पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४६०

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बगदेश ४५ कि वैदिकयुगर्म वर्शमा विहारसे घट्नाल तक भूभागों । यो, फिर भी योचमें मन, वन और पौधमें आयोप म मनाय्य या शार्येतर जातिका प्रभाव विस्तृत था।| निवेश स्थापित नहीं हुमा, यह क्या कभी सम्भव हो मनाय्य प्रभावी कारण ही आर्य यहा वास करना सकता है? महाभारतक पर्व (४५ म०)मलिसा उचित नहीं समझो थे। और तो क्या, दोधायन धर्म ] है-"पोपन, कलिङ्ग मगध और बेदी देशीय सभी सूवमें लिग्ना है कि रन कठिङ्ग पुण्ड मादि देशों में घूमने महात्मा शाश्वत पुरातनधर्म विशेषरूपसे जानते हैं और पर भो भ्रमणकारोको पुनस्ताम पा सब पृष्टोयाग करना | उसके अनुसार कार्य क्यिा करते हैं। इस महाभारत पडता था। को उत्तिसे स्पष्ट जाना जाता है, कि उससे पहले पीण्ड ___ मनुमहिता रचनाक ममय मम्मयतः परके निजन | अर्थात् उत्तर बङ्गम वैदिकधर्म और माय्यसभ्यताका वनमें दो पय प्राप्य भूपिया थाश्रम वा चुका था | विकाश हो गया था। और उसीके माप ये मब स्थाा तार्थ रूपो गण्य हो | हरियश पढनेम मालूम होता है, वियपातिके पुन गया था । मनुसहिताफे रयिता सम्भवत इसोसे पुरुषो नोचरी २२ पीढीम महाराज पलिन जमप्रहण प्यरथा पर गये हैं कि तीधयानाके सिना को आर्य किया। ये परम योगी और राजा थे। इसके पशधर मह व गादि देशर्म ना न सकेगा-तीर्थयात्राके सिवा पाच पुन मग, बङ्ग सुह्म पुण्ड योर पलिग है। ये ही वदा जाने पर द्विजातियोंका पुन संस्कार करना होगा। महाराज वरिक क्षत्रिय स तान हैं। किन्तु उनके यश ___ऐतरेय ब्राहाण, पुण्ड्गण विश्वामित्रके सन्तान हे | घर पुोंने कालक्रमसे नालणत्व राम किया था। गये हैं। फिर मनुसहिताम पण्टिगण वृपनत्य या महाभारतये आदि पर्व (१०४ अध्याय )में पहा सदस्य प्राप्तिकी क्या है।(१०४४) इसस मालूम होगा गया है, "भूलोक परशुराम क्t निक्षत्रिय होनसे अनेक कि जर विश्वामित्रके यशधर इस आ पर बस गये, क्षत्रिय पत्नियोंने वेदपारग ब्राह्मण द्वारा सन्ता उत्पान तक इस देश में द्विजातियोंका वास न था। इस कारणसे दिया था। घेदका विधान यह है कि जो पाणिग्रहण ब्राह्मणके अभासे उन सस्कार पिनुप्त हुआ । इससे पे | करता है उसके क्षेत्रमें जो सन्तान पैदा लेता है, वह पल और यहाके अनार्या के साथ मिल कर डाक | स तान उसोका कहलाता है। अतएष धमारण सोच कहलाये। दस्यु और मृघल दस्खा। कर ही क्षत्रिय पत्नियोंन ग्राह्मणसे सहवास क्यिा था। यह ठाक जाननेका कोई उपाय नदी, शिकिस समय इस तरह क्षेत्रज पुनके द्वष्टा त दिखानेके रिपे महा घरदेशमें मार्यमभ्यता प्रतिष्ठित हुई थी। रामायण | भारतके रचयिताने यह पुरातन इतिहास लिखा है- समय सम्मरत इस सूत्रपात हुआ और महामारत । "क्षत्रियरान पलिके पुत्र न था। उदीने एक दिन ये युगम माथ्यसम्यता प्रतिष्ठित हुई थी, इसका प्रमाण | गगास्नान करने जाते समय देवा, वि एक प य ऋषि भी मिलता है। रामायणमें लिया है, कि चन्द्रयशीय | गङ्गामें बहने चर आते हैं। धार्मिक राजा उनको ग गा अमूर्तरता नामक एक राजाने धर्मारण्य निस्ट प्राग, घारसे निकाल घर ले गये। उन बघ झपिका नाम योनिपपुर स्थापित किया। शतपथ ब्राह्मण थादि वैदिक दार्शतमा था। धामिक नरपतिने उनके क्षेत्र पुत्रोत्पादा प्रदौसेहो प्रमाणित हुमा है, कि बहुत प्राचीन कालमें | परनक लिपे अनुरोध किया। इसके अनुसार उनको मिथिलामें विदेमाघर द्वार मार्यसम्पता विस्तृत हुइ महिपी (रानी) गासे दीर्घतमाने पार पुन उत्पन यो । यसैमान जलपाइगोदो रङ्गपुरसे मामामको पूर्ण | रिये! रम्दी पाउ पुना नाम ग, घग, फलिग, पुण्ड सामा तक प्राचीन प्राग्योतिप देश फेला था, प्राग | और सुह्म । उहा के नाम पर एक एर देशयिस्यात है। ज्योतिपपुर ( यरामा गोहाटी) उक्त प्रागज्योतिपको इग्निशमें लिखा है -परम योगो राना बलि ऊर्ध्वरेता रानधानी थी। इससे यह रट है कि मिथिता (पत थे। इसलिये उनको पना सुदेष्णाके गर्भसे महानेजम्यो मान दरमहा भीर मामाममें मार्यमम्पता पैठा हुइ मुनिवर दायात्मास ये पाच पुत्र उत्पन्न हुए। योगारमा Vol 117