पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष विंशति भाग.djvu/५१३

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५२० बगना साहित्य २०५। पहले यह मसलमानविवाहोत्सवमे गाया। चन्द्र, अयोध्यायम गय तथा गदराचार्यकन सत्यनाग- यणी कशा सर्वप्राचीन है। यह प्रथा प्रायः तीन सौ वर्ष जाता था। सत्यनाराययी कथा। पहले रची गई था ऐसा अनुमान किया जाता है। ऊपर कह गये प्रथाको छोट फर जयनारायणगका इधर मुसलमान लोग जिम प्रकार हिन्दू-ट्रेय देवीके सत्यनारायणन वा हरिलीला नशा शिवरामन सत्य- प्रति श्रद्धा दिखा गये है, उधर हिन्दू लोग भी उसी प्रकार | मुमलमान पीर आदिके नक्त और पूजक हो गये थे। आज पोर पाचाली नामक इस विषयके दो गय पाये जाते है। मी अनेक अशिक्षित हिन्दूसम्प्रदायके मध्य मुहर्रम-पर्वम जयनारायण के दायां पड़ कर यह सत्यनारायण की वन- कथा एक सुन्दर सुहत् काव्यम परिणत छा गई है। 'ताजिया' मनाने देखा जाता है । शिक्षित सम्प्रदायमै | मकं निया द्विन दानरामरून एक नारायणदेवको. भी उस सरकारका अभाव नहीं है। बहुतेरे अभीष्टसिद्धि- पानाली है। चट्टगामसे यहुन-सी 'मत्यपोरको पाचाली' के लिये पोरकी सिन्नी' मानते हैं और वहां मिट्टीका पाई गई है। उनमेंसे १९४० सालमे लिगित फकीर- घोडा बना कर मानसिक दान करते है। चांद की तथा १९८२ मघा में नकल की गई हिज पण्डितही पोरके उद्देशसे यह सिनिदानप्रथा बङ्गालमें विशेष पाञ्चालीपुस्तक उल्लेखनीय है । हिज गमानन्दको भणिता मापसे प्रचलित है। बौद्धप्रधान बङ्गलामे अधिक दिन युक्त एक और भी 'सत्यपारकी पाञ्चाला' है। फकीरराम हिन्दूमधानता स्थापित भी न होने पाई थी, कि मुमलमान दासने एक सत्यनारायण कथाकी रचना की। बलालके प्रभावन धीरे धीरे बङ्गालमें अपनी प्रतिष्टा और प्रति- सुप्रसिद्ध कवि भारदचन्द्र राय गुणाकरको बनाई हुई पत्ति सुदृढ़ करनेकी कोशिश की। बहुत दिन एक जगह एक सत्यनारायणकथा प्रचलिन। द्विज राम वा राम- रहनेसे हिन्दू और मुसलमान के बीच धर्मसम्बन्धमें उदार- श्वरका जो सत्यनारायण गूथ इस देशमे प्रचलित है वद भाव उपस्थित हुआ तथा उसीके फलसे धीरे धीरे गमेश्वरी सत्यनारायण कहलाता है । द्विज विश्वेश्वर, वजालमें मिधदेवता सत्यदेवता सत्यपीरका उद्भावन | विरचित एक सत्यनारायण वा गाविन्द्रविजय मिलता हुआ-उनको पूजा और सिन्निदान विधिमें हेरफेर हुआ। है। वह प्रध सन् ११५१ मालकी हरतलिपि है। क्रमशः वह पीर हिन्दुभावमें रूपान्तरित हो कर सत्यपीर १०६२ सालमै लिपिकृत शङ्कराचार्यकी एक 'सत्य- ना सत्यनारायण नामसे पूजित होने लगे। इन सत्य. पीर कथा' पाई गई है। शङ्कराचा वनवासी थे सही नारायणकी पूजा कथा बहुत कुछ पुराणप्रसिद्ध चण्डी- पर आज तक उनके कुल न य पङ्गदेशमे नहीं मिले है। गान और शीतला-गान-सी है। साधारणतः नथ छोटे | विन्तु आश्चर्यका विषय है, कि उड़ोमाके मयूरभजराजमें आकारके होने पर भी शङ्कराचार्य, कवि जयनारायण शालतरुपरिवेष्टित आराण्यपल्लोके मध्य बहुतोंने शङ्करा. और उनकी भतीजी आनन्दमयी-रचित तीनों प्रथ बहुत चार्यके कुल १६ पाले सुने है। बडे है। गङ्कराचार्यको पाचालो १६ पालोंमें ही प्रच. ____ शङ्कराचार्य सत्यपीरको जो जन्मकथा कीर्तन कर लित है। गये हैं, कविरुण, कविवल्लभ आदि द्वारा उत्कल में प्रव- ___ पीरकी पूजाश प्रतार करनेके लिये ब्राह्मणोंने एक | लिन महनारायणकथामें वही सब वर्णन पाया जाता ओर जिस प्रकार अनेक सत्यनारायण-प्रथोंका प्रचार है, केवल थोडा सा प्रभेद है। इससे मालूम होता है, किया था उसी प्रकार मुसलमान कविगण भी "लालमोन किन्मपालाके मध्य बहुत कुछ ऐतिहामिक घटना है। के केच्छा" आदि विभिन्न नामले प्रथ सत्यनारायणका __ सुलतान हुसेन शाह 'अलाउद्दान हुमेन शाह' नामसे प्रभाव प्रचार करने के उद्देशसे लिपिबद्ध कर गये है। आज तक हम लोगोंने सत्यनारायणके माहात्म्यज्ञापक जितने मुसलमान इतिहासमे प्रसिद्ध हैं। शङ्कराचार्य और फवि. ग्रंथोंका परिचय पाये हैं, उनमें द्विजराम वा रामेश्वर, कर्णकी सत्यनारायणस्थामें जिन 'माला' वादशाहका उल्लेख है, उन्हें हम लोग अलाउद्दीन हुसेन शाह फकीररामदास, द्विज विश्व श्वर, द्विज रामकृष्ण, कवि- समझते हैं।