पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४८९

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बङ्गला साहित्य कीर्ति, शिवतुल्य व्यक्ति कह कर सब गीतरूपमें गाई। रपगमले प्रविशति वृहत् है, उनकी नापा अनि सुललित जाती थी। है, परन्तु बीच बीचा प्रादेशिक शब्दों का प्रयोग किया प्रायः १०५३ ई०से ले कर १०६८ ई० पर्यान्त राजा महो गया है। पाल विद्यमान थे एवं उस समय उनके संसार-वैराग्यो रूपममके बाद ग्लागम नया प्रभुगका नामोललेख साथ लोगोंने सर्वत्र ही उनके फोर्तिकलापका गीत फर सकते हैं। दोनों की रचनायें अति सरल नया गाना आरम्भ किया। महीपालकी वह प्राचीन प्रशस्ति ! सुललित है एव दोनों ही प्रत्यति पदत। हम लोगोंके दृष्टिगोचर न होने पर भी गोपीपाल या इसके वाट माणिकराम नए । उच्चश्रेणा वाजणों के गोपीचन्द्रका गीत ठाभी भी नितान्त दुष्प्राप्य नहीं है। मध्य माणिकराम गालि दाने नम्भवतः प्रथम धर्म- अभो रङ्गपुर तथा दिनाजपुरमें योगी जाति माणिकचाँद मंगल रचना की थी। माणिक गागुटिका धर्ममंगल तथा गोपीचदिका गीत गाने हैं। १५.७ ई० मे रचा गया। धर्मकी पूजाके प्रचार के लिये पहले और पीछे जो सब माणिक नांगुलि समर या उसके उन दिन बाद बदला प्रन्थ रचे गये है, वे ही साधारणतः 'धर्ममङ्गल' ही सीताराम दाम "अनायमगर" को रनना हुई। नामसे प्रसिद्ध हैं। रूपगम, सेलाराम, माणिकगम प्रभृतिने जिम नरद धर्मके ___ अपने शून्यपुराणमें रमाई पण्डित धर्मठाकुरको पूजा- स्वप्नादेशसे अपने अपने "धर्ममंगल" गान को ना को थी, पद्धति प्रकाश कर गये हैं, इसलिए वह अन्य धर्म-ठाक उसी तरह सोताराम दालनी न्यानमे गजलक्ष्मी पुराणके नामसे परिचित है। आदेशसे जामकुड़िके उनमें धर्मका दर्शन प्राप्त करन रमाई पण्डितके भाव नथा भापामें अहिन्दूएनकी अपना अभीष्ट काव्य लिखने बैठे। बद्धमान जिनान्तर्गत गन्ध पाई जाती है। उन्होंने धर्गठाकुरके अलावे किसीको । इन्दासके दक्षिण गढीय कायस्य गोर बंशी सीताराम. भी नमस्कार नहीं किया। शून्यपुराणमें उन्होंने शून्य- दालका जन्म हुआ था। वादकी ही घोषणा की है। इसके बाद हम लोग रामण छोटे नाई कवि राम- वर्मपुराण तथा धर्ममङ्गन।। नारायणका नामोल्लेख पारेंगे। इनके द्वारा रचित धर्म धर्ममङ्गलके मतानुसार धर्मपूजा प्रचार करनेके लिये मगल प्रन्थ नी अतिगृहन् । रामनारायण एक कट्टर ही लाउलेनका अभ्युदय हुआ था। उनके असाधारण शतक थे। उनके पूर्ववत्तों कवियों की तरह धौठाकुरको चीरत्व तथा विमल चरित्र प्रसङ्ग में ही आदिगोड़काव्य | ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर के जनक कह कर घोपणा फरने अथवा धर्ममङ्गलकी सृष्टि हुई। एक समय गौडबंग पर भी उन्होंने अपने प्रन्यों के पन्ने पन्ने में आदिशक्तिको उनकी अच्छी धाक जम गई थी। इसी कारण वंगीय हो पधानता स्थापना करने की चेष्टा की है। पत्रिकाओं में लाउसेनके नामने अधीश्वरका स्थान पाया इसके बाद द्विज रामचन्द्र तथा श्याम पण्डितके हे। द्विज मयूरभट्ट हीने सबसे पहिले लाउसेनके माहा धर्ममंगलोंका उल्लेख कर सकते हैं। तम्यकी घोषणा करनेके लिये अपने धर्मपुराणों में गौड़ ___अनन्तर हम लोग इक्षिण रोढीय कैवर्त रामदास काव्यको सूचना की थी। आदकका एक 'अनादिसंग' पाते हैं। यह ग्रन्थ पहले ___ मयूरभट्टके बाद हम लोग रूपरामको पाते हैं । के सभी धर्ममंगलोंसे बड़ा है। खेलोराम, माणिकराम प्रभृति धर्ममगल प्रणेताओंने रूप ____रामदाराओ वाद चक्रवत्ती घारामने १७१: ई०मे श्री. रामको “आदि रूपराम" कह कर उल्लेख किया है। धर्ममंगल या गांडकाव्य प्रकाश किया। घनरामके पिता- मयूरभट्टके धर्मपुराणकी रचना करने पर भी कायके का नाम गोरोफान्त, माताका नाम सोता, एवं मातामह- हिसावसे रूपरामके ग्रन्थ हो प्रधान कहे जा सकते हैं एवं का नाम गङ्गाहरि था। कौकुसारोके राजकुल में गड्डा- इस हिसावसे रूपराम ही मादिगोड़कायके रचयिता हुए। हरिका जन्म हुआ था। घनराम रामपुरको पाठशाला