४६० बङ्गलांभापा चन्ति याला गाट, गेरो, गांठरों गौच्छा, गोछा घोड़ा घोलह चट्ट, घोला चुटि, झुटो चाटु चाउल चिल छलि वा छुली चिल्ला छिनाल छोआ जडित झलसान सस्थत प्राकृत जिस पुस्तकमे पयुक्त बनना | देशी पाकृत हृदय हिम मृ० क० दिया । गेण्ड और गेण्ट अ हरिद्रा हलद्दा गोच्छा टन सब शब्दों में बगला और प्राकृत शब्द प्रायः एक- घोडो से देखे जाने हैं। पहले ही लिव आये हैं, कि तीन प्रकारले प्रायतोंमें चोट्टि "देशी" या सरकृतके साथ सम्बन्धर्जित शुद्ध देशप्रच लित मापा मी एक है। चाउल देशो प्रकृत भी विशेपमावसे प्राचीन बदलामें चल गई है। १२वीं सदामें रचित आचार्य हेमचन्द्रकी देशी छल्लो नाममाला'-से नी बहु नेरे गन्द उठा कर दिवाने हैं। ये छिनाल ) सब शब्द हेमचन्द्र के बहुत पहलेसे हो समूचे पश्चिम- छिनालो ) भारतमें प्रचलित थे। उद्धृत प्राचीन देशो शब्दोंके देखने लिवइ, छिड से सहज ही वोधा होगा, कि बङ्गलामें संस्कृत प्रभावको जडित अपेक्षा प्राकृतका प्रभाव ही अधिक है। वद्गला भाषा झडी संस्कृत-मूलक नही है, वरं प्राकृतमूलक है। झलसिम देशी प्राकृत चलित बनाना झलु किस अलट्ट पलट्ट उलोटपालट, उल्टापाल्टा उत्थल्ला उतला, उतलान झलझलिया उत्थल्ल-पत्थल्ल आथाल-पाथाल झाड ओडिदो उडिद झडह ओडने उडनी टिप्पि ओला टिक्क ओसा कच्छर फडा डम्ब, डावा कुडया कोट्ट डाली कोइला फियला डुम्ब कोलाहल कोलाहल डालो क्डंग कांडानो ढढल्ले खली खाल तगग खड खड तडफ़डिय खाश्या खाइ गढ़ो थरहरिम गंडीव गाण्डीव गडयडि गड़गड़, घड़घड इत्यादि । धन्धा झालिभ झलक झाट झरा टिप मोइल ओस दुटो डलो कडङ्ग कोट टिका लुटो डेवरा ढिल, डेला डाइल, डाल डोम डुलि ढलढल तागा धडफड़ तुलमो थरहरि (कम्प) डोर धन्धा, धाधा तुलसी गड़ दोरा