पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४६३

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बदेश भी पूर्वाकाल में एक समय सिंहपुर राज्य कह कर प्रसिद्ध में याग या आदर था। दूर दृरके लोग यादेपने हुआ। आज 'सिंहभूम' प्राचीन सिंहपुरकी रमृति जगा आया करते थे। रहा है। वैदिक समयमे सी-शिक्षाका यथेष्ट सादर था। जैनोंके अग और फल्पसूत्र के अनुसार पटजन्मफे आलया, गागा प्रभात राप रमाया हा नाक्षत आला प्रायः ८०० वर्ण पहले २३चे तोङ्कर पाश्व नाथ स्वामीने महिलायोकी उज्ज्वल दृष्टान्त है। किन्तु पुछ दिनों फर्मकाण्डले प्रतिकूलमें पुण्ड, राढ और ताम्रलिप्त वाद नियों के लिये वेद-पाठ तथा संच्यामाधम निपेत्र प्रदेशोंमे चातुर्याम धर्म प्रचार किया। उसके बाद अग, फर दिया गया। ईसाके जन्मसे नौ वर्ष पूर्ण महावीर वंग और मगधके राजभवनमें अग्निहोत्रशाला प्रतिष्ठित तथा वुडदेवने रमणियों को मान अधिकार दिया था। रहने पर भी धार्मिक और ज्ञानो लोग औपनिपदीय किन्तु यह टोनही । उस समय की फोः बामणा और अन्तानके अनुष्ठानमे तत्पर थे । शूद्रके वीच वर्णधर्मती पारनाको शिथिल, पारनेमें समर्था नही हुधा । दो एक साधुगेको यान नही हो पार्श्वनाथ स्तोमो वैदिक पञ्चाग्निसाधनादिके प्रतिकृमें | जाती है। महावीर तथा बुट दोनों होने साधारण ऋद्र स्वीय मत प्रचार करने पर भी जैनोंके सुप्राचीन ग जातिको उच्च जानमार्गमा अनधिकारी हो बतलाया था। भगवतोसूत्ररो जाना जाता हे, ति शेप तीर्थावर महावीरने राजगृह-पति बिम्बिसार (श्रेणिक ) महावार तथा चतुर्वेदादिकी अवहेलना नहीं की। उनके पूर्वपुरुष पार्श- वुन दोनों ही धर्मोपदेश अत्यन्त वादग्के साथ श्रवण उपासरू और श्रमणके शिष्य थे। वे ज्ञानकाण्डमा हो करते थे। यही कारण है कि जैन तथा बौद्ध अन्ध में समर्थन कर गये है। एक ही ममयमें महावीर तथा शाक्य जैन एवं वौड नरपतिके नामसं विख्यात है । उनके लड़के बुद्धका अभ्युदय हुआ था । दोनों ही ब्राहाणोंकी अपेक्षा अजातशत्रु जैन प्रन्धमे कुणिक नामसे विग्यात है। क्षतियोंकी श्रेष्टना प्रचार कर गये हैं। दोनों ही आत्मी- अज्ञातनतुने राजगृहसे या दार चम्पार्म अपनी राजधानी बताके सूत्र में आवद्ध थे। दोनों ही वैदिक कर्मकाण्डकी फायम की । इस समयसे कुछ समय तक बम्पानगरी दी निन्दा एवं मानकाण्डकी आवश्यकताको घोपणा कर गये | (भागलपुर के निकटवत्ती चम्पाई-नगर ) भारत-साम्राज्य हैं। उनके जन्म समयमें अगदेशमे ब्रह्मदत्त और मगधमें श्रेणिक विम्बिमारके पिता मट्टिय राज्य करते थे। ब्रह्म- की राजधानीके नामसे प्रसिद्ध हो चली थी। ममात दतने महियको युद्धमे पराजय किया था। उसका प्रति- शत्रुके राज्यकालमें गणधर सुधर्मस्वामीने जम्बूवानीक शोध लेनेके लिये विम्बिसारने संगराज्यको अपने अधि. नाथ चम्पा मार जैनधर्म प्रचार किया था। किन्तु कारमे कर लिया था। पिताके मृत्युकाल तक चे अगकी उस समय अधिवा लोग बुद्धमना हो अनुरक्त थे। कुछ राजधानो चम्पापुरी में ही अवस्थान करते रहे । इसके समयके बाद जम्बूस्खामोके शिष्य चत्सगोल सम्भूत वाद वे राजगृहसें ओ कर पिताके सिंहासन पर बैठे। शच्यम्भवने चम्पार्मे आ कर जैनधर्म प्रचार किया। उनमें . थेणिक विश्विसार जिस समय चम्पा अधिष्ठित बहुत लोग जैन धर्मम दीक्षित हुए थे। इसी समयमें थे, उस समय बुद्धदेवने संघका कर्त्तघ्याकर्तव्य अव- मगधाधिप अज्ञातशत्रुके पुत्र उदायीने गंगाके किनारे पाटलिपुत्र नगरी रापन की थी। धारण किया था। उस समयसे ही बुद्धदेवके प्रति मगध- प्राचीन जैनग्रन्थ के मतानुसार धोरमोक्षके ६० वर्ष अधिपतिकी मक्ति-श्रद्धा आकृष्ट हुई। वाद अर्थात् ईसाके जन्मसे ४६७ वर्ष पूर्व प्रथम नन्दका महावग्ग वर्णित है, कि जटिल उरुविल्य काश्यपने | अभिषेक हुआ। इसके चार वर्ण वाट प्रसिद्ध जैन गण- पक सहायनका अनुष्ठान किया था। उनकी यज्ञ-सभामें | धर जम्बूस्वामीने मोक्ष लाभ किया। प्रथम नन्दके बाद अंग तथा मगध के बहुत से लोग उपस्थित हुए थे । उक्त । और एक नन्दने राज्य किया, कल्पक पुत्र शकटाल के भ्रातृ- प्रमाणसे मालूम पड़ता है, कि उस समय भी पूर्व भारत- गण उनके मन्त्री थे । अन्तमें छठे नन्द सिंहासन पर बैठे,