पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४९३

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बगला साहित्य उपरोक्त कवियों के मध्य क्षेमानन्द दासका मनसा । होता है, कि पालराजाओंके समय अर्थात् देशी साहित्यमें मङ्गल भावमे, मापामें और वर्णनमें अपेक्षाकृत मनोहर गस्त गापाका प्रभाव घसने के पहले शुभचण्डीको मालूम होता है। काथाने स्थान पाया था। वही शभचण्डी प्रासन आकार ___ पूर्व वडके आधुनिक मनमासक्त कवियों में श्रीराम ! धारण फार 'सुवचनी' म्गने दिन्ट समाज में प्रसिद्ध हुई जोवन विद्याभूषण प्रधान है। विद्याभूपणी मनसामङ्गल है। सभी मद्दल की गुभचएडीफी पाचालो गाई १६२५ शक (१७०३ ई०)-मे रचा गया । मनमा पाञ्चाली- जाती थी। आज भी चंग रगणिया शुभ फौमे सुवचनी कारोंगे एक राजकविका परिचय पाने हैं। चेनुसग की पूजा करती और भुवचनीकी कथा गुनती हैं। राजा राजसिंह थे। प्रायः १५० वर्ष पहले उन्होंने मुवचनीको कथा बंगाली गृहिणीमानके मध्य मनसामङ्गलकी रचना की। प्रचलित रहने पर भी चगभापामी अति प्राचीन मुवचन-- मनसा माहात्म्य उपलक्षमें चांद सौदागर मोर घेहुला के पाचाली-गान पुरुषों के अयत्नाने अधिकाम विलुम हो वा विपुलामा चरित वर्णन करना ही मनसामङ्गल गये हैं। हिजबर, पष्ठीवर आदि रचित "सुवचनीकी वा पद्मपुराणका लक्ष्य है। बनके ग्राम्य वियोन चाद पांचाली" पाई गई है। सौदागरका मानसिक तेजबिता और इटदेयके प्रति मंगलचगडीयो गानों की रचना करके वानसे कवियों ऐकान्ति-निष्ठाका परिचय दिया है वह किसीसे भी ने ख्याति प्राप्त की है। जिस तरह हिन्द बोके आदि छिपा नही है। ग्राम्य कविके हाथसे सती बेहुलाकी संस्कान शास्त्रसूत्रोंमें लिये ६, ठीक उसी तरह चंगला पतिभक्तिका जैसा गदर्श चित्रित हुआ है, जगत् के किसी भाषामै भो देव-देवियोंकि माहात्म्य सूचक ग्रन्थ अति सांक्षेप मी स्थानमें किसी कविके हाथसे वैसा सती चरित्र से सूतोंमे ही लिये गये। वे सब अन्य लोगों के आग्रह- अङ्कित नही देखा जाता। से परबत्ती कवियोंको द्वारा प्रकाशित हुए है। प्रायः सभी मनसामंगल में पूर्वतन धर्म और शैव प्रभाव मंगलचण्डीको जितनी पांचालियां हम लोगोंके दस्त की छाया देसी जाती है। मनसामगलके अधिकांश लगी हैं, उनमे हिज जनार्दन के बाद माणिक दत्तके अन्य प्राचीन कवि ही महाशन्य धर्मनिरञ्जन और योगेश्वर शिव ही उपस्थित मसी प्रन्योंको अपेक्षा अधिक प्राचीन इ.को पहले ही वन्दना करनेको वाध्य हुए हैं। यहां तक जान पड़ते हैं। उनकी पांचालीसे जाना जाता है, कि कि मनसाका माहात्म्य प्रचार करनेके पहले बहनने प्राचीन गौडबंगके मध्य लक्ष्मी सरस्वतीके प्रिय वरपुत्रोंके वास अवि सबसे पहले जियलीलाका ही गाग कर गये हैं। स्थान प्राचीन गीड़ नगरीके निकटवत्ता किसी स्थानमें आज भी ज्येष्ट मामकी शुक्ला दशमीले दिन बड़वासो माणिकदत्त या घास था। उन्होंने प्राचीन गौड अञ्चल- गृहस्थमात्र ही सनसा-पूजा करते हैं। को निकटवर्तिनी महानन्दा, कालिन्दी, पुनर्भवा तथा मालचयडीका गान वा चण्डीमङ्गल। टागन नदी, मोडनाम, छात्याभात्याके दिल तथा गौडे. मङ्गल चण्डीका गोन बहुत पहलेले बंगालमें प्रचलित श्वरी उल्लेख किया है। उन्होंने भगवतीके स्तवक है। महाप्रभु चैतन्यदेवके आविर्भावक पहले हीसे समय उनको द्वाग्वासिनो कह कर पुकारा है। प्राचीन मंगठचएडीमा गीत गाया जाता था। इस चरटीश गौडके निकट चण्डीपुर प्राममें रणचण्डी अथवा द्वार गीत दोधाराने गाते थे-एक धागका नाम माधारणत: वासिनी देवीका एक विशाल मन्दिर था, इस समय शुभचण्डी और दूसरी धाराका नाम मंगलवएडो है। इन उमका भग्नस्तूप वहां पड़ा है। रणचण्डिका प्राचीन दोनों धाराओंके मध्य शुमचण्डीकी पांचाली और व्रत गोड राजधानीको रक्षयिणीरूपम द्वार-रक्षा तथा मंगल कथा हा अपेक्षाकृत प्राचीन है। पल्लीग्रामवासी हिन्द विधान करतो थी, इसी कारण वे 'हारवासिनी' तथा गृहरय शभचण्डोका गान बड़ी भक्तिसे सुनते थे। वही मंगलचण्डी इन दोनों ही नामो से विस्थान थी। गान पीछे व्रत-कथाम परिणत हुआ। हमे विश्वास गौडके पूर्वतन हिन्दू तथा बौद्धराजाये' रणचण्डीकी