पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/४९५

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२०२ बङ्गला माहित्य स्वा-नाविर एवं सुललित है। यदि विद्रण सुन्दराम जयनारायण के समय शिवत्रण नामक एक घ्रात्मणने असाधारण प्रतिमा ले कर जन्म ग्रहण नती करते. तो हम. चए के गानोंती रचना की थी। य पिमफा वर्णनीय लोग माधवाचार्याशे हो चण्टोविन श्रेष्ठ साम्ग्न प्रदान निपय तस्य नथा मार्कण्डेयपुराणमे लिये गये है तशपि परने अग्रसर होते । दोनों पवियों की रननायें अनेक इस काल तुम प्रसाद पाकर हमने इन्ने माल चण्डोके स्थानों में मिलती जुलती हैं व उनके पाठ करनेस गानोगेही स्थान दिया है। मालूम पडता है मानो माधवाचार्यानी बातों को ही मुकुन्द- शविण के पूर्व इतिहासमै अत्यन्त प्राचीनकाल रामने उज्ज्वल मापासे एवं हितोय रित्वनैपुण्यों की एक स्मृति पाई जानी है। उसमे मान्टम होता है कि परिवदित र दिया है। जतिन राम पहले जगली भानभ्य जातियोंके मध्य करिडणले प्रभावके समय मधिसानो गान दक्षिण लालीपना प्रचलित थी। जिनानको गढमें उस तरह आदत न हो सके। कविके वगधगे ने मगलनाण्डोके लासी प्रथम पुजा रिमार पूर्ण व गालमें जा कर बोस किया। उन्होंके साथ उपलक्षमे विन्ध्याचलका उमर पाया जाता है। बाक साथ फयिके जागरण मी पूर्ण वंगालमे लाये गये। पनि नौडव यमाचा पाट करगे हम लोग जान पूर्व- गाल तथा चनाममे आज भी माधवाचार्गक म ते न किया सवी प्रथम भतीजत गो- जागरण लोग अत्यन्त आदर के साथ नुना करने है। धर्मदेवने जिस समय दिग्विजय के उपलक्ष में बिन्ध्याबाट पबिट्टण मुकुन्दरामा परिचय पहले ही दे चुके | जगलमे को हर यात्रा की को, उस समय उन्होंने वहामी जवर जाति नरशोणित लोलुपा महाकालीशी ____फधि पडणको चण्डीमडल अधया समपामङ्गल पृजा करते देगा धा। उन सवगेंके आचरण घ्याध के बङ्गाली प्रास्यकवियों को अद्वितीय होत्ति है। क्या म्वभाव महा थे। अन्तावर जाति के मध्य किमी पिसीने वर्णनामें, क्या सामाजिक चित्र अट्टनमे. च्या देशी तो कलिगरायके गई अगोंको जोन कर गजपदनी तत्कालीन रीति नीति प्रदर्शन भरने आदि क्मिी गी प्राप्त कर दिया था। प्राचीन शिवालिसिमसका पता विषयमे, आज तक वडालके कोई भी विणका चला। सन्नयतः वही मनात कहानी फालतुको मुकाविला न कर सके है। विक्टूणने अति सामान्य लक्ष करके नगलनागडी माहात्म्म प्रचार करने के विषयों के वर्णनमें भी जिम तरह अन्तष्टि तथा प्रतिभाका लिये वर्णन का गई है। असम्म जातियोंगे हा प्रथमतः परिचय दिया है, उस तरह और किसी प्रन्थों में नहीं पाया जाना । मंगलच एडोकी पूजा होती थी, ऐसा समझ पर हो चट्टग्रामके कायस्य कवि भवानीगडर मो प्रायः सम्भवतः सौदागर धनपनिदत्तने उन्हें 'डाकिनांदेयो' ढाई सौ का पहले चण्डीका एक जागरण लिख गये हैं। पह कर अश्रद्धा दिपलाई भी। अन्ला गन्धवणिम्-परि इस जागरणमें नी कायम् कविने असाधारण पचिन्व वाने हो अजयनदीके किनारे म गलबण्डोको पूना तथा प्रतिभाका परिचय दिया है। उनका चण्डीकाव्य प्रचलिन दुई। यह गहन दिना की बात है। कारण यह पविणके वाथ्य की तुलनामे हीन होने पर भी चट्ट कि हम लोग बर्गम गल में भी यजयनदीक तारबत्ती जाममा गौरब प्रामक माना जाता है। जयनारायण सेन ढेकुराधिपति च्याविप नया हरिपाटी पन्या द्वारा रचित पक और चएडोकाथ्य उल्लेखनीय है। ये 'कानडा' के प्रलगमै काण्डी-पूजाका आभास पाते हैं। जयनारायण वैद्यराज राजवल्लभी जाति थे। माधवा शुभांडो अथवा मगालचंडोका पूना जिन समय उच्च चार्य कविडूण भवानीगडर प्रभृनिक ग्रन्थोमें जिम श्रेणियों में होने लगा, उस समर देवाके माथ पौराणिक तरह उच्चभाव तथा भक्तिरसका परिचय पाश जाता है. आधाशक्तिका असेनस्थापन करने का चेष्टा की गई। जयनारयणका चण्डाम उनके विपरीत है। ये वैद्यकवि इसी कारण परवत्ती गोडमगल अन्यमें पौराणिक वा आदिरम्मके परमभक्त थे। आगमोक्त देवाचरित्र मुरयभावमें एवं कालस्तुका