पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४९१

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बङ्गला साहित्य चल मनोहर और सुललित है। कवि पक कट्टर शेव । आधिपत्य जमाया। शोतला, विषदरी, मालवाडी, थे, यह उनी बतासे स्पष्ट मालूम होता है। पाठा बादि देवाको पूजा की जनसाधारण मात्र प्रा. ____रामाणक बाट रामराय भार श्यामराय न म दो हित हुई। कावियोने 'मृगव्याध सबाद' नाम अन्यम शिवमाहात्म्य ' शातलाको पूजा बहालमें तमाम प्रचित गोड- प्रचार लिया। बदमे बसन्तगंग प्रादुभाव के मार जानला पूना भो द्विज रतिदेव चट्टग्रामके अन्तर्गत चक्रशालानियाली । सर्वत्र प्रचलिन दुई। उनके माय नाथ शीतलाका थे। उनके पिताका नाम गोपीना और माताका नाम गान भी रचा गया । नेक कवि 'शोत टा-मद्दल की वशुमतो था। १५९६ शक ( १६७४ ई० ) में उन्होंने मृग रचना कर गये है,--य, नाना स्थानों में च दी धूमधाम लुब्ध नामक ग्रन्थ लिया। में शीतलापूजाके समय वे सर महल पाये जाते है। वे कविचन्द्र रामकृष्ण पश्चिम बट्न तथा तन् परदनों सब गान डाम पण्डितो निजरख दाने फारण उन्हें उता कविगण पूर्ववदवासी थे। इस कारण उन लोगों के पानका उपाय नही। उनमें से पांच विकेट प्रत्यमे अपना अपना प्रादेशिक सापाका प्रभाव दिपाई। पांच शीतलामालका पता चला है। उन पाचोंके देना है। नाम हैं, कवियलम देव होनन्दन, नित्यानन्द, चायनों. द्विज मनीरव और द्विज हरिहरसुन शङ्कर कविने । रुणराम, रामप्रसाद सार शङ्कराचार्या। इन यावियामें- 'वैद्यना यमग 'नाम' एक गिरमाहात्म्य की रचना का।। से देवकीनन्दनको इन तो सभी कबियास प्राचीन इन दोनों ग्रन्याम दो सो वर्षका पुम्त पाई गई हैं। इस समझते है। हमें रामेश्वरका शिवान या गिउसकीर्तन हो विशेष कवि कृष्णराम, रामप्रसाद तथा शहराचार्याने भी प्रचलित है। किन्तु वह अन्य बहुत प्राचीन नही है। शीतलामगाल की रचना की है। उक्त सभा कविगोम शिवमाहात्म्यसूचक खतन्त अन्य अधिक संख्यामें | कवि कृष्णरामका रचना पाजल, मनोहर और कवित्व- नहीं मिलने पर भी परवती जाक्तप्रभावके समय जिन पूर्ण है। कृष्णरामका 'मदनदासका पाला' एकदम सव मङ्गट साहित्यकी सृष्टि हुई है उत्तमें विशेष भावसे नया है। जो हा, शीनलामहलके पाले हिन्द वियों के शैबोंके असाधारण प्रभादका परिचय पाया गया है। हाथ पड कर वनुत रूपान्तरित हो गये हैं, फिर मो उन बड्डीय प्रत्येक हिन्दू गृहराको नित्य शिवपूजा करनेकी सव ग्रन्धोंने सुदूर गतीतमोक्षाणस्मृति अहित है। यह जो विधि प्रचलित है वह उसी शैव-प्रभावका ज्वलन्त स्पष्ट चित्र बांद्ध शाक-समाजका आन्तम निदर्शन है। निदर्शन है। महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री महाशय नेपाल शाक्त-प्रभाव। जा कर देख आये हैं, कि वहा जहा जहां पर तान्त्रिक प्रभाव विस्तारके साथ गौडवन में शाक्त तन्त्रोक्त लोकेश्वरादिका देवालय है, वहां हारीतीदेवी प्रभावका सूत्रपात हुआ। सभी वौद्ध पालराजगण वौद्ध- अवस्थान करतो है। वौद्ध हारीतो भी यहाको शीतला- तान्त्रिक तथा आर्यतारा, बनवाराही, बज्रभैरवी आदि | की तरह वसन्त-व्रण घ्याधिनाशिनो है । वद. शक्तिके उपासक थे। उनके समय बौद्धशाक्तकी संख्या ही देशमे जहां जहा धर्म-म न्दर है, वही वहीं पर मानो अधिक हो गई थी। पीछे शैर्वोके पुनर युदय कालमे बहु-शीतलाका अवस्थान स्वत.सिद्ध है। साधारणतः धर्म- तान्तिक शैबमम्प्रदायभुक्त हुए थे। शैवगण पहले जो पण्डित वा डोमपण्डित शोतलाकी पूजा किया करते हैं। जनसाधारणकं दीन शिव-माहात्म्य प्रचार कर उन्हें आज भी वे लोग वसन्तरोग-चिरित्सा सिद्धहस्त अपने दल में मिलाते थे, पीछे उसका बिलकुल उल्टा देवा समझे जाते हैं । धर्ममङ्गल-प्रसङ्ग में धमपण्डितोंके गया। भक्तकी नित्य साहाय्यकारी मतप्राण भगवतीके प्रभावका परिचय दिया गया है। उनका प्रभाव नष्ट होने प्रभावने ही कुछ समय बाद जनसाधारणके ऊपर | पर उन लोगोंने बौद्ध-तान्त्रिक देवी हारोतोको शीतला-