पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४९४

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बङ्गला साहित्य पूना परत थे। गौडनगरके ध्वससाधनके साथ माथ, मादित्त तथा मदनदत्त के बाद मुतारामसेनकी रणनाडा मन्दिर भी परित्यन हुमा । रणउण्डा चडी मधया 'सारदामगल'का उल्लेन कर सकते हैं। का विशाल मन्दिर निस समय दर्शकोंके मन में विस्मय | यह प्रथ (१४६६ शर) १५४७ ३०मे रग गया। उत्पादन करता था, जिस समय सैकडों यात्री वा जा इसके बाद देवीदास मेन, शिवनारायणदेन क्षिति पर उसी पूना करते थे, उसी समय अर्धात् गौडागर चट्ट दाम प्रभृति रचित कर एक छोटा छोटा 'मगलचडी' को समृद्धिका अवस्थामें माणिकदचने मगलचएडाक | पाइ गई हैं। इनमें कितने ही प्रथ'नित्य मगलचडीको गानों की रचना की थी। हिरोके गान रचयिता हरि पाचाली' नामसे वित हुए हैं। इन ममी छोटे छोटे दत्त निस तरह गाने थे उमी तरह माणिदत्त भी काने , प्रयोग एक समय मगलचडीक भक्तगण नित्य दिन तथा ल गई दोनों ही थे। पहले हा लिख चुके है। पाठ अपना श्रवण करते थे। कि पौडरानामोंके माधिपत्य दालम उनके उत्लाहमे पहले ही लिख चुक है कि सूवन थरूप मगरचढीको ही रमाइ पण्टितने बगमापार्म शू यादमा शून्य । आदि पाचालिया घारे धीरे वद्धि तक्लेघर हो कर पुराण प्रा किया थ । गौडाधिप बौद्ध भूगलोक | 'जागरण'के नाममे विरयात । ये जागरण सात दिन माधिपत्य विलुप्त होने पर भा शू पयादियोंने जनसाधा तया माउ राति गाये जाते है इसारिये इनका 'अष्टमगला' रण मनम छि मूल होनेका भामर नहीं पाया। नाम हुमा है। जागरण, मुक्तारामा नाम पाले ही इसीलिपे छम लोग माणिदत्तकी 'मगलचएडा म उसी पाया जाता है। घदमूल शूपमाद तथा शूयमूर्तिधर्मस आदिसृष्टिका। उक्त परियोंके मध्य बलराम कविष्णकी मगल प्रसग पात हैं। चड़ी अति प्राचीन है। मेदापुर तथा वायुद्धाम वलराम माणिदत्तकी मगल एडा के अनुमार पहले की बडीके गान प्रचारित थे। करिग नगरम, पाडे गुमरातमें एक उज्जेन नारम मग कोइ फोइ कहते हैं, कि घर राम ककिकरण हो चण्डोकी पूना प्रशार हुआ। माधराय करिषण मुकुन्दरामक शिक्षागुरु थे। रितु 'गानांके गुरु मुकुन्दराम प्रभृतिका कितनी हो रचनाये पौराणिक | उल्लेबस मालूम पडता है, कि उनका गान मुफु दराम मतानुमारिणी हैं कि तु माणिकदत्तको 'म गठचएडी फ क आदर्श हुए थे। बलराम, मुकुन्दरामके पूषवत्ती होने साथ हिन्दपुराण मन नहीं देखा जाता। द्विज पर भी किस समय पैदा हुए थे, इसका ठीक पता नहा जनादनक प्रयोंकी तरह माणिदत्तके प्रधर्म भा उम| चलता। तरह कविय लालित्य अथवा वणनामाधुर्य नहीं है, बलरामके वाद माधराचार्यका नाम मिलता है। यह मानों पद्यको गधयुक्त गद्य-रचना है। २१० वर्षक प्राचान रणरामके प्रथसे पता चलता है ____दिन जना नये ममान हो दिन रघुनायकी मगर | कि इसक पहले माधवाचायफे गाने दक्षिणराढम विशेष चोदाकी पाचाग पाई गई है। इस प्रयको रचना प्रचालित थे। प्रणाली द्विन जमाकी रचनापी तरह ही है। इस __ पविकरण मुकुंदरामने १५१५ में अर्थात् माधरा मधमे भी इस तरन्क कवित्व सगरा माधुर्य नही है,~! चायक जगरण' रचिन होके १४ वर्ष बाद अपनी कारयेतु, धनपति सौदागर तथा धामन्त मौदागरफ | अपूर्व पति कार्ति अमय मगलमे देयोकी भीनीशा' उपारयान माधी मापाम अति रक्षेपम विगृत हुए हैं। । समात की। इस तरह दोनोंका ए हो बादश होना माणिवत्ता समान होमन्नदत्त रचित एकमगल कोई आश्चय नदीं। सी पाइ गइ है, यह प्रमाणिदत्तस परवती मा । माधराचार्यका रचनामें माल प्रामति चित्र परि नान पहता है। रविन बीच वीचम कविश्यका परिचय व्यक्त है। उन्होंने छोटा घग्ना तथा छोटा विषय रे घर दिया है। हो जिस तरह प्राम्यरित्र अङ्कन किया है, यह अति Vol LA 126