पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४८६

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वाना मापा ४६३ मास्टत तमिान्' म सप्तमीम 'त' का उत्पत्ति हुई है,। 'करिमु' झिया प्राचीन बङ्गलामें कई जगह मिलता मन सप्तमाका एक ही रूप रहता है, जैसे-कानने है। 'करिमु' की जगह अनः स्थानोंम करितु' व्यरहत पर्वत, जो, इत्यादि । ससत-ताया नद्या माराया ) इत्यादि प्रारम "लताप, नदीए माटगए" होता है। सस्रत 'कुर्मः' क्रियाका 'करिय' रूपमें परिवर्तित प्राचान हम्ततिषित प्रथम बदलामें यह टोर प्राकृत | होना सम्मन है। सस्कृत भरतु, दवातु' क्रिया प्रारतमें आधार ही है। वर्तमा काठमें चे मध परिवर्तित यथाक्रम 'हज', 'देउ' रूपमें व्यवहत तथा उनके साथ हो कर केवल नालाय, वेराय, मालाय' इत्यादि रूप हो । बगलामे मि एक 'क' का योग पर 'उ', 'देउ' गये हैं। मारमे प्रचलित हुई है । यह क' कहासे माया, सोचनेका किया। विषय है। बदलाकी अनेक क्रियामे 'क' का व्यवहार प्रारत भातर परइ 'वलई' 'पश्चइ' इत्यादि कुछ देखा जाता है। भू, दा, ए, इत्यादि क्रियाये जव कर्म प्रियाने बदाम डोप पर चले नाचे प्रत्यादि आकार और भाववाच्यमे प्रयुक्त होती हैं तब उन सब क्रियाओंक धारण किया है। प्रारा 'मुनि' परिज' 'लमिअ' कन त्यवोधक लिए उसमे 'क' शब्दके योगसे उल्लिखित इत्यादि स्थानोंमें उनिया' 'ग्यिा' 'इश हुमा है। 'करिया' इत्यादि पद घने है। मन मस्ति' मियाोप्रान अधि' रूप धारण किया सस्कृत अनुशामें हि प्रास्तमें ६' रूपमें परियत्तित है तथा इस अधि' के साथ भू धातुपी असमापिश) हुआ है। जैसे- 'आम व पुण्णा उदं रहम ।' (मृन्दक० २ अङ्क) 'या' योग पर 'दया ऐमा रूप पना है। देविने के ___उसी प्रकार पङ्गलामें भी उसा अर्थ 'द' का व्यर कारन इत्यादि मारमा प्रकार उत्पन्न आ यामी दार पूना बगलामे 'करिद', जाइ' इत्यादि रूपम प्रचलित पूर्वयाम महा दानव पृथभाषम उच्चारित होत था।पिङ्गलक छन्द सूतम पदों कही हु दण्डा जाता है। ६ नस-नादा माछे पास आहे मानिस पहर वह आये है, कि प्रास्तमें चोंय और अन्तस्य इन सस्टा 'मामात्' कक्षा पन्ना भाटिल' स्पर्म अयान्य | दोजगारकी जगह पर 'ज'भापम की जगह पर 'स' पूनिता पदक साथ युक्त दो दर (डोमे राजा तथा 'ण' की जगह जिस प्रकार ण का व्यवहार देगा मामान्, सुन्दर आगीन् अर्थात् राना थ, सुन्दर थे जाता है, उमो प्रकार याला भाषार्म भा पहले उन सय १ यादि पद) वना है। वर्णो की नगद 'ज' 'म' तथा बेघर का व्याहार दका परिपत्तन प्रणा अति विचित्र है। प्रायः देना जाता है। हस्तलिखित प्राचीन बङ्गा प्राय देखने से हो इसके दृष्टा तका अभाव न रहेगा। अनुकरणप्रियता हो उन सब परिपत्तनका कारण है। चरित चट' 'वेर' इत्यादि पियाका 'कार दूमरी ___ अनेक प्राचीन बङ्गला प्रपमें भी प्राकृनकी तरह 'द' जाहमा योगहना है। ग्मार और एकारका मादृत्य की जगह इ' का व्यवहार होता है। नमाम देना नाता है। सस्थत 'घामः 'खेलाम' इत्यादि क्रियामा निगमपेरिठाम रूपमें परि प्राचीर वगग भाषाक छन्दोनियमर्म कोइ छानबीन र्शित हुई है । प्राचान पदम अनेक नगह ठीक प्रारत थी। पयार धूमा नचाहा आदि कुछ छन्द पहले पत्र "१ अनुपानी ति' 'जानन्ति' 'सि' खामि लित थे। ये सब छन्द गाना तरह सुरदे पर पढनको राति थी। सस्त 'पद व्दसे 'प' तथा उसमे पगार' इत्यादि नियायें व्यस्त हुई हैं। ललितपितरम बजगह 'क्रामि' के अपम्र में आया है। जैम मल्टन पटपदी हिन्दी प्रारनम 'उप' हुआ है। 'पद' गानेका हो नियम था। 'क्रोम मिरता है तथा यह रिया उम प्रायमें मभी पयार पहले नाना रागोंम गाया माना था। प्राचीन नगर दरियामि' भाम व्याहत हुई है। आज भी, कपियोंने भो 'प्यार' को गान नामम मणिताम उल्लेख पूछाबड्डम कदा क. म' किया प्ररित है। रिया है। __Nol १५ 124