस गई है इसलिये बलज कहा
चाहिये। मनुस्मृतिमें तीर्थयात्राके लिये जानेकी आना
लाती है।
है। इससे जान पड़ता है, कि उस समय आर्य वहां बस
उनजीवन ( स० लो०) रौप्य, चांदी ।
गये थे । शतपथ ब्राह्मणके समयमें मिथिलामें विदेह वंश
बनदेश-स्वनामप्रसिद्ध भारतीय देशमाग। यह माग
प्रतिष्ठित था। रामायणमे प्राग्ज्योतिपुर ( रगपुरसे ले
मारतवर्ष के उत्तर-पूर्व हिमालय पहाडकी जडसे ले कर
कर आसाम तक प्रागज्योतिप प्रदेश कहलाता था) की
दक्षिण समुद्रतट तक फैला हुआ है । भारतका यह भाग
स्थापनाका उल्लेख है।
चंगभूमि, चगराज्य, बंगला तथा बंगालाके नामले प्रसिद्ध
इस प्राचीन बङ्गकी सीमा कहाँ तक फैली थी, इसके था। भारतवर्पके पूर्वोत्तर प्रान्तवत्ती पूण्यतोया गगानदी-
जाननेका कोई उपाय नहीं है। अपेक्षाकृत परवत्तीकालमे प्रवाहित डेल्टाके कुछ अंश ले कर यह राज्य संगठित है।
वडकी जैसी सीमा निर्दिए एई थी, वह नीचे लिखे बहुत प्राचीन कालमें ही यहांके लोगों का वाणिज्य कार्य-
श्लोकमे दिया जाता है।
क्रम अरव तथा चीनराज्यके साथ चल रहा था। उस
रत्नाकर समारभ्य ब्रह्मपुत्रान्तग शिव ।
समय भी इस देशके रहनेवालोंकी शानबत्ता तथा वुद्धि-
वनदेशो मया प्रोक्त. सर्व सिद्धिप्रदर्शकः॥"
मत्तासे संसार भरके सभी देश परिचित थे। इन लोगों-
( शक्तिसद्गमतन्त्र ) विस्तृत विवरण बगदेशमें देखो।। की शिल्पादि तथा दूसरी दूसरी कलाविद्याका प्रखर-
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४४३
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