पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४८८ पगला भाषा मापा पुष्ट हुई है। इसके सिवा नजट्यप्रयुक्त मगध । माग्मेनी च गोटो चलाटी नान्या चपी । प्रचलित मागधी मापा के साथ मी बङ्गमापाक यथेट । याति पारनमित्येव व्यवहांन्गु गन्नियि ॥” सम्बन्ध हुआ है। । अर्धान जारांना, गीडो, लाटी और अन्यान्य उसोको प्राचीन काटने नाना समयमै भारतवर्ष के नाना तरह माहा मापा मो व्यवहन गापा यान वानी।। स्थानोरंर नाना देशीय लोगोंरं, गांडयट्नमें थाने और जनाका प्राशन कर उन यहा पर स्थायिकपलं स जाने कारण प्राचीन इस प्रकार प्रमाण रहने भोपा कोई मदरही गोड भाषामे भारतीय अपरापर भायादा सी निदर्शन या भाषाको सरहनाने की मन बन टाने । रिन्युट ग्वाशन मौजद नहीं है। काभी भी मानीन नहीं मान सकने । आन की प्रव. __ जो कुछ को, प्रायः ढाई हजार वर्ष पहले बदलिपिका , लिन ग्य नाका बचन, डाकया बचन, माणिनाका अस्तित्व ररने पर मी बदमायात चतन्त्र नामकरण नीत, धर्गमदल्ट, यहां न हि गिलानी पदावली हो हुआ। ब्राहाण्यधर्माश्रयी गुप्ताधिकार विस्तारक ' आदि प्राचीन पुग्नशे में और 15 मदीनामा साय वहां संस्कृत शास्त्रीय प्रसाका प्रवेश होनले प्रयोग टग्या हाताने उनले यर यानी मानी तरत. संस्कृत और स्थानीय भाषामा पार्थक्य निर्णय करने के मृला नाद लगने । वह भापा दम छ प्राशन की लिये गौड मापा नामकरण हुआ होगा। जिन देगले बुद्धदेव कीला तर गरे, जोग म लोग पुस्तकादिरी जो सय प्राजन भाषा हजारो जन नार्थटगेंका शर्मव: जिसकी मापाने हैं यपि उनमें पूर्व प्रचलिा बदमापाठीमाश्य जैन और बौद्ध धर्मवीरोंकी चेटाले सैकड़ों वाहाण नहीं है, तो भी शब्दगत यात कुछ महाना देगा जाना विरोधी मात्रा मृष्टि हुई है, उस देशरी मायामो नाग है। प्रासन और यहलाका दनादृश्य दिनलिये गण पगाची वा 'पिशाचना' है. इसमें आश्चर्यजी यहा हुन-सा पुस्तकोस छग उडन मियगरे- छया। । सस्कृत वाहन जिम पुस्तम्म प्रयुक्तः यगता सच पूछिये तो किसी भी वैदिक ग्रन्थमे मन बन । अत्ता मृ०५० आता, याद उाद्य मगध पिशाच भूमि कह कर निर्दिष्ट नही है। बौद्धभक्त ; अज उ०१० आज शस्नरपति कनिष्क अधिकारकालमें उनके अधीन अद मृ०० याघ मनपराग गौडमगवका शासन करते थे। उन्हों के समय . अनेन इमिण मृ० क० पमने बौद्धशास्त्र प्रचारार्या संस्कृत और प्रचलित प्राकृत भाषाकै अय अट्ट मृ०० आट मिलने का सूत्रपात हुआ। उस समय सम्भवतः प्राच्य । अम्र बम्ब पाव जनपद की मापाने लिपित भावारूपमे गण्य हो कर आयग्सि ब्राह्मण निकट 'पैशाची' नाम धारण जिया हो। इस प्रात्मा अपि मुलग० मापनि समय शूरसेन वा मथुरामे शक-राजाओका राजधानी। अह अलि मृ० के० आलि, यामि थो , अतएव रिलेन के प्रभाव से पैशाची भाषाका गठन- टान्धकार अन्धार मृ०० आधार कार्वा माधित हुआ था, इसमे जरा मा संदेह नहीं ।' उपाध्याय उवजझाच मु० ग० ओझा गुप्तराजाओंके समय 'गाई' जब एक स्वतन्त्र भाषा पहु श ० कु. पहि, पद एइ समझी गई, तव संरकन पालद्वारिकॉन इसको रोति मो इयत् पत्ता एनेक भिन्न बतला कर प्रकाशित की। बहुतां प्राचीन नाटकम * मु० क०=मृच्छकटिक नाटक। उ० च० उत्तररामचरित । गौडनापाका प्रचलन देख कर यालद्वारिको ने घोषणा मु ० रा०=मुद्रारानस। श० कु० जान्नला। च० को०% फरदी,-- चण्डकौमिक। छन्दोम०-छन्दामसरी । आदर्श आरसि एप