पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४५४ बनदेश कुछ दिन बाद वह समुद्रगर्भको सेद कर ऊपर उठेगा देखने पर उसमें भी विभाग दिखाई देता है। किन्तु मोटी और क्रमशः प्राममे नगरमें परिणत हो जायगा। दृष्टिले एक ही प्रकारको मिट्टी देखी जाती है। सभी __ मेघना नदीके सागरसङ्गम पर बादुरा, मानपुरा आदि जगह पर समान कंकड़ पत्थरसे परिपूर्ण है, अथवा द्वीप जो सौ वर्ष पहले केवल भाटेके समय जग उठता पहाडी कठिन मिट्टी ही दिखाई देती है। विन्ध्य और और ज्वारके समय इव जाता था अभी वही उच्च भूमि पूर्वघाट पर्वतमालाको मिट्टीकी प्रकृतिके साथ इसका और बहुजनाकीर्ण ग्रामोंसे परिपूर्ण हो गया है। उसके | | अनेक चिपयोंमें प्रभेद रहने पर भी एक विषयमे दोनों बाद नाजीरचर, फालकनचर नामक और भी दो छोटे समान ही है यानी ककडी और पथरीली मिट्टी है। होप उल्लेखनीय है। १८६० १०में भी वह जंगलोंसे भरा जहां कंकड और पत्थर दिखाई नहीं देता, (जैसे वर्द्धमान था, अभी यहा वहुत लोगोंका वास हो गया है। उसके जिलेके दक्षिण और पश्चिम भागमे तथा हुगलीके पश्चि- वाद चौविसपरगना, खुलना और वारिशालसे बहुत ! माशमें ) यहां मिट्टी इतनी कठिन है, कि उसको भी दक्षिण जहा सौ वर्ष पहले ममुद्रतरङ्ग बहती थी अभी | पत्थर-प्रकृत्तिकी ही कही जाय तो अत्युक्ति नही कही जा उन सब स्थानोंमे असंस्थ ग्राम नगर बस गये हैं। मकती और उसकी प्रकृति भी ऐसी है, कि बङ्गाल के नदी-रोतस लाये गये वालके कण जब नदी गर्भमैं | और कही भी वैसी मिट्टी पाई नहीं जाती । इस भूभाग सञ्चित होते, तब चरकी उत्पनि होती है। यह बात मन- की मिट्टी बहु युगयुगान्तरसे निर्मित है, सुतरां सीधी वादिग्सम्मत है । इस बङ्गभूमिमें प्रवाहित गङ्गा नदी किन ! वातमै उसे पको मिट्टी कही जा सकती है । यह निश्चित वेगसे कितनी मिट्टी प्रति दिन वहन कर समुद्रमुखमें है, कि एक समयमे समुद्र गौडके निकट तक फैला था दाल देती है, उसकी गणना करनेसे चमत्कृत होना । अथवा और भी पहले गङ्गासागरसङ्गम जव राज- पड़ता है। करीब ७५ वर्ष पहले कुछ अभिज्ञ यूरोपीय महलका सान्निध्य में अवस्थित था, उस समय समुद्रका पण्डिनोंने गाजीपुरमे वैट कर नाना उपाय प्रयोग द्वारा जल कभी भी इस मिट्टीको पार नहीं कर सत्ता था। स्थिर किया था, कि गङ्गा प्रति वर्ण सागरसङ्गमस्थलमै इसी कारण समुद्रका जल हट जाने पर जो चिह देखा १७३८२४०००० मन मिट्टो वहन कर ढाल देती है। जाता है या मछलियोंके अस्थिपञ्जर या जल जीवोंकी किन्तु गाजीपुरसे दक्षिण स्वयं गङ्गा और उसी | हड्डिया जो दिखाई देती हैं, वे सव इस मिट्टीमे दिखाई शोन, गजय आदि शाला नदियां सुन्दरवनके नहीं देती। इसने स्पष्ट है, कि इस मिट्टो पर समुद्रका मध्यमे अवस्थित २५० नदिया तथा उसके बाद | जल नही था। उत्तर पूर्व के कोनेसे आई हुई ब्रह्मपुत्र या ललेश्वरी आदि द्वितीय विभाग-पद्मा और बूढी गङ्गाके उत्तरी किनारसे कई नदिया एकमें मिल कर वहां कितना मन मिट्टी ले हिमाल्यके नीचे तराई भूमि तक सारा भूभाग जाती है, इसका कुछ अन्दाज नहीं लगाया जा सकता। हिमालयकी ढालुई भूमि है। यह हिमालयके ऊ'चे प्रदेशसे उपरोक्त मृतिकास्तरको गठन और परिणति बङ्गाल पद्माके उत्तरी तट पर क्रमागत ढालू होतो आई है। इस का किसी किसी विभागमें विस तरह संसाधित हुई थी, भूभागकी सर्वन ही मिट्टी एक प्रकारकी है , सभी जगह उनका (विभाग करके ) विवरण संक्षेपमे दिया जाता | हिमालयके गात्रविधौत वालुकाराशि है। इस पर किञ्चित् परिमाणसे वालुका मिली है। दो अंश मिट्टी प्रथम विभाग---राजमहलको पर्वतश्रेणोसे आरम्भ एक अ श बालू रहनेसे यह भूमि शरय उत्पादनके लिये करके भागीरथीके उत्पत्तिस्थान छापघाटी तक बड़ी उपयोगी है। इस ढालूई वालुई जमोनमें सर्वत्र हो गङ्गाके दक्षिण और छापघाटीसे भागीरथीके पश्चिम हिमालयको गात्रविधौत जलधारा अन्तःसलिल के रूपमें द्वारसे, ले कर मेदिनीपुर तक प्रायः एक हो । प्रवाहित रहने पर सारे देशको भूमिमें कुछ कुछ जल- तरहको मिट्टी देखी जाती है। भूतत्वविदोंकी सूक्ष्म दृष्टिसे सिक्त और आई है । इस मिट्टोमें अधिक वालू रहनेसे