पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४५९

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४६४ घदेश प्रतिवा-समझमें गती-वाहादि निवारणमा हिन्दूवर्ग या अर्थात् देशासीगण, '२aar: र्थात विरुद्ध घोरतर समाज निप्लककर गन्द्रोदन ले " हिन्द सरावासीगण और 'गा:' अर्थात् शिवानी अधिवासियों को तंग कर दिया है, प्रायः उमो समय | गण } यह विविध प्रशा ही चया दुर्चलाध्या दुगार या ही १८२८ ईमे पूर्व-बहमे हाजी सरिन उलाने फगती। पर अपत्यताले काम, नदक और पासवन (जनर ) नामक सरजन लाम-धर्मात प्रवर्तन तारा सुन्नी- साटि सदा ।। समदारका प, सिवान मामला बिहार किया या कारदिक मिगुगा नाश भगार्य निवास हो फगजी देखा जाता है। इस शनाय निमोसोलार प्रावन पाय पुरात भापमान मानना रामनिया होगा। __ अति प्रात्रीन हादस बदाल नामा मगर तना छोटे मानन्दन थर्ग प्राचीन मानी जनुनी । छोटे राज्यों में विमनाया। अब कुछ समय पूर्वा- केवल नरेय माता की, बहालको सामा दयाहारको सीमापासratी- असा नाम और मालामजी सका चीर उन म मिालया पाठ- निन्दनव-नाणी पापा देगले. दक्षिण में बमोनार उडीमातीत पदारी 'दग्बना भविष्टा' या निा श्री, किन्द पन्ले गीनगे। कमला भाजन नान) र वृणित जोर सानिया है और सब रायो चिन्ता देशक और मगध बालियो मानिसमायोचित प्रयोना सपा परिणत हुया, मा परिचय का निवासी जाती है। इन सब प्रमाणाले मातम हल की आलोचना करने पर घर मच्छी तरह नमनी आता। वैदिक नमनमा । गः बलीने राम और ईरा निदेशमियार प्रयजना होगा, किनार कितना प्राचीन ' एव भामार कार टीकाकारी चमे भी मनभेद देग है ? ओर वन (३) बाहनले जिस्मानमा बोध होता ।। जाता है । भा'कारने साउन, बाप और गर्गश्यिा , जगत्मा गादि सय ग्राम भार्यनिवास उनका टोकारने वहीं पिशाच, राग और रीगोजार "बीर" (पीछे । नाम मगध), ऋग्वेदन ऐतरेय वातगमें या । हम तरना मतभेद देर र असार मचिनुनले 'तुण्ड'(२) और अथर्वरिता ' (2) देशमा उल्लेख मिला है- रहने पर भी 'व' नाम नहीं । हम भाग्यटके ऐश्व आर- ___ "Posmiy they are all old chote:amcs like पयरमे (२३) सबसे पहले बन नाम णते हैं । यथा- Vangs, Chera ke,( Sacred Torons of the rat, "श्माः जानिलो अत्याच मार स्तानीमानि क्यासि । Vol 1. p 20:41. भव्याकरत्यनन सामाश्रमी महाराने सागवारपादान्यन्या अममिना चिनिन इति ॥"(४) मी अपनी प्रीटी नामस तरह मारा की- ___ "धरमन्मने वन बनानगधा सादा रूल्य ज्याख्याना-

  • Bhattachaija's Caster and Sects of Bungal

दृश साल्न निष्प्रयोजनम् । भपि पा' वगदेशीयाः 'बगधा' ग्रन्थमं धन्यान्य सम्प्रदायका सक्षेप परिचय द्रष्टय । मगधा, 'चेन्पादा: चेरनामननादासिनः । तासिधा एवं (१) नक्सहिना ५१४ । (२) ऐतरेय ब्राहाण ११८। प्रजाः 'ययाति' कारचटकपारामतादिरशाः । दुनियनच (३) बर्बराहिता ५।२२।१४।। साहनम् । इहाशत्वापि मगधत्वेन परिगरः, कानगसौराष्टपोः (४) यहा मानाने 'बनाः धनगता यदा. धगधाः बीहिप- निग्गन्धयाभियोरेन चेरपाद रति ।" (पृ० १६३) वाया औषधयः' 'दरपादाः उर पादाः सः ऐसा अर्थ किया है। ऐतरेय गरययके उदृत अशा शेक यो समीचीन फिर भाषा टीकाकार आनन्दतीर्थने 'ययासि अर्थमं पिशाच, 'वहार जान कर ग्रहण किया गया।